विविध

कोरोना वायरस ही है या कुछ और

विश्व के लिए भले ही कोरोना एक वायरस हो लेकिन भारत में यह वायरस नहीं है। भारत में कोरोना या तो एक “अवसर” है अथवा एक राजनैतिक हथियार। जनता जो डिजर्व करती है उसके हिसाब से उसे “प्रसाद वितरण” हो रहा है। कोराना के रोकथाम के लिए सरकार कहां और किस मोर्चे पर गंभीर त्रुटियां कर बैठी इस पर मैं पहले भी सिलसिलेवार तमाम न्यूज वेबसाईट्स पर और अखबारों में लिख चुका हूं।

भारत में कोरोना वायरस को, गिद्ध हो चुके राजनैतिक दल फुटबॉल की तरह खेल रहे हैं और आम जनता की लाशें एक “गोल” की तरह हैं। कोरोना पीड़ित मरीज इस खेल में “रिटायर्ड हर्ड” प्लेयर की भूमिका में हैं। राजनैतिक दल रेफरी हैं और दर्शक इस देश की “वैचारिक व विवेक शून्य” जनता है जो गजब की स्फूर्ति के साथ ताली बजा रही है।

गजब का मायाजाल है जिसमें नींचे गहरी खाईं है और जनता जिस‌ सरफेस पर खड़ी है वह दरका हुआ है। कोरोना मरीजों का आंकड़ा अलग-अलग राज्य सरकारों के लिए अपने-अपने स्तर पर अपनी छवि गठित करने का माध्यम है। सरकारों के पास वे सभी संसाधन हैं जिससे वो कोरोना के लब्बोलुआब को बेच सकती है अथवा बेच रही है।

रक्कासा और मीडिया को क्या चाहिए पैसा….. पैसा फेंकों, तमाशा देखो।………कुछ राज्य रीढ़ विहीन, हिनहिनाती, रिरियाती, अफसरों-नेताओं के तलुओं को ‘लालची जीभियाती’ मार्केंटिंग मीडिया के माध्यम से यह बताने में जुट गए हैं कि उनके राज्य में कोरोना काबू में है। अफसर राज्यों के मुख्यमंत्रियों की मीडिया मार्केटिंग में “लाल कालीन” हुए पड़े हैं।

जबकि हकीकत यह है ऐसे राज्यों में कोराना मरीजों की टेस्टिंग न के बराबर हो रही है। सीधी सी बात है जितनी कम टेस्टिंग होगी, उतने कम मरीज होंगे……बस इसे ही सफलता का पैमाना बना कर मीडिया मार्केटिंग शुरू कर दी गई है। मूर्खों की फौज है ही तालियां पीटने के लिए सो पीट रही है।

ICMR के 6 मई, 2020 के डेटा के मुताबिक सबसे अधिक कोरोना केस वाले 15 राज्यों में पश्चिम बंगाल टेस्ट (Corona Test) के मामले सबसे फिसड्डी है। इसके साथ मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी औसत से कम टेस्टिंग हो रही है। 25 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से पश्चिम बंगाल सबसे फिसड्डी राज्य है‌। इसके बाद बिहार और उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश भी टेस्टिंग के मामले में काफी पीछे हैं।

कोविड-19 के संदिग्ध मरीजों की जांच करने के मामले में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश 25 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से पीछे चल रहे हैं। देशभर में कुल टेस्टिंग की संख्या 10 लाख के पार पहुंच गई है। इसके साथ ही प्रति 10 लाख आबादी पर टेस्ट भी बढ़कर 818 हो गया है जो 4 अप्रैल को 57.9 पर था।

हालांकि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के डेटा के मुताबिक, सबसे अधिक कोरोना केस वाले 15 राज्यों में पश्चिम बंगाल टेस्ट के मामले सबसे फिसड्डी है। यह प्रति 10 लाख लोगों पर 230 टेस्ट कर पा रहा है। इसके बाद प्रति 10 लाख पर 267 टेस्ट के साथ बिहार का नंबर है। वहीं उत्तर प्रदेश प्रति 10 लाख पर 429 टेस्ट कर रहा है जो राष्ट्रीय औसत का तकरीबन आधा है। मध्य प्रदेश में कोविड-19 चिंता की बड़ी वजह बन गया है। यह प्रति 10 लाख पर 642 टेस्ट करा रहा है। इन चारों राज्यों में संक्रमित लोगों की संख्या में भी तेजी देखी गई है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इन राज्यों में पॉजिटिव मामलों का बढ़ना अधिक चिंताजनक है क्योंकि यहां पर्याप्त टेस्ट भी नहीं हो रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि अगर ये राज्य टेस्ट बढ़ाते हैं तो संक्रमित मामलों की संख्या और बढ़ेगी।’ भारत में 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन लगने के बाद से ही कम टेस्टिंग को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई है। हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना था कि बड़े पैमाने पर टेस्टिंग के बिना किसी भी देश को कोविड-19 महामारी फैलने की सटीक जानकारी नहीं मिलेगी।

दिल्ली ने सबसे पहले युद्ध स्तर पर टेस्टिंग करना शुरू किया था। इसने प्रति 10 लाख पर 3,486 टेस्टिंग की है जो राष्ट्रीय औसत का तकरीबन चार गुना है। इसके बाद प्रति 10 लाख पर 2,313 टेस्टिंग के साथ आंध्र प्रदेश, जम्मू और कश्मीर (2083), तमिलनाडु (1,932), राजस्थान (1,668) और महाराष्ट्र (1,423) का नंबर है।

ICMR के एक साइंटिस्ट ने कहा कि— ‘प्रति 10 लाख पर टेस्ट संख्या मरीजों की ठोस संख्या बताने के साथ बेहतर पहुंच और सैंपलिंग का संकेत देते हैं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक सैंपल की टेस्टिंग की गई है, जबकि दिल्ली प्रति 10 लाख आबादी पर टेस्टिंग के मामले में आगे है। इसका मतलब है कि यह संक्रमण के प्रसार की अधिक सटीकता के साथ जानकारी देता है।’ पिछले एक महीने में टेस्टिंग में लगातार वृद्धि हुई है और टेस्ट पॉजिटिव आने की दर घटी है। मार्च और अप्रैल के दौरान भारत में टेस्ट पॉजिटिव आने की दर 3 प्रतिशत से 5 प्रतिशत के बीच रही है।

कोरोना भारत में शुरू से ही राजनैतिक वायरस के रूप में बदल दिया गया था। भारत सरकार ने फरवरी और मार्च माह के आरंभिक दो हफ्तों के मूल्यवान समय को खो दिया। जनवरी में जब भारत में कोरोना वायरस का पहला केस केरल में आया था तभी भारत सरकार के कान खड़े होने चाहिए थे लेकिन डब्लूएचओ पर काबिज चीनी निदेशक ने भारत सहित पूरे विश्व को अंधेरे में रखा कि यह वायरस मैंन टू मैंन नहीं फैलता है।

मामला बिगड़ता गया, जबकि फरवरी में ही WHO ने सचेत किया था। लेकिन भारत सरकार ने ओवर रिएक्शन कह कर हल्के में लिया। फरवरी में “एक नेता” ने लोकसभा में कोरोना से तैयारी के बारे में सरकार से सवाल किया था लेकिन सरकार ने उसका मजाक उड़ाया। सरकार 65 हजार लोगों को विदेशों से भारत वापस लेकर आई….. वहां फिर मिसमैनेजमेंट हुआ।

इन सभी को 20 दिन हर एअरपोर्ट के बाहर टेंट सिटी बनाकर रोक देना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। थर्मल चेकिंग करके व हाथ पर मुहर लगा कर कहा गया कि घर में खुद को एकांत में रखिए।लेकिन हवाई जहाजों से उतरे लोग कहां मानने वाले थे….सरकार ने उनसे एकांत में रहने को कहा लेकिन लोग टहलने निकल पड़े।

हवाई जहाजों से उतरी भीड़ गरीबों को लेकर डूब गई….जब सरकारें कुंभ में 3 करोड़ लोगों के लिए टेंट सिटी बना सकती थीं तो हवाई जहाजों से लाए गए व आए कोरोना बमों के लिए भी एअरपोर्ट के बाहर टेंट सिटी बना सकती थीं…..कितना दुख होता है कि हवाई जहाजों से लोगों को मुफ्त लाया जाता है लेकिन गरीब 100 से 600 किलोमीटर पैदल चलकर जाता है।

जो बसें चलाई जाती हैं वो इन गरीबों से किराए वसूलती हैं….हल्ला मचता है तो मुफ्त सेवा का आदेश जारी किया जाता है …..24 मार्च को आदरणीय मोदी जी टीवी पर आते हैं और अचानक 14 अप्रैल, 2020 तक बंदी करने व 15000 करोड़ रुपए के उपकरण खरीदने की घोषणा करके चले जाते हैं…..।

लेकिन यह उपकरण जैसे वेंटीलेटर और पीपीई किट कोई रातों-रात सप्लाई होने वाली चीजें नहीं हैं? 26 तारीख को दिल्ली एम्स के रेजीडेण्ट डाक्टर्स खुद चंदा करके आवश्यक प्राथमिक चीजें कुछ दिनों के लिए खरीद लेते हैं। केजीएमयू लखनऊ का मेडिकल व पैरामेडिकल स्टॉफ खुद एक दिन का वेतन दान देकर जरूरी चिकित्सा सामग्री खरीदता है……।

चाहूंगा कि वह खुद सड़क पर उतरे और मोर्चा संभाला……एक कहावत कही जाती है समय मूल्यवान होता है …वह कभी वापस नहीं आता…. इतना बड़ा निर्णय लेने से पहले केंद्र सरकार ने यदि सभी राज्यों से सलाह-मशविरा करके एक योजनाबद्ध तरीके से काम किया होता और जनवरी-फरवरी में ही कदम उठा लिये होते तो यह हालत नहीं होती…..।

मैंने पहले भी लिखा था, फिर लिख रहा हूं कि विभिन्न राज्यों से ये लौटी भीड़ गांवों-कस्बों में भयावह स्थिति पैदा करेगी और हो भी वही रहा है। मैने “भगवान” की आलोचना नहीं की है सिर्फ यह इंगित किया है कि मिस मैनेजमेंट और अनुभव हीनता बहुत मंहगी पड़ेगी…।

हम रोज तेजी से नये मुकाम छू रहे हैं जल्दी ही नंबर वन भी होंगे, वह बात अलग है कि टेस्टिंग में खेल करके इस नंबर वन की पहुंच से बच जाएं लेकिन स्थितियां चुनौतीपूर्ण हैं…….मैंने एक विषय रखा है। इसे देखने समझने का नजरिया अलग हो सकता है लेकिन सच का कोई रंग नहीं होता है…..इसे स्वीकार करें या न करें।

लेखक श्री पवन सिंह
एक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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