ज्योतिष

साध्य योग और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में 14 सितंबर को मनाई जाएगी भाद्रपद अमावस्या

हिंदू धर्म में भादो मास की अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। पौराणिक मान्यता है कि पितृपक्ष से पहले पितरों को खुश करने के लिए भाद्रपद अमावस्या मनाई जाती है। इसे भादो अमावस्या भी कहा जाता है और इस दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाता है और दान किया जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि भाद्रपद अमावस्या साध्य योग और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में 14 सितंबर को मनाई जाएगी। वैदिक पंचांग के मुताबिक भाद्रपद अमावस्या गुरुवार 14 सितंबर को सुबह 04.48 मिनट से शुरू हो जाएगी और शुक्रवार 15 सितंबर को सुबह 07.09 बजे संपन्न होगी।

ऐसे में उदया तिथि के चलते भाद्रपद अमावस्या 14 सितंबर को मनाई जाएगी। भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस संदर्भ में पौराणिक मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस अमावस्या को पिठोरी या कुशोत्पाटिनी अमवास्या भी कहते हैं। इसमें धार्मिक कार्यों के लिये उपयोग में आने वाले कुश को एकत्रित किया जाता है। जो सालों भर मान्य होता है। वहीं अन्य दिनों में एकत्रित किया जाने वाला कुश सिर्फ उसी दिन मान्य होता है। इस दिन शाम मे पीपल पेड़ के नीचे दीपक जलाये ओर अपने पितरों को स्मरण करे। इसके साथ ही पीपल की परिक्रमा लगाए इससे पितरों की आत्मा की शान्ति मिलती है।

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है।

इस दिन प्रातःकाल उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद बहते जल में तिल प्रवाहित करें। नदी के तट पर पितरों की आत्म शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब व्यक्ति या ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें। इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है। अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों को स्मरण करें। पीपल की सात परिक्रमा लगाएं। अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करना जरूरी है।

ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि भाद्रपद महीना भगवान श्री कृष्णा की भक्ति का महीना माना जाता है। इसलिए भाद्रपद में पड़ने वाली अमावस्या का महत्व ज्यादा है। वहीं पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये या पितरों की आत्म शान्ति के लिए भी अमावस्या का खास महत्व है। अमवास्या को स्नान, दान और तर्पण के लिए सबसे शुभ दिन माना गया है। मान्यता है कि इस दिन हाथों में कुश लेकर तर्पण करने से कई पीढ़ियों के पितर तृप्त हो जाते हैं। यदि कुंडली में पितृदोष या कालसर्प दोष हो तो इससे मुक्ति के लिये अमावस्या का दिन सबसे शुभ माना जाता है। अमावस्या के दिन स्नान, दान और पितृ तर्पण किया जाता है।

भाद्रपद अमावस्या
वैदिक पंचांग के मुताबिक भाद्रपद अमावस्या गुरुवार 14 सितंबर को सुबह 04.48 मिनट से शुरू हो जाएगी और शुक्रवार 15 सितंबर को सुबह 07.09 बजे संपन्न होगी। ऐसे में उदया तिथि के चलते भाद्रपद अमावस्या 14 सितंबर को मनाई जाएगी। भाद्रपद अमावस्या को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।

पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और साध्य योग
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस साल की भाद्रपद अमावस्या साध्य योग और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में 14 सितंबर को मनाई जाएगी। उस दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सुबह से लेकर अगले दिन सुबह 04:54 तक है। वहीं साध्य योग प्रात:काल से लेकर अगले दिन सुबह 03:00 तक है । उसके बाद से शुभ योग प्रारंभ होगा। भाद्रपद अमावस्या को सूर्योदय सुबह 06:05 पर होगा।

मुहूर्त
भाद्रपद अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त के साथ ही स्नान और दान करना शुभ होगा। 14 सितंबर को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:32 बजे से प्रात: 05:19 बजे तक है। इस बाद उत्तम मुहूर्त सुबह 06:05 बजे से सुबह 07:38 बजे के बीच है। इस दौरान स्नान और दान करना शुभ हो सकता है।

करें दान
भाद्रपद अमावस्या के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार, कपड़े और अन्न का दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। भाद्रपद में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और भाद्रपद अमावस्या पर पीपल के पेड़ की पूजा करना भी शुभ होता है। स्नान के बाद पीपल के पेड़ को जल अर्पित करना चाहिए।

महत्व
भाद्रपद अमावस्या के दिन धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है, इसलिए इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। वहीं पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुशा का उपयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। भाद्रपद माह में भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और भाद्रपद अमावस्या पर आप पीपल के पेड़ की पूजा कर सकते हैं। उस दिन आप स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं। पीपल में देवों का वास होता है। शाम के समय वहां पर पितरों के लिए सरसों के तेल वाला दीपक जलाना चाहिए। इससे पितर प्रसन्न होते हैं।

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