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सन्यासी की परंपरागत छवि बदलते योगी

राजनेताओं और सरकारों द्वारा गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति संवेदनशील होने के दावे करना और उनके प्रति संवेदनशील होने में क्या फर्क होता है यह योगी सरकार ने दिखाया और समूचे देश ने देखा। देश ने देखा जब लॉक डाउन के दौरान दिल्ली राजिस्थान महाराष्ट्र जैसे राज्यों से लाखों मजदूरों की भीड़ यकायक यूपी बॉर्डर पर एकत्र हो गई या कर दी गई, तो योगी सरकार ने कैसे रातों रात ना सिर्फ इनके लिए भोजन और ठहरने का इंतजाम कराया बल्कि बसों की व्यवस्था करके इनको इनके गंतव्य तक भी पहुंचाया। पर योगी ने इतना करके इसे ही अपनी जिम्मेदारी का अंत नहीं माना। यह बात एक राजनेता को सामान्य लग सकती है कि जो मजदूर कल तक दिल्ली महाराष्ट्र राजिस्थान जैसे राज्यों के चलते उद्योगों की जरूरत थे, लॉक डाउन के चलते वो चंद दिनों में ही उन पर बोझ बन जाएं और इस प्रकार के हालात उत्पन्न कर दिए जाएं और वे पलायन के लिए मजबूर हो जाएं।

लेकिन एक संवेदनशील योगी को यह घटना अमानवीय लगी और वो कर्मयोगी बन कर यहीं नहीं रुका बल्कि आगे बढ़ा। उसने अन्य राज्यों की सरकारों से कहा कि वे भविष्य में उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को उत्तर प्रदेश सरकार की अनुमति के बाद ही काम पर रख सकेंगे। इतना ही नहीं योगी सरकार ने प्रवासी मजदूरों को राज्य में ही काम देने का वादा किया उनकी आर्थिक सुरक्षा हेतु प्रवासन आयोग का गठन करने का निर्णय लिया जो उनकी नौकरी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ साथ उनका बीमा करके उनका जीवन भी सुरक्षित करेगा। प्रवासी मजदूरों के विषय में वे क्या सोचते हैं उनके इस बयान से समझा जा सकता है कि ” एक भूखा बच्चा ही अपनी माँ को ढूंढता है।”

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