पंचतन्त्र-कान भरने की कला भाग-8
राजकुमारों और राजकुमारियों को तो लाड़-प्यार में इस हद तक डुबो कर रखा जाता है कि उनमें से बहुत सारे तो सडऩे की हद तक बिगड़ जाते हैं। राजाओं को राजकाज से इतनी भी फुर्सत नहीं होती कि वे अपने सगे और गैर लड़कों की शक्ल तक में फर्क कर सकें।
ऐसे में उनके चाल-चलन को देखने वाला कौन? और उन्हें रोकने-बरजने का किसी दूसरे में क्या तब! फिर इन निकत्में लड़कों में से किसी के भी किसी भी तरीके से राजा बन जाने पर, वे ही कवि और गुणी-मानी, उनके भीतर से ऐसे-ऐसे गुण तलाश करके रख ही देते हैं कि जिन्हें सुन और देख कर वे स्वंय हैरान रह जाएं।
कुछ समय तक अपने गुणों की तालिकाओं को बार-बार सुनते रहने के बाद वे यह मानने को तैयार हो जाते हैं कि अपने को गुणों, मानी, कवि और विद्वान कहने वाले गुणी और मानी इसलिए हैं कि उन्होंने राजा के उन गुणों को पहचान लिया है, जिन्हें वह स्वंय पहचान नहीं पाया था। इसे छोड़ उनमें दूसरा कोई गुण होते ही नहीं हैं।……….इससे आगे भाग-9 में पढ़िए…