
शाहूजी महाराज की मनाई गई 151वीं जयंती, 1902 में लागू किया था आरक्षण
छत्रपति शाहूजी महाराज स्मृति मंच की तरफ से किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ब्राउन हाल में गुरुवार को छत्रपति शाहूजी महाराज की 151वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। सामाजिक न्याय और आरक्षण के जनक के रूप में विख्यात कोल्हापुर के इस महान शासक के जन्म दिवस पर आयोजित भव्य समारोह में सैकड़ो लोग शामिल रहे। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के अध्यक्ष अर्जुन देव भारती ने कहा की शाहूजी महाराज ने न केवल सामाजिक न्याय की नींव रखी बल्कि यह भी दिखाया कि सच्चा शासक वही है जो अपने समाज के सबसे कमजोर वर्ग की आवाज बनता है, उनकी शिक्षाओं को आज भी हमें अपने जीवन में अपनाने की जरूरत है।
उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए सभी से समता और समानता के सिद्धांतों को आगे बढ़ने का आह्वान भी किया। इस अवसर पर लोकपाल डा.आरआर. जैसवार ने कहा कि शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर में सहकारी संस्थाओं और किसानों के लिए कर्ज सुविधाओं की शुरुआत की, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक स्थिति बेहतर हुई। इससे लोगों की पोषण स्थिति और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार हुआ, क्योंकि आर्थिक समृद्धि स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग को बढ़ावा देती है।
उन्होंने ‘बलूतदारी’ और ‘वतनदारी’ जैसी शोषणकारी प्रथाओं को समाप्त किया, जिससे निचले वर्गों के लोगों को बेहतर जीवन स्तर और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने का अवसर मिला। पदमश्री प्रो. (डा.) एस.एन. कुरील ने कहा कि शाहूजी महाराज ने सामाजिक समानता पर जोर दिया और दलितों, पिछड़े वर्गों, और शोषित समुदायों के उत्थान के लिए कार्य किए। उन्होंने अपने शासनकाल में सार्वजनिक स्थानों पर छुआछूत पर कानूनी प्रतिबंध लगाया, जिससे समाज के सभी वर्गों को स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छता सुविधाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करने में मदद मिली।
यह अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने की दिशा में एक कदम था। उन्होंने समाज में स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहन दिया, जो उस समय के जातिगत भेदभाव के कारण उपेक्षित समुदायों के लिए महत्वपूर्ण था। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे छत्रपति शाहूजी महाराज स्मृति मंच के अध्यक्ष ने कहां की शाहूजी ने 1902 में कोल्हापूर रियासत में दलित और पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। यह आधुनिक भारत में आरक्षण नीति की पहली मिसाल थी, जिसने सामाजिक समानता की नींव रखी। दलित और गरीब बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा शुरू की।