पंचतंत्र
PanchTantra-टका नहीं तो टकटका भाग-5
प्यास से प्राण निकले जा रहे थे और प्यास बुझाने को बढ़ऩे पर प्राण जाने का खतरा था। पिंगलक के पुराने मंत्रियों के दो पुत्र थे, जिनका नाम करटक और दमनक था। इन दोनों को अपने पद से हटाया जा चुका था। पर ये इस आशा में दिन-रात उसके आगे-पीछे लगे रहते थे कि हो सकता है कभी वह इन पर पसीज कर इनके पुश्तैनी पद पर फिर रख ले।
सिंह को इस तरह बैठे देख कर वे आपस में सलाह करने लगे। दमनक बोला,’यार करटक, हमारा यह स्वामी तो यमुना की ओर पानी पीने के लिए निकला था। वह नदी के किनारे तक आया भी और फिर पानी पिए बिना ही लौट कर यहां चतुर्मंडल बना कर बैठ गया है।
इसकी नौबत तो कोई संकट आने पर ही आती है। वह कुछ चिंतित भी दिखाई देता है। आखिर मामला क्या है? भई, मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आता है।
करटक ने कहा, ”चिंता में पड़ा है तो पड़े रहने दो। हमतो न तीन में है न तेरह में। हमें इससे क्या लेना। तुम बेकार के पचड़े में पड़ते हो। यदि यही हाल रहा तो एक न एक दिन तुम्हारी हालत उस बंदर जैसी होगी जो पच्चड़ उखाड़ते.उखाड़ते अपनी गवां बैठा था।
दमनक की उत्सुकता जाग उठी। उसने कहा,’क्या हुआ था, बताओ तो सही।
करटक ने जो कहानी सुनाई वह इस प्रकार थी:
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