
हाईकोर्ट से टीजीटी चयनित अभ्यर्थियों को बड़ा झटका, कॉलेज आवंटन मामले में याचिकाएं खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैर- सरकारी इंटर कॉलेज/हाईस्कूलों में विभिन्न विषयों में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षकों (टीजीटी) के पद पर नियुक्ति के लिए वर्ष 2013 में शुरू की गई सीधी भर्ती प्रक्रिया में शामिल अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल याचिका पर विचार करते हुए कहा कि वर्तमान मामला काफी विवादित विषय है। बोर्ड ने कितने पदों के लिए विज्ञापन जारी किया और कितने पदों के लिए परिणाम घोषित किए गए, इसकी कोई प्रासंगिक सूचना नहीं है। कोर्ट ने आगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक चयनित उम्मीदवार के पास भी नियुक्ति का कोई अपरिभाषित अधिकार नहीं होता है।
वर्षों से लंबित वर्तमान भर्ती प्रक्रिया अपने आप में आश्चर्यजनक और निरर्थक प्रतीत होती है, क्योंकि प्रत्येक भर्ती प्रक्रिया को समाप्त करने के लिए एक निश्चित समय-सीमा होती है, लेकिन वर्तमान भर्ती प्रक्रिया वर्ष 2013 में शुरू हुई यानी लगभग 12 साल पहले और अंतिम पूरक चयन सूची वर्ष 2018 में जारी हुई यानी लगभग 7 साल पहले। अतः इतने लंबे समय से जारी भर्ती प्रक्रिया को और अधिक जारी रखना उचित नहीं हो सकता है। अतः न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने गौरव कुमार और अन्य द्वारा दाखिल याचिकाओं के वर्तमान समूह को खारिज कर दिया।
दरअसल याची इस बात से व्यथित थे कि वर्तमान भर्ती में विज्ञापित पदों की संख्या कम कर दी गई, जिस कारण उन्हें चयनित होने के बाद भी कॉलेज आवंटित नहीं किए गए। याचियों का तर्क है कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम, 1982 के नियम 12 के अनुसार बोर्ड को उक्त भर्ती प्रक्रिया में एक लंबा चयन पैनल प्रस्तावित करना चाहिए था।



