फ्लैश न्यूजविविध

तिब्बत को छोड़ना नहीं चाहता भू-माफिया चीन

चीन को विस्तार वादी प्रवृत्ति का बताने से ज्यादा मुफीद होगा यह बताना कि विस्तार वादी कम दूसरों की भूमि और प्राकृतिक सम्पदा को हड़पने की प्रवृत्ति रखने वाला एक क्रूर और आततायी देश है। इसी नीयत से वह लगातार कब्जा करने की रणनीति को अपनाये हुए है। तिब्बत जैसे प्राकृतिक भू संपदा को कब्जाने की चाहत रखता है, क्योंकि यहां काफी संख्या में खनिज पाए जाते हैं। जिसमें लीथियम, यूरेनियम सबसे अहम हैं।

इसके अलावा यहां भरपूर मात्रा में पानी भी पाया जाता है। अतिरिक्त इसके तिब्बत, दुनिया का सबसे ऊंचा और लंबा पठार है। एक और खास बात यह भी है कि एशिया में बहने वाली कई बड़ी नदियों का उदगम भी तिब्बत से ही होता है। यदि किन्हीं कारणों से भविष्य में चीन में पानी की किल्लत होगी तो तिब्बत से ही उसकी आपूर्ति की जाएगी।

वैसे तो लगभग 40 सालों तक तिब्बत आजाद रहा। इसी आजादी को वास्तविक आजादी कहा जाता है, लेकिन 1949 में चीन में कम्युनिस्टों की जीत के बाद हिमालय के इस इलाके के हालात बदले और विवाद शुरू हो गया। 7 अक्टूबर 1950 को हजारों की संख्या में माओत्से तुंग की सेना, तिब्बत में दाखिल हुई, 19 अक्टूबर को सेना ने चामडू शहर के बाहरी इलाके पर कब्जा कर लिया, जब सेना तिब्बत में दाखिल हुई तो यह सब देखकर तिब्बत प्रशासन से जुड़े लोग परेशान हो गए।

तिब्बत पर चीन का 8 महीने तक कब्जा रहा, चीन अन्य इलाकों पर भी कब्जा करता जा रहा था। चीन की ओर से बढ़ते दवाब की वजह से तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने चीन की ओर से दिए गए 17 बिंदुओं वाले एक विवादित समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया, जिससे तिब्बत अधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया।

मगर धार्मिक गुरु दलाई लामा इस संधि को अमान्य बताते हैं और उनका कहना है कि ये हस्ताक्षर एक असहाय सरकार पर जबरन दवाब बनाकर कराया गया, जबकि सरकार यह नहीं चाहती थी। एक बात और कही जाती है कि जब उनसे इस अमान्य करार पर हस्ताक्षर करवाए गए उस समय वह मात्र 15 साल के थे। हिमालय के उत्तर में स्थित तिब्बत 12 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

इसका इतिहास कई तरह की परेशानियों से भरा हुआ है। 23 मई 1951 को तिब्बत ने चीन के साथ एक विवादित समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस दिन को तिब्बत में एक दुखद दिन माना जाता है। इस दिन तिब्बत ने अपनी आजादी आधिकारिक तौर पर खो दी। चीन के कब्जे से तिब्बत में माहौल बिगड़ने लगा। 1956 से लेकर 10 मार्च 1959 तक तिब्बत के लोगों का गुस्सा अपने उफान पर था।

इस दौरान पहला विद्रोह हुआ और तिब्बत के लोगों ने चीन के राज को मानने से इनकार कर दिया, विद्रोह बढ़ता जा रहा था और इसमें हजारों लोगों की जान भी गई। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के दखल और 2 सप्ताह तक चली हिंसा के बाद इस विद्रोह को चीन दबाने में कामयाब रहा।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

https://www.baberuthofpalatka.com/

Power of Ninja

Power of Ninja

Mental Slot

Mental Slot