सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में: राहत इंदौरी
जो कहते थे सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है।
वे जनाब राहत इंदौरी साहब अनन्त सफर पर रवाना हो गए।
ग़ज़ल अगर इशारों की कला है तो मान लीजिए कि राहत इंदौरी वो कलाकार थे, जो अपने अंदाज में झूमकर इस कला को बखूबी अंजाम देते थे। डाॅ0 राहत इंदौरी के शेर हर लफ्ज़ के साथ मोहब्बत की नई शुरुआत करते हैं, यही नहीं वो अपनी ग़ज़लों के ज़रिए हस्तक्षेप भी करते हैं। व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं।
राहत का जन्म इंदौर में 01 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। वे उन दोनों की चौथी संतान हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय,भोपाल से उर्दू साहित्य में एम0ए0 किया। तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
राहत इंदौरी जी ने शुरुवाती दौर में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू कर दिया। उनके छात्रों के मुताबिक वह कॉलेज के अच्छे व्याख्याता थे। फिर बीच में वो मुशायरों में व्यस्त हो गए और पूरे भारत से और विदेशों से निमंत्रण प्राप्त करना शुरू कर दिया। उनकी अनमोल क्षमता, कड़ी लगन और शब्दों की कला की एक विशिष्ट शैली थी,जिसने बहुत जल्दी व बहुत अच्छी तरह से जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया।
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राहत साहेब ने बहुत जल्दी ही लोगों के दिलों में अपने लिए एक खास जगह बना ली और तीन से चार साल के भीतर ही उनकी कविता की खुशबू ने उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया। वह न सिर्फ पढ़ाई में प्रवीण थे बल्कि वो खेलकूद में भी प्रवीण थे,वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे। वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी।
राहत जी की दो बड़ी बहनें थीं जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे,एक बड़े भाई अकील और फिर एक छोटे भाई आदिल रहे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और राहत जी को शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था।Aqeel
चित्रकारी उनकी रुचि के क्षेत्रों में से एक थी और बहुत जल्द ही बहुत नाम अर्जित किया था। वह कुछ ही समय में इंदौर के व्यस्ततम साइनबोर्ड चित्रकार बन गए। क्योंकि उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना और कल्पना की है, इसलिए वह प्रसिद्ध भी हैं। यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत द्वारा चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों का इंतजार करना भी स्वीकार था। यहाँ की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइनबोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है। उनका निधन 11 अगस्त 2020 को दिल का दौरा (हार्ट अटैक)आने की वजह से हो गया है।
दरअसल, इंदौरी ने मंगलवार शाम पांच बजे अंतिम सांस ली थी। उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण बताया गया था, लेकिन उनकी मृत्यु की वजह दिल का दौरा पड़ना है। मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित एक अस्पताल में वह भर्ती थे। वहां उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा था, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
इस तरह अनंत सफर पर राहत साहब रवाना हो गए, शायरी की दुनिया में उनके अल्फ़ाज़ जिंदा हैं और रहेंगे।
निखिलेश मिश्रा की वॉल से