पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-9
पंचतंत्र के बेकार का पचड़ा भाग-8 में आपने पढ़ा कि ……..
दमनक ने अब हंसते हुए कहा, एक बात याद रखो। जो सेवक सोचता है कि राजा (King) को रिझा लिया, अब किसी की चिंता नहीं, वह कभी भी धोखा खा सकता है। राजा (King) की मां, उसकी पत्नी, उसके पुत्र, मुख्यमंत्री, राजपुरोहित और द्वारपाल को भी राजा की तरह ही सम्मान देना चाहिए।
अब इससे आगे पढ़िए, भाग-9…………
यदि राजा (King) आज्ञा दे तो गुमसुम वहां से चल नहीं देना चाहिए, यह दिखाना चाहिए कि इस सेवा के लिए चुन कर राजा (King) ने उस पर कृपा की है। महाराज को दुआएं देते हुए उस काम पर जी जान से जुट जाना चाहिए और जो कुछ करने को कहा गया है उसे कर दिखाना चाहिए।
ऐसा करने वाला सेवक ही राजा (King) का प्रिय हो सकता है। राजा (King) जो छोटी-छोटी कोई भी चीज दे उसे माथे लेते हुए यह जताना चाहिए कि जो कुछ मिला है उसके लिए वही अनमोल है। उसे राजा (King) द्वारा दिए वस्त्र को पहन कर यह भी दिखाना चाहिए कि उसे उसने तुच्छ मान कर फेंक नहीं दिया या किसी दूसरे को दे नहीं दिया।
जो सेवक राजा (King) के रनिवास के पहरेदारों या रानियों आदि से मेल जोल रखना चाहता है वह तो राजा (King) का प्रिय हो ही नहीं सकता। उल्टे उसे राजा के कोप का भी शिकार होना पड़ सकता है। आदर-मान उसे ही मिलता है जो जुए को यमदूत और शराब को जहर समझता है और रानियों की ओर इस तरह ध्यान नहीं देता मानो वे जीवित प्राणी नहीं, चलती फिरती तस्वीरे हों।
युद्घ के समय जो राजा से आगे और नगर में सदा उसके पीछे चलता है और राजभवन में केवल द्वार
तक ही सीमित रहता है वही राजा का प्रिय पात्र होता है। करटक अपने को दमनक से कुछ अधिक नीतिज्ञ समझता था, पर इस समय यह देख कर चकित हो रहा था कि दमनक सेवा की कला को सचमुच बहुत बारीकी से जानता है और यह किसी भी राजा को अपने वश में कर सकता है।
दमनक समझाता जा रहा था, जो व्यक्ति राजा को आफत में पड़ा देखकर भी उसकी अनसुनी नहीं करता है और उसके हुक्म पहले की तरह बिना किसी चूक और हीला-हवाली के बजाता रहता है, वही राजा का चहेता हो सकता है।
इसके आगे भाग—10 में पढ़ियेग़ा……….
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