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ब्रांच बैंकिंग क्या है? इसके क्या फायदे हैं और क्या नुकसान है?

शाखा बैंकिंग (ब्रांच बैंकिंग) से तात्पर्य एक ऐसी बैंकिंग प्रणाली से है। जिसमें बैंकिंग संगठन, शाखाओं के अपने विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से पूरे देश में, और जहां तक संभव हो, विदेशों में भी अपने ग्राहकों को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करता है। दरअसल, इसका एक केंद्रीय कार्यालय होता है। जिसे प्रधान कार्यालय कहा जाता है। इसी का अन्य कार्यालय भी होता है जो ग्राहकों की सेवा के लिए विभिन्न स्थानों पर स्थापित किए जाते है। जिन्हें शाखा कहा जाता है। इन शाखाओं को उनके क्षेत्रीय या क्षेत्रीय कार्यालयों की मदद से प्रधान कार्यालय द्वारा नियंत्रित और समन्वित किया जाता है।

ऐसे बैंक अपने निदेशक मंडल (बीओडी) के नियंत्रण में रहते है। और जिसका स्वामित्व शेयरधारकों के पास होता है। इसके प्रत्येक बैंक शाखा में एक प्रबंधक होता है जो संबंधित शाखा के प्रबंधन को देखता है। वह इसका प्रभारी होता है। जो कि प्रधान कार्यालय द्वारा समय-समय पर निर्धारित नीतियों और निर्देशों के अनुसार कार्य करते हुए शाखा बैंकिंग कार्य को संचालित करता है। वित्तीय वर्ष के अंत में वित्तीय रिपोर्टिंग के उद्देश्य के लिए, सभी शाखाओं और प्रधान कार्यालय की संपत्ति और देनदारियों का सारांश दिया जाता है।

# ब्रांच बैंकिंग किसे कहते है?
यूं तो ब्रांच बैंकिंग के नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि एक बैंक के बहुत सारे ब्रांचेज होते होंगे। लेकिन हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि ब्रांच बैंकिंग क्या है और यह किस रेगुलेशन के अंतर्गत काम करती है। ब्रांच बैंकिंग के क्या फायदे हैं और क्या नुकसान है। अमूमन जब कभी बैंकिंग की बात आती है तो उसमें एक नाम ब्रांच बैंकिंग का भी आता है जो कि एक महत्वपूर्ण नाम है। यह बैंकिंग सेक्टर के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है।

ब्रांच बैंकिंग को बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 की धारा 23 के प्रावधानों के तहत परिभाषित किया गया है। वह यह कि बैंक या तो नई ब्रांचेज खोल सकते हैं या मौजूदा ब्रांचेज का स्थान बदल सकते हैं। बैंक्स को भारत में या विदेश में या उसी शहर या गाँव में एक नई ब्रांच खोलने के लिए सबसे पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की पूर्व स्वीकृति लेनी होती है जहां पहले से ही एक ब्रांच संचालित होती है। इस तरह के कदम के पीछे मांग बैंक की फिनांसियल स्थिति, उसके प्रबंधन की मजबूती, कैपिटल स्ट्रक्चर और सामान्य जनहित के बारे में संतुष्ट होने के बाद ही आरबीआई इस तरह की अनुमति देगा।

आम तौर पर बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949, बैंकिंग कम्पनी की एक ऐसी ब्रांच मतलब ‘ब्रांच’ या ‘ब्रांच ऑफिस’ को परिभाषित करता है।जहां बैंक डिपाजिट प्राप्त होते हैं। यहां के नकद धन या उधार धन, किसी भी या सभी बैंकिंग सर्विस की जाँच की जाती है। ये बैंक कॉल सेंटर्स को बाहर करते हैं, क्योंकि वे आम तौर पर ऐसी सुविधाएं कहते है। जिनमें कोई कस्टमर संपर्क नहीं होता है। एक ब्रांच में फुल फीचर्ड ब्रांच, एक उपग्रह या मोबाइल ऑफिस, एन एक्सपैंशन काउंटर, एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिस, कंट्रोल ऑफिस, सर्विस ब्रांच, क्रेडिट कार्ड सेंटर आदि शामिल होंगे।

वर्तमान युग में ब्रांच बैंकिंग का महत्वपूर्ण स्थान है। ब्रांच बैंकिंग का अग्रणी इंगलैंड है और संसार के अधिकांश देश उसके अनुयायी हैं। इस धारा के अन्तर्गत देश में बैंक्स की संख्या अधिक नहीं होती किंतु बैंक्स का आकार बड़ा होता है और प्रत्येक बैंक अपनी अनेक ब्रांचेज देश के विभिन्न भागों में खोल देता है। इस प्रकार बैंक्स की संख्या कम होने पर भी उनकी शाखाओं का जाल सारे देश में फैल जाता है। या, “ब्रांच बैंकिंग व्यवस्था उसे कहते हैं, जिसमें एक बैंक की अनेक ब्रांचेज हों और देश के कोने-कोने में या अधिकतर भाग में फैली हों। ऐसी व्यवस्था इंग्लैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया में है।

# ब्रांच बैंकिंग के लाभ क्या है?
ब्रांच बैंकिंग पद्धति के निम्नलिखित लाभ हैं, जिन्हें उठाने के लिए प्रबंधक जहां जागरूक रहते हैं, वहीं उपभोक्ता अपने हितों के प्रति सजग।
पहला, ब्रांच बैंकिंग से अच्छी एवं विस्तृत सेवा मिलती है। ब्रांच बैंकिंग पद्धति में प्राय: प्रत्येक बैंक का आकार बड़ा होता है। उसकी अनेक शाखाएं (ब्रांचेज) होती हैं। इस कारण प्रत्येक बैंक के पास पर्याप्त राशि होती है, जिससे वह अपने कस्टमर्स की सेवा की नवीनतम रीतियाँ अपना सकता है। इसी से वह देश-विदेश में अपनी शाखाओं के जरिए ग्राहकों की अधिक से अधिक सेवा कर सकता है।

दूसरा, ब्रांच बैंकिंग में क्षतिपूर्ति प्रभाव एवं संतुलित आर्थिक स्थिति इसका महत्वपूर्ण लाभ है। इसमें बैंक की अनेक ब्रांचेज होने के कारण असामान्य आर्थिक स्थिति के समय में भी उस पर अधिक बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि जब एक क्षेत्र में परिस्थिति अनुकूल होती है तो दूसरे क्षेत्र में प्रतिकूल होती है। लिहाजा, एक क्षेत्र की कमी को दूसरे क्षेत्र के द्वारा पूरा किया जाता है।

तीसरा, ब्रांच बैंकिंग में जोखिम का विकेन्द्रीकरण होता है। इससे बैंक की नई ब्रांचेज प्राय: कुछ वर्ष बाद ही लाभ देना आरम्भ करती हैं। परन्तु उनकी हानियों की पूर्ति पुरानी शाखाओं (ब्रांचेज) के लाभ से की जा सकती है। इसके साथ ही, यदि किसी ब्रांच में धन की बहुत अधिक मांग होती है तो दूसरी शाखाओं (ब्रांचेज) से उसकी पूर्ति की जा सकती है। इसलिए ब्रांच बैंकिंग पद्धति में छोटे स्थानों में शाखाएं (ब्रांचेज) खोल कर जनता की अहर्निश सेवा की जा सकती है।

चौथा, ब्रांच बैंकिंग में कम नकद कोष होता है। ब्रांच बैंकिंग के अंतर्गत बैंक्स को अपेक्षाकृत कम नकद कोष रखने की आवश्यकता होती है। क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर ब्रांचेज से सहायता मिल सकती है।

पांचवां, ब्रांच बैंकिंग में अच्छा प्रबन्ध किया जा सकता है। इसमें प्रत्येक बैंक अनुभवी एवं योग्य ऑफिसर्स को नियुक्त करते हैं, जिससे बैंक्स की क्षमता एवं सेवा स्तर में सुधार होता है। इससे आम जनता को बराबर लाभ मिलता रहता है।

छठा, ब्रांच बैंकिंग में प्रामाणिक शुल्क एवं ब्याज की दर यथोचित रहती है। इसके अंतर्गत बैंक्स की सेवाओं की शुल्क (फीस) और ब्याज (इंटरेस्ट) आदि की दरें प्राय: समान एवं यथोचित होती हैं, क्योंकि बैंक्स की संख्या कम होने कारण उनमें समझौता होना सरल होता है। वहीं, शुल्क और आय-दरों में एकता होने के कारण बैंक्स में ग्राहक जल्दी-जल्दी नहीं बदलते। जिससे बैंकों तथा ग्राहकों, दोनों को ही लाभ (प्रॉफिट) होता है।

सातवां, ब्रांच बैंकिंग में सम्बंधित बैंक का विकास होता है। क्योंकि बड़े-बड़े बैंकों में अनुभवी प्रबंधक होने के कारण देश में बैंकिंग विकास की योजनाएं उचित रूप बनाकर चलाया जा सकता है। इन बैंकों में शोध विभाग स्थापित हो सकते हैं, जो देश के बैंकों की समस्याओं का उचित समाधान खोज सकते हैं।

# ब्रांच बैंकिंग की हानि क्या है?
ब्रांच बैंकिंग के निम्नलिखित दोष हैं। इसलिए इन्हें लेकर प्रबंधक सदैव सजग रहते हैं। पहला, ब्रांच बैंकिंग में एकाधिकार का भय रहता है। क्योंकि बैंकों की संख्या कम होने से देश के फिनांसियल इंस्ट्रूमेंट्स का एक बहुत बड़ा भाग कुछ लोगों के हाथ में आने की आशंका रहती है। लेकिन, बैंक की व्यवस्था ठीक रहने के कारण इस भय का भी निवारण किया जा सकता है।

द्वितीय, ब्रांच बैंकिंग में साधनों का असंतुलित प्रयोग हो सकता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ब्रांचों की जमा रकमें कुछ थोड़े से इंडस्ट्रियल सेंटर्स में जाकर उपयोग होने लगती है, जिससे अविकसित क्षेत्रों के विकास को हानि पहुँचने का डर बना रहता है।

तृतीय, ब्रांच बैंकिंग में लाल फीताशाही का भी डर बना रहता है। ऐसे बैंकिंग में नीति सम्बन्धी प्रत्येक निर्णय केंद्रीय कार्यालय (सेंट्रल ऑफिस) में ही होता है। इसलिए अनेक बार उसमें देर लगने की आशंका बनी रहती है।

चतुर्थ, ब्रांच बैंकिंग में असफलता की गुंजाइश भी बनी रहती है। यदि कोई बैंक फेल हो जाय तो उसका प्रभाव अनेक स्थानों पर रहने वाली शाखाओं (ब्रांचेज) पर भी पड़ता है, जिससे वे बन्द तक हो जाती हैं। आधुनिक युग में प्राय: सभी देशों में इस प्रकार की व्यवस्था कर दी गयी है कि अब किसी बड़े बैंक के फेल होने की आशंका ही नहीं है।

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