अपराधी की मौत पर जातिवादी सहानुभूति दुखदाई है
तरीका तो बालि को मारने का भी गलत था। तरीका तो भीष्म को मारने का भी गलत था। तरीका तो द्रोण को मारने का भी गलत था।
तरीका तो कर्ण को मारने का भी गलत था। तरीका तो दुर्योधन को मारने का भी गलत था।
इन सभी को किसने मारा, ये सब इतिहास में दर्ज है। उसपर कुछ लिखने से वर्तमान के प्रश्न से पलायन हो जायेगा। छोटे बच्चों को समझने के लिए भले ही गूगल का सहारा लेना पड़े, लेकिन जो भी पढ़े-लिखे उनको ये सब अच्छे से पता है। यदि आप यह सिद्ध करने पर उतारू ही हो जायें कि सभी मारने वाले गलत थे तो भी, ये कैसे और कौन सिद्ध कर पायेगा कि सभी मरने वाले निरपराध थे और और उनको गलत मार दिया गया।
सत्ता चली गई, फलाँ बच गया, जिन्दा होता तो उसका नाम लेता और उसे फांसी हो जाती। बिहार में सैयद शहाबुद्दीन ने आज तक लालू यादव का नाम लिया क्या? उत्तर प्रदेश में अतीक अहमद ने आज तक मुलायम सिंह यादव का नाम लिया क्या? राजस्थान में गाजी फ़क़ीर ने आज तक अशोक गहलोत का नाम लिया क्या? कहीं कोई किसी का नाम नहीं लेता है। नाम लेने वाले को पता होता है कि नाम लेने का मतलब है, अपनी मौत को स्वंय दावत देना। पकड़े जाने पर वही तो उसे बचाते हैं, फिर क्यों वो इनके नाम लेगा?
फिर ये विकास दुबे ऐसे किस व्यक्ति का नाम बक देता जो उसके बक देने से सत्ता उखड़ जाती? क्या अपराध जगत में उसे योगी आदित्य नाथ ने स्थापित किया? क्या अमित शाह ने उसे स्थापित किया अथवा नरेन्द्र मोदी ने उसे स्थापित किया कि वो ना मारा जाता तो प्रदेश की और देश की सरकारें गिर जातीं?
या कि उसे मार देने से दुनिया उलट-पलट हो गई। उसने ख़ुद लड़की का अपहरण कर उससे शादी की थी। उसके शागिर्द अमर के लिए भी उसने गरीब ब्राह्मण लड़की का ही अपहरण किया था। बिकरु गाँव के लोग मिठाइयाँ बाँट रहे हैं, खुशी मना रहे हैं और जो उसे जानते तक नहीं थे वो बाल मुड़वाकर चौदह दिन का शोक मनाते हुए,चूड़ियाँ तोड़ रहे हैं।
एक पुलिसकर्मी थे जितेंद्र सिंह, जिसका विकास दुबे ने मर्डर कर दिया। उनके पिता तीर्थपाल कहते हैं कि जब वो बेटे की लाश लेने गए तो मुख्यमंत्री योगी के नेत्रों में ऐसा क्रोध देखा कि उसका वर्णन नहीं कर सकते। जिससे उन्हें पहले ही अंदाज़ा हो गया था कि दोषियों का हश्र क्या होगा। उसका पूरा गैंग तबाह हो गया और महाकाल भी जानते थे कि इसकी जगह कोई भी जाति-मजहब का व्यक्ति रहता, तो उसके साथ योगी जी वही करते, जो किया गया है। इसीलिए वो सहाय हुए। मुखबिर पुलिसकर्मी भी सस्पेंड हुए हैं, संलिप्त थानाध्यक्ष को भी गिरफ़्तार किया गया है।
ये वही यूपी है ना, जहां एक राज्यमंत्री संतोष शुक्ला को सरेआम, वो भी थाने में घुसकर, दर्जनों की संख्या मेें पुलिसबल मौजूद होने के बाद भी विकास दुबे ने गोलियों से भून डाला था? गोलियों से छलनी हुए शुक्ला भी तो ब्राह्मण ही थे ना, किसी और जाति के तो नहीं थे? तब विकास दुबे ने सरेंडर भी किया था, वही पुलिस उसे न्याय के लिए न्याय के मंदिर यानी अदालत ले गई थी। क्या हुआ? कितनों के राज़ उसने उगल दिये और कितनों को फांसी हो गई? आखिरकार किसके दवाब में पुलिस के बीस-बीस बहाुदर योद्धा अपने बयान से पलट गये।
नेताओं का पूरा मजमा पहुँचा था कोर्ट में उसके सरेंडर के लिए। इन नेताओं में छांटकर बताईये इसमें कितने बाह्मण, कितने ठाकुर, कितने यादव और कितने अन्य जातियों के थे और मरने वाला किस जाति का था। लेकिन तत्कालीन सत्ता से किसी ने सवाल नहीं उठाया कि ब्राह्मणों के साथ अत्याचार हो रहा है, थी किसी के पास हिम्मत?
पिछले तीन दशक में सपा, बसपा और भाजपा, सबकी सरकारों में ये दुर्दान्त अपराधी बेखौफ अपराधों को अंजाम देता रहा। वर्तमान मेें भी वो जमानत पर बाहर था। वर्तमान में भी यदि वो गिरफ्तार होता और फिर जमानत पर बाहर आता तो लोग ज़रूर कहते कि योगी ने छुड़वा दिया। क्योंकि यह निश्चित है कि यदि वो कोर्ट तक पहुंचता तो देर-सबेर जमानत भी जरूर पाता। उच्च मानसिकता वाले और सवर्ण जाति के लोग तो कह ही रहे थे कि ‘अपर कास्ट‘ होने की वजह से वो छूटेगा, चुनाव लड़ेगा और मंत्री भी बनेगा। जैसी की आजतक की परम्परा रही है और ऐसे बहुत से राजनीतिज्ञों से आप वाकिफ भी हैं।
असल बात ये है कि विकास दुबे ने बसपा सरकार के रहते सबसे ज्यादा संरक्षण पाया। इसके बाद सपा की सरकार आई, जिसमें इसने गहरी पैठ बनाई और अब ये भाजपा की सरकार में भी यही करने के प्रयास में रत था। जिन राहुल तिवारी की शिकायत पर इसके पास पुलिस गई थी, वो क्या ब्राह्मण नहीं किसी और कास्ट के थे?
जिन क्षेत्राधिकारी (CO) देवेंद्र मिश्रा को इसने गोलियां मारी, उसके बाद उनके धारदार हथियारों से हाथ-पैर काट दिये,वो क्या ब्राह्मण नहीं थे? अभी तो इसके गैंग के 12 अपराधी बचे हुए हैं, जिन्हें पुलिस को कतई नहीं बख्शना चाहिए। इस मामले को बदले का मामला इसीलिए भी कहना चाहिए, क्योंकि पुलिसकर्मियों की हत्या कर, विकास दुबे ने सीधे सत्ता से ही युद्ध छेड़ा था। कोई वकील अपना केस ज्यादा गंभीरता और ऊर्जा के साथ लड़ता है, लेकिन जब बात उसके ख़ुद के वजूद पर आकर टिक जाये तो वो क्या करेगा? निश्चय ही वह अपने वजूद को ही जिन्दा रखेगा, क्योंकि इसपर ही उसका भविष्य टिकेगा।
जो लोग सोशल मीडिया पर घूमते हुए तथाकथित ‘समय, काल एवं परिस्थिति’ के हिसाब से सबको राम की जगह कृष्ण बनने को सलाह देते हैं, आज वही सबलोग योगी और उनकी सरकार में ही आदर्श का मानदण्ड क्यों खोज रहे हैं? आखिरकार अयोध्या में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तो निहत्थे कारसेवकों पर भी गोली चलवा दी थी। क्यों, वो इसलिए कि उस समय भी बात सरकार के इकबाल की आ गई थी।
ठीक इसी प्रकार से इस समय भी बात सरकार के इकबाल की ही है। जो व्यक्ति पांच बार सांसद और वर्तमान में मुख्यमंत्री है, जिसकी उम्र पचास वर्ष ही है, उसे हराने को वे सभीजन पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, जो विकास दुबे के प्रकरण को जातिवाद के नजरिये से तौल रहे हैं।
इससे फ़र्क़ उत्तर प्रदेश पर ही पड़ेगा, जहाँ विकास दुबे और मुख्तार अंसारी जैसे लोग गलबहियाँ करके कत्लेआम मचाएँगे और आप नीचे लड़ाई करते रहेंगे। सवा सौ एनकाउंटर्स की मौतों के लिए उनकी जातिवाले आकर हंगामा मचाने लगे तो? आखिरकार किसी की भी सत्ता हो क्या करेगी आप ही बतायें? आज ही दुर्दांत अपराधी पन्ना यादव का एनकाउंटर हुआ है। वो तो नहीं था न ब्राह्मण? हाँ, जिन सिद्धेश्वर पांडेय को विकास दुबे ने मारा था, वो जरूर थे ब्राह्मण।
कानपुर के ही व्यवसायी दिनेश दुबे को मारते समय विकास दुबे ने देखा था कि क्या सामने वाला ब्राह्मण है? तो फिर आप क्यों और कैसे देख रहे हैं कि वो ब्राह्मण था? जिस बसपा और सपा से उसके परिवार वाले दशकों से चुनाव जीतते आ रहे हैं, उनसे सवाल पूछने के बजाए उसके साम्राज्य का अंत करने वाले योगी को ही आपलोग निशाने पर लिए हुए हैं और भला-बुरा बोल रहे हैं।
वाह! इसका मतलब यह हुआ कि ऐसे लोगों के ही आतंक का साम्राज्य आपलोगों को चाहिए, जहाँ समाज में आदर्श के रूप में हत्यारे और बलात्कारी प्रतिष्ठापित किये जा सकें, अच्छे लोग नहीं। सोशल मीडिया में तो चल ही रहा है-ज़िंदा रह जाता तो लोग बोलते कि साँठगाँठ है, भाजपा ने इसीलिए छोड़ दिया कि उसके भी मंत्री सम्मलित थे। मार दिया गया तो ब्राह्मण वरसेज ठाकुर चला रहे हैं। अरे भाई अपने दिमाग का इस्तेमाल तो समाजहित में कीजिए।
कोई मौलाना साद की बात कर रहा है, तो कोई चोर-उचक्कों को भी एनकाउंटर में मार डालने को कह रहा। भाई, एक आतंकी की मौत पर इतनी बेचैनी? ये तो वैसे ही है जैसे लोग-बाग बुरहान वानी जैसों की अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं। दिल पर हाथ रख कर सोचिए कि अगर मौलाना साद ने यूपी में घुस कर अपने हाथों से 8-10 पुलिसकर्मियों को घसीट कर गोलियों से छलनी कर दिया होता तो क्या उसे छोड़ा जाना चाहिए था अथवा योगी जी उसे छोड़ देते।
हर प्रदेश की पुलिस अलग तरीके से काम करती है जो वहाँ के सत्ताधीश पर निर्भर करता है,मिक्सचर मत बनाइए। सीओ, देवेंद्र मिश्र के परिवार वालों की मदद के लिए कितनों ने आवाज़ उठाई? आपसी रंजिश में मरने-मारने में लगा था, तब तक वह बचता रहा। सत्ता से ही सीधे युद्ध छेड़ने की ग़लती कर गया, तब तो विकास दुबे का मारा जाना सुनिश्चित ही था। फिर चाहे सरकार योगी जी की है अथवा किसी और की भी रही होती।
योगी जी की सत्ता वो सत्ता नहीं है कि कोई अपराधी किसी पुलिस क्षेत्राधिकारी के दखल पर उसे दौड़ाये और टक्कर मारे, बचने के लिए जब सीओ कार के बोनट पर चढ़ जाये तो बजाय कार रोकने के वो अपराधी कार की स्पीड को और तेज करके पूरे लखनऊ में उसे घुमाते हुए, अन्तत: सीओ के ही मुखिया एसएसपी के कार्यालय में घुसेड़ दे और उसका बाल भी बांका ना हो। इस गलत फहमी में मत रहिये, ये वो वाली सरकार नहीं है।
फलाँ भइया, चिलाँ अंसारी और फलाँ अहमद को बार-बार विधानसभा और संसद के दरवाजे तक पहुँचाने वाली आख्रिकार आपकी ही जनता है न? अगर विकास दुबे आज बचा होता तो कल को दुबे भी मंत्री नहीं बनता? बड़ा हीरो कहलाता। उसके दरवाजे पर बड़े-बड़े सलाम बजाते और जनप्रतिनिधि बनते ही उसके ऊपर सुरक्षा कवच का एक जबरदस्त मुलम्मा चढ़ जाता, क्योंकि वो माननीय जो हो जाता।
आखिरकार सांसद आज़म अपनी विधायक बीवी और विधायक बेटे के साथ जेल में है। कहाँ हो रहा है भेदभाव? अपराधियों की मौत का मातम मनाकर ही क्या ब्राह्मण बचेगा और बचेगा हिन्दू? लोगों का कहना है कि विकास दुबे से पूछताछ नहीं हुई? आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पूरे 8 घण्टे हुई है,उससे पूछताछ। पूछताछ में बहुत कुछ पता भी लगा है, और जो बच गया है, उसके लिए मुख्यमंत्री योगी जी ने शासन के अतिरिक्त मुख्य सचिव, संजय भुसरेड्डी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, हरिराम शर्मा और पुलिस उपमहानिरीक्षक, रवीन्द्र गौण की तीन सदस्यीय एसआईटी गठित कर दी है।
इसके अतिरिक्त योगी जी के आदेश पर रिटायर्ड जस्टिस शशिकान्त अग्रवाल की अगुवाई में एकल जांंच आयोग गठित कर दिया है, जिसे दो माह के अन्दर अपनी रिर्पोट शासन को प्रस्तुत करनी है। इसका मुख्यालय कानपुर ही रखा गया है। आयोग की जांच के दायरे में विकास दुबे व उसके साथियों के पुलिस व अन्य विभागों/व्यक्तियों से सम्बन्ध भी शामिल हैं।
फिर कहना चाहूंगा कि, इस एनकाउंटर को जातिवाद से ऊपर उठकर सामाजिक नजरिये से देखने का प्रयत्न कीजिए। हिसाब लगा लीजिए कि विकास दुबे ने जितनी भी हत्यायें कीं, उनमें मरने वाले ज्यादातर कौन थे-सब कुछ में सब कुछ मत घुसाइए। कुछ मामले अलग होते हैं, अपराधी कोई भी हो। अपराध खत्म करने के लिए जरूरी है कि अपराधी का खात्मा हो।
अब आते हैं ‘न्यायिक प्रक्रिया’ की ओर, जहांपर सबकुछ साक्ष्य पर ही निर्भर करता है, और वो साक्ष्य अदालत में कौन प्रस्तुत करता है, पुलिस। थाने में ही राज्यमंत्री संतोष शुक्ला का मर्डर किया गया। बीस-बीस पुलिस वालों के सामने, सभी गवाही में थे, अदालत में सब मुकर गये। अदालत क्या अपनी तरफ से फांसी दे देगी? जज साहब भी साक्ष्य पर ही फैसला दे सकते हैं।
आपके रक्षातंत्र की आंखों के सामने विकास दुबे अदालत से बाकायदा बाइज्जत बरी हो गया? निचली अदालत, ऊपरी अदालत, हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट, ये सब भी पेशेवर अपराधियों के लिए नहीं हैं। क्योंकि पेशेवर अपराधियों को तो राजनीतिक दल ही सहारा दिये रहते हैं। इसलिए जहाँ सबकुछ सभी की आँखों के सामने प्रत्यक्ष रूप में हो रहा हो, वहाँ दोषी यदि सामने है तो उसे तुरन्त सजा दिया जाना ही उचित है।
कल को जब क़ानून में जरा से भी बदलाव होता है तो यही लोग इसे ‘बाबा साहब के संविधान से छेड़छाड़’ बता के दलितों को भड़काएँगे।’क़ानूनी रूप से न्याय’ की दुहाई देने वालों, विकास दुबे, एक-दो साल से नहीं अपितु 25 सालों से संगठित अपराध और हत्यायें कर रहा था। ऐसा नहीं है कि 25 सालों से आपका प्रदेश बिना सत्ता के है अथवा यहॉं पर न्यायिक सिस्टम नहीं है। पुरे न्यायिक सिस्टम और सरकारों ने उसका क्या उखाड़ लिया?
जो हुआ है वो किसी से लुका-छिपा नहीं है। वही हुआ है, जिसकी आवश्यकता थी और जो होना चाहिए था। इसके आगे भी जो होगा
अच्छा होगा, इस इत्मिनान के साथ मजे में रहिए कि ब्राह्मणों को ही निशाने पर रखने वाले का अन्त हुआ। किस बात का ब्राह्मण-ठाकुर लगाये हुए हैं। सत्ता के शीर्ष पर देख लीजिए। आपके प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी का मुखिया यानी मुख्य सचिव, राजेन्द्र कुमार तिवारी, ब्राह्मण हैं। उसके नीचे आईये तो प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (ग्रह) अवनीश अवस्थी भी ब्राह्मण हैं। प्रदेश के महानिदेशक (पुलिस) हितेश चन्द्र अवस्थी भी ब्राह्मण हैं। एसआईटी के तीनों सदस्या भी क्रमश: संजय भुसरेड्डी, हरिराम शर्मा और रवीन्द्र गौण भी ब्राह्मण ही हैं। उप-मुख्यमंत्री, दिनेश शर्मा भी ब्राह्मण हैं और कानून मंत्री ब्रजेश पाठक भी ब्राह्मण हैं।