पंचतंत्र

PanchTantra-कान भरने की कला भाग-14

विष्णुशर्मा बहुत पहुंचे हुए पंडि़त थे ही, वह उतने ही अक्खड़ भी थे। उन्होंने राजा ( King ) से कहा, महाराज मेरी बात सुनें। मैं विद्या की बिक्री नहीं करता, फिर भी यदि छह महीने के भीतर आपके लड़कों को राजनीतिशास्त्र का ज्ञान न करा दूं तो अपना नाम बदल दूंगा।

अपने मुंह से अपनी तरीफ क्या करूं, पर मैं यह बात डंके की चोट पर कहता हूं कि मुझे धन-दौलत का लोभ नहीं। अस्सी साल की तो मेरी उमर हो गई। मेरी सारी इंद्रिया भोग विषयों से उदासीन हो चुकी हैं। इसीलिए, न धन की कोई लालसा है और ना ही जरूरत।

किंतु आपने जो इच्छा प्रकट की है उसे पूरा करने के लिए मैं खेल-खेल में शिक्षा देने का एक प्रयोग करूंगा। आज की तिथि कहीं लिख लीजिए। यदि आज से छह महाने के भीतर आप के लड़कों को राजनीतिशास्त्र में बेजोड़ न बना दिया तो आप मेरे साथ जैसा चाहें वैसा व्यवहार कीजिएगा।

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