साइबर संवाद

अब कौन ज्यादा डरा हुआ लगता है?

1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा लगाई गई इमरजेंसी से पहले विपक्ष के दिग्गजों ने छात्रों को और मजदूरों को भड़का कर देश में अराजकता का माहौल बनाया? औद्योगिक उत्पादन ठप्प कराये, रेल ठप, कॉलेज ठप, हड़तालों का लम्बा सिलसिला शुरू हो गया था। छात्र, सरकारी सम्पति तोड़-फोड़ रहे थे। इंदिरा के खिलाफ कोर्ट का फैसला भी आ गया था, जिस कारण इंदिरा ने इमरजेंसी लगायी। पूरी दुनिया को पता था भारत में इमरजेंसी है, प्रेस सेंसरशिप है, और राजनीतिक विरोधी जेल में थे।

2014 के बाद शुरू हुए मोदी काल में, विपक्ष ने देश में अराजकता का माहौल नहीं बनाया, बल्कि तथाकथित गौरक्षकों ने बेझिझक निर्दोष लोगों की हत्याएं कीं, बीजेपी नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए, जिनका पुलिस और न्यायालय ने संज्ञान नहीं लिया, JNU, दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया, भीमा कोरेगांव आदि में हुई हिंसा और पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के सम्बन्ध में संघ परिवार के सदस्यों एवं पुलिस पर गंभीर आरोप हैं? मोदी द्वारा खुद लागू नोटबंदी और लंगड़े GST ने आर्थिक अराजकता फैलाई सो अलग है।

मोदी सरकार के फैसलों से सम्बंधित केसों (मसलन राफेल सौदा, सीएए, जम्मू-कश्मीर विभाजन, इलेक्टोरल बांड आदि) पर न्यायालय ने या तो सरकार के पक्ष में विवादित फैसले दिए, या ये केस न्यायालय के ठन्डे बस्ते में पड़े हैं। मोदी सरकार के प्रति न्यायालय जिस तरह से नरमी बरत रहे हैं, उसकी तुलना में इमरजेंसी से पूर्व इंदिरा के खिलाफ दिया कोर्ट का फैसला तो judicial activism ही कहा जायेगा?

वर्तमान मोदी काल में, लीगली तौर पर देश में आपातकाल लागू नहीं है, न ही प्रेस पर सेंसरशिप है? यानी कि प्रकट में मोदी सरकार को ऐसा कोई कारण नज़र नहीं आता जिससे देश की आन्तरिक शान्ति भंग नजर आती हो। इन हालात के बावजूद सरकार को गोदी मीडिया की बैसाखी की ज़रुरत है और उसे अपनी आलोचना करने वाले लोग फूटी आँख नहीं सुहाते? इन लोगों को कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा या देशद्रोह कानून के अंतर्गत सलाखों के पीछे रखा जा रहा है।

अगर इंदिरा को राजनीतिक विरोध पसंद नहीं था तो उन्होंने उसे दबाने के लिए इमरजेंसी लगायी, जिसके लिए उन्हें 1977 के बाद हर साल, आज तक कोसा जाता है। जबकि देश की आम जनता इमरजेन्सी काल का समर्थन करती थी। कमाल की बात यह है कि उन्हें कोसने वाली जमात में अग्रणी बीजेपी और संघ परिवार की छत्र-छाया में 2014 के बाद से वह सब हो रहा है जो इमरजेंसी में हुआ था, परन्तु बिना इमरजेंसी लगाये?

इंदिरा ने तो इमरजेंसी देश में अराजकता की वास्तविक हालात को देखकर लगायी थी। इसके उलट, वर्तमान में सरकार-विरोधी प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं। अगर उनमें हिंसा भड़की और अराजकता का माहौल बना तो इसके लिए गंभीर आरोप संघ परिवार के सदस्यों एवं पुलिस पर भी लगे हैं। इन हालात में जब राजनीतिक विरोधियों को बिना ठोस सबूतों के संगीन आरोप लगा कर सलाखों के पीछे रखा जाता है, तो ज़ेहन में यह सवाल आता है–

कि-अराजकता के माहौल में खुलेआम इमरजेंसी लगा कर राजनीतिक विरोध का दमन करने वाली इंदिरा और बिना अराजकता के माहौल के राजनीतिक विरोध का आपातकाल जैसा दमन करने वाले मोदी–इन दोनों में से किसे ज्यादा डरा हुआ माना जाए? जो आज अपनी सत्ता ईडी, सीबीआई, इन्कम टैक्स, पुलिस के बल बूते चला रहे हैं।

यहाँ, एक दिलचस्प बात यह भी है कि इंदिरा गाँधी की दोबारा सत्ता वापसी (1980) के बाद से लेकर 2014 तक भारत की लोकतान्त्रिक संस्थाएं मजबूत होती रहीं–कुछ कम हुई, कुछ ज्यादा। मोदी काल में यह सारी मजबूती हवा हो गयी है। निकट भविष्य में ऐसी कोई सम्भावना नहीं लगती कि मोदी काल में देश में 1980 के बाद जैसा लोकतान्त्रिक पुर्नउत्थान होगा?

Naresh Dixit, Editor
Naresh Dixit, Editor

 

नरेश दीक्षित
सम्पादक
समर विचार  

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