राजा ( King ) सनाका खा गया। जो काम कोई दूसरा शिक्षक पिछले दस पंद्रह वर्ष में नहीं कर सका उसे कर दिखाने का वचन ही एक हैरानी की बात थी। यह बूढ़ा पंडित छह महीने में ही पूरा करने की बात कर रहा था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसके मंत्रियों के अचरज का भी ठिकाना नहीं था।
राजा ( King ) अपने लड़कों को उस ब्राह्मण को सौंप कर इस ओर से पूरी तरह निश्चित हो गया। न सही छह महीने साल दो साल ही सहीl वह पंडित उसके लड़कों को कुछ कम नालायक तो बना कर ही रहेगा। विष्णुशर्मा ने मनुष्य के जीवन में और खास करके राजाओं के सामने आने वाले उलझन भरे सवालों और नाजुक मौकों का खाका तैयार कर लियाl
और उन मौकों पर राजनीति के पंडितों ने जो कुछ सुझाया था उसे बीच-बीच में नगीनों की तरह जड़ दिया। जड़ते हुए एक ऐसी कहानी लिख मारी जो खत्म होने पर आ ही नहीं रही थी। जैसे विष्णुशर्मा ने प्रण कर लिया था कि वह छह महीने के भीतर ही राजकुमारों को ज्ञानी बना देगा।
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