विविध
उप्र में बूचड़खाने बंद होने से BakrEid पर कुर्बानी को लेकर भ्रम की स्थिति
लखनऊ। उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के निर्देशों के अनुपालन में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अधिकतर बूचड़खाने बंद किये जाने और सरकार की तरफ से स्थिति स्पष्ट नहीं होने से इस बार बकरीद पर मदरसों तथा आम लोगों में कुर्बानी को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश के अधिकतर मदरसों द्वारा बड़े जानवरों की सामूहिक कुर्बानी पिछले साल तक आमतौर पर सरकारी बूचड़खानों में ही करायी जाती थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय और एनजीटी के निर्देशों के अनुपालन में अधिकतर पशु वधशालाएं बंद कराये जाने से विकट स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
टीचर्स एसोसिएशन ऑफ मदारिस अरबिया के महामंत्री दीवान साहब जमां ने बताया कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देने के बजाय भैंस जैसे बड़े जानवरों की कुर्बानी देता है। उनकी सुविधा के लिये मदरसे अपने यहां हिस्सों की बुकिंग करते हैं और बड़े जानवरों की कुर्बानी कराते हैं। उन्होंने बताया कि बड़े मदरसे तो अपने परिसर में कुर्बानी करा लेते हैं लेकिन अधिकतर संख्या छोटे मदरसों की है और वे कुर्बानी के लिये स्थानीय सरकारी बूचड़खानों पर निर्भर होते हैं। चूंकि इस वक्त 90 प्रतिशत से अधिक बूचड़खाने बंद हैं, लिहाजा अब कुर्बानी को लेकर मुश्किल खड़ी हो गयी है।
दारुल उलूम फरंग महल के प्रमुख मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि इस बार बड़े जानवरों की कुर्बानी कहां की जाए, इसे लेकर काफी भ्रम की स्थिति है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह कम से कम बकरीद के दिन बूचड़खाने खोल देती, ताकि हजारों मदरसों तथा लाखों अन्य लोगों को दुश्वारी नहीं होती। साफ-सफाई की मुकम्मल व्यवस्था होती तो एक दिन बूचड़खाना खोल देने में कोई हर्ज भी नहीं था। मौलाना ने कहा कि बकरीद पर कुर्बानी को लेकर बनी पसोपेश के हालात के मद्देनजर उन्होंने पिछले सोमवार को प्रदेश के पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह से मुलाकात करके उन्हें स्थिति से अवगत कराया था। तब सिंह ने कहा था कि कुर्बानी एक धार्मिक अनुष्ठान है और इस सिलसिले में जिस तरह से पहले चीजें होती थीं, ठीक वैसी ही होंगी। बस प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी ना हो और पशु वध का सार्वजनिक प्रदर्शन ना किया जाए।
बरेली मुसलमानों की आस्था के प्रमुख केन्द्र दरगाह आला हजरत से जुड़े जमात रजा-ए-मुस्तफा के महासचिव शहाबउद्दीन रजवी ने भी कहा कि बूचड़खाने बंद किये जाने के बाद पैदा सूरतेहाल के बीच बकरीद को लेकर सरकार की तरफ से कोई निर्देश नहीं आने के बाद कुर्बानी कराने वालों में भ्रम की स्थिति है। कहीं ना कहीं उनमें डर भी व्याप्त है। इस बारे में सरकार का पक्ष जानने की कोशिश की गयी लेकिन किसी भी अधिकारी ने इस पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
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