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‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती’ का मतलब कम लागत और विषमुक्त खेती

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज नीति आयोग, भारत सरकार द्वारा ‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती एवं इनोवेटिव एग्रीकल्चर’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअल माध्यम से सम्मिलित हुए। कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अथर्ववेद के ‘पृथ्वी सूक्त’ में कहा गया है कि ‘माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ अर्थात् धरती हमारी माता है और हम उसके पुत्र हैं। धरती माता के प्रति हमारे वेद जिस महिमा का ज्ञान कर रहे हैं, वह आज के परिप्रेक्ष्य में हमारे संस्कारों का हिस्सा हैं। अथर्ववेद का यह मंत्र माँ की महिमा से जोड़कर धरती की गरिमा का गान करता है। इसलिए हम सबका दायित्व है कि भरण पोषण करने वाली धरती माँ का हम संरक्षण करें।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश देश की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। देश की उपजाऊ भूमि का सर्वाधिक भाग उत्तर प्रदेश में है। प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 241 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 165 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती का कार्य किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत 128.73 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में खरीफ की फसल की खेती एवं 129.32 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबी की फसल की खेती की जा रही है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020-21 में प्रदेश में कुल 619 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, जिससे उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादक राज्य बना है। यह हमारे किसानों के परिश्रम और पुरुषार्थ का प्रतिफल है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में वर्ष 2014 से ही किसानों की आय को दोगुना करने के लिए गम्भीरता से प्रयास किये जा रहे हैं। आज इसके बेहतर परिणाम दिखायी दे रहे हैं। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए खेती की लागत को कम करना और उत्पादन को बढ़ाना अनिवार्य है। यह तभी सम्भव है, जब हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, पर्यावरण सुधार, मानव स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार के साथ-साथ कृषकों की आय में भी वृद्धि करने में सफल हों। इन सभी लक्ष्यों की पूर्ति के लिए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने ‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती’ को ही एक मात्र रास्ता बताया है। ‘गौ-आधारित प्राकृतिक खेती’ का मतलब कम लागत और विषमुक्त खेती है। उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता के आरम्भ से ही गौ और गौवंश को मनुष्य का सबसे नजदीकी हितचिन्तक माना गया है। आज भी हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल मंत्र गौवंश है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि खेती में मशीनीकरण के साथ-साथ यह बात समझ में आने लगी है कि छोटे किसानों के लिए बैल न केवल किफायती बल्कि उनके संरक्षक भी हैं। प्रदेश में गौ-आधारित प्राकृतिक खेती के क्रियान्वयन से न केवल हमारे किसान को कम लागत में अच्छा उत्पादन प्राप्त हो सकता है बल्कि स्वास्थ्य के साथ-साथ गौ-संरक्षण का कार्य भी हम इसके माध्यम से करने में सफल हो सकते हैं। इसके माध्यम से गोबर एवं गौमूत्र के विविध प्रयोग से प्रदेश की मृदा संरचना में भी सुधार कर जीवांश कार्बन में बढ़ोत्तरी सुनिश्चित की जा सकती है तथा बड़े पैमाने पर जो धनराशि उर्वरकों, पेस्टीसाइड के आयात में खर्च की जाती है, उसकी भी बचत कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री जी एवं कृषि मंत्री को केन्द्रीय बजट में प्राकृतिक खेती को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 में प्रदेश में गंगा यात्रा निकाली गयी थी, जिसके पश्चात उत्तर प्रदेश में गौ-आधारित प्राकृतिक खेती विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इसमें प्रदेश के 700 से अधिक कृषकों को मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षित किया गया था। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में बड़े भूभाग पर प्राकृतिक खेती की जा रही है। इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।

नमामि गंगे एवं परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत विगत 03 वर्षाें के प्रथम वर्ष में प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा दिया गया। वर्ष 2020 से प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर इस क्षेत्र में अनेक नवाचार किये गये हैं। प्रथम चरण में प्रदेश के 18 मण्डलों में टेस्टिंग लैब स्थापित करने की कार्यवाही, किसानों को उचित दाम मिल सके इसके लिए प्राकृतिक खेती से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्न के लिए प्रत्येक मण्डी में अलग से व्यवस्था बनाने तथा उसकी व्यवस्थित मार्केटिंग के कार्य को आगे बढ़ाया गया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 2020 मंे नमामि गंगे यात्रा के दौरान प्रदेश में गंगा, यमुना, सरयू जैसी पवित्र नदियों के दोनों तटों पर 05-05 किलोमीटर के दायरे में किसानों को प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से औद्यानिक फसल या खेती के लिए अगले 03 वर्षाें तक सब्सिडी देते हुए प्रोत्साहन की व्यवस्था की गयी थी। इसमें कृषि वानिकी को भी सम्मिलित किया गया है। इससे 02 लाख से अधिक कृषकों को जोड़ा गया है। आज उत्तर प्रदेश में लाखों किसानों की रुचि प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ी है और वे इसके माध्यम से अच्छा उत्पादन ले रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हमें कृषि को उर्वरकों एवं पेस्टीसाइड से मुक्त करने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के विभेद को किसानों एवं जनता के समक्ष स्पष्ट रूप से रखना होगा। जैविक खेती में एक चक्र होता है, जिसे पूरा करने के बाद ही यह खेती अपने पूर्व की स्थिति में आती है। लघु एवं सीमान्त किसान इसका इन्तजार नहीं कर सकते। अतः जैविक खेती को अपनाना उसके लिए कठिन होता है, लेकिन प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसान पहले ही वर्ष से गौ-आधारित खेती के माध्यम से अच्छी आमदनी ले सकते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें प्राकृतिक खेती के कार्यक्रम को विस्तार से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश में इस तरह के अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। प्रदेश की 1038 ग्राम पंचायतों में प्राकृतिक खेती विषय पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करते हुए 56 हजार से अधिक कृषकों को व्यवस्थित रूप से प्रशिक्षित किया गया है। दिसम्बर, 2021 में प्रधानमंत्री जी के प्राकृतिक खेती पर वर्चुअल संवाद के सजीव प्रसारण में प्रदेश के 1055 कृषकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। प्रदेश के सभी 825 विकास खण्डों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर इस कार्यक्रम का सजीव प्रसारण कराकर 01 लाख 65 हजार कृषकों को प्राकृतिक खेती अपनाने हेतु प्रेरित किया गया था। राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती से जुड़े अग्रणी कृषकों को उनके उत्कृष्ट योगदान हेतु पुरस्कृत भी किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में 05 कृषि विश्वविद्यालय, 89 कृषि विज्ञान केन्द्र एवं 10 एग्रो क्लाइमेटिक जोन आधारित 10 संभागीय कृषि परीक्षण एवं प्रदर्शन केन्द्र हैं, जो प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं। प्रदेश में भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के अन्तर्गत प्रदेश के 35 जनपदों के लिए 38,670 हेक्टेयर क्षेत्रफल में केन्द्र द्वारा स्वीकृत 82.83 करोड़ रुपये लागत की कार्ययोजना क्रियान्वित की जा रही हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में प्रदेश के 07 जिले सम्मिलित हैं। प्रदेश सरकार यहां पर भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने स्तर से प्रयास कर रही है।

मुख्यमंत्री ने अनुरोध किया कि राज्य सरकार द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केन्द्रों में संचालित गौ-आधारित प्राकृतिक खेती पर शोध एवं प्रशिक्षण हेतु प्रदर्शन के कार्यक्रमों को और प्रभावी बनाने के लिए आई0सी0ए0आर0 की देखरेख में कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि विज्ञान केन्द्रों के साथ-साथ आई0सी0ए0आर0 के संस्थानों द्वारा भी इसे संचालित किया जाए। इससे प्रदेश के विभिन्न एग्रो क्लाइमेटिक जोन हेतु उपयुक्त फसलों व उनकी प्रजातियों का चिन्हीकरण हो सकेगा, जिन्हें कृषकों द्वारा अपनाने से योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन होगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि परम्परागत कृषि विकास योजनान्तर्गत जैविक खेती के लिए 50 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का प्राविधान है। इसमें से कृषकों को प्रोत्साहन हेतु प्रति किसान 31 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर 03 वर्षाें के लिए अनुमन्य है। परन्तु भारतीय प्राकृतिक खेती पद्धति के दिशा-निर्देशों में गौ-आधारित प्राकृतिक खेती हेतु मात्र 21 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर का ही प्राविधान है, जिसमें कृषकों को प्रोत्साहन के रूप में मात्र 02 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर 03 वर्ष के लिए अनुमन्य है।

उन्होंने अनुरोध किया कि इस योजना के अन्तर्गत भी कृषकों के लिए प्रोत्साहन की धनराशि को बढ़ाकर 31 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर 03 वर्षाें के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना (पी0के0वी0वाई0) के समतुल्य किया जाना उचित होगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती या प्राकृतिक खेती से जुड़े कृषकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके उत्पाद का मूल्य संवर्धन एवं विपणन है। इसके दृष्टिगत उन्होंने अनुरोध किया कि योजनाओं के दिशा-निर्देशों में ही मार्केट प्रोमोशन तथा ब्रॉण्डिंग की व्यवस्था भी समाहित करने हेतु समुचित वित्तीय व्यवस्था का समावेश किया जाना चाहिए।

ज्ञातव्य है कि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में नीति आयोग द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने एवं नवोन्मेषी कृषि पर आधारित एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन मंे सभी स्टेक होल्डर्स प्रतिभाग कर रहे हैं। कार्यक्रम में प्रदेश के प्राकृतिक खेती से जुड़े हुए प्रगतिशील कृषकों को भी प्रतिभाग हेतु आमंत्रित किया गया है।

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