
कुकरैल को स्वच्छ किए बिना प्रदूषण मुक्त नहीं होगी गोमती, 27 सहायक तालाबों को स्वच्छ करने पर हो रहा कार्य
कुकरैल नाला नहीं, नदी है, ये 1920 और 1940 के राजस्व रिकार्ड में दर्ज है। शहर के सैकड़ों गंदे नालों को इसमें जोड़ देने से ये नाला नहीं बन जाएगी। अगर गोमती को प्रदूषण मुक्त करने की चिंता है तो पहले सहायक नदी कुकरैल को साफ करना होगा। ये कहना है बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के डॉ. वेंकटेश दत्ता का। उनके शोध व कार्ययोजना पर प्रदेश सरकार ने कुकरैल नदी के पुनर्जीवन पर कार्य शुरू किया है।
बीबीएयू में पर्यावरण विज्ञान विभाग के डॉ. वेंकटेश दत्ता और उनकी शोध टीम ने इस प्राकृतिक नाले के जीर्णोद्धार के लिए ब्लूप्रिंट तैयार किया है। पिछले पंद्रह वर्षों से गोमती नदी के सहायक प्राकृतिक नदियों पर कार्य कर रहे डॉ. वेंकटेश कुकरैल को उसके वास्तविक प्राकृतिक स्वरूप में लाने के लिए शोधपूर्ण कार्य योजना शासन के समक्ष रख चुके हैं जिसके बाद इसके जीर्णोद्धार का कार्य चल पड़ा है। वह बताते हैं कि कुकरैल ही नहीं राजस्व के इतिहास को खंगालने पर लखनऊ शहर में सात छोटी नदियों का अस्तित्व मिलता है जिनमें कुछ नदियां अब शहरीकरण की भेंट चढ़ चुकी हैं।
बीकेटी के पास से निकलकर 28 किमी चलती है कुकरैल
लखनऊ के बीकेटी के पास अस्तिगांव से कुकरैल नदी का उद्गम होता है। जो करीब चार किलोमीटर शहर में, लगभग 20 किलोमीटर जंगल क्षेत्र से होते हुए करीब 29 किलोमीटर की यात्रा करती है। जिसे नाला बना दिया है वास्तव में वह नदी थी जो गोमती में जाकर मिल जाती है। कुकरेल ड्रेन से कुल डिस्चार्ज 150 एमएलडी है। 90 एमएलडी भरवारा में एसटीपी के लिए जाता है और लगभग 60 एमएलडी गोमती नदी में जाता है।
जलभराव की समस्या हो सकती है दूर
कुकरैल के माध्यम से इंदिरा नगर, तकरोही, आदिल नगर, जानकीपुरम, त्रिवेणी नगर, इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे क्षेत्रों से बरसाती पानी गोमती में जा सकता है। इससे जलभराव की समस्या हल होगी यदि इसे कुकरैल से जोड़ दिया जाए। कुकरैल लगभग 120 छोटे नालों के बराबर बारिश के पानी का निर्वहन करता है।
क्या है कार्ययोजना
-नाले के दोनों ओर पगडंडी, वॉकिंग ट्रेल बनाया जाना
-कुकरैल के दोनों तरफ 200 मीटर मैदान के अतिक्रमण हटाना
-फ्लोटिंग फव्वारे और उद्यान का निर्माण
-उद्गम स्थल पर 80-80 मीटर के पाईप को बढ़ाया जाएगा
-जुगौली झील को पुर्नजीवित कर वेटलैंड बायोडायवर्सिटी पार्क बनाना
-एसटीपी बनाकर शोधित जल फिर से कुकरैल में छोड़ सकते हैं