फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद

स्त्री इस सृष्टि को जानने का साधन है

औरत हमेशा से एक गहरी समर्पण की दशा में जीती है। उसकी महत्वकांक्षाएँ हमेशा से छोटी छोटी रही हैं। कैसे अपने आसपास के लोगों को खुश करूँ? कैसे किसी चिड़िया के बच्चे को संभाल कर उसे दाना खिला दूँ, उसे चहचाहते देखूं? तितलियों और इंद्रधनुष को देखना चाहती है।

करुणा और समर्पण से भरी होती है स्त्री। न तो चांद पर जाना है, न विश्वविजय अभियान पर निकलना है। बस अपनी छोटी सी दृश्य दुनिया में संतुष्ट है, स्त्री। प्रेम और रिश्ते निभाने में अपना सर्वस्व लुटाती है, स्त्री। सर पर लटकती रहती है तलवार, किसी भी समय जो उसका है, उससे छीना जा सकता है।

फिर भी अपने अंदर की करुणा को उड़ेलती रहती है, स्त्री।
अपने प्रेमी या पति के लिए रसोई, बीमारी में, मां बन जाती है। मुसीबत में दोस्त, बिस्तर पर कामसुत्र की नायिका, शरारत करने में बहन, बन जाती है, स्त्री।

ऐसे ही नहीं हजारों हाथ दिखाए जाते हैं देवी के। स्त्री पुरूष दोनों पूरक हैं एक दूसरे के। सृष्टि इन दोनों के सामंजस्य से ही चलती है। स्त्री को पुरूष के बराबरी में होने की कोई जरूरत नही है।

वह अपने आप में सम्पूर्ण है। बस उससे उसका स्त्रीत्व छिनने की कोशिश न करें। उसे भले न पूजें, देवी न बनाएं, लेकिन उसे उसके अधिकारों से वंचित भी न रखें।

स्त्री मनोरन्जन का साधन नहीं है। स्त्री इस सृष्टि को जानने का साधन है। स्त्री का सम्मान करोगे तो सुखी रहोगे।

Nirvana Roy
Nirvana Roy

 

#निर्वाणा_रॉय की फेसबुक वॉल से साभार

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