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आईसीसी पर कई अमेरिकी प्रतिबंध, ट्रंप के फैसले की हो रही आलोचना!

मार्च में, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ( ICC ) ने अफगानिस्तान में संभावित युद्ध अपराधों की जांच के लिए आदेश दिया, जिनमें अमेरिकी सेना और केंद्रीय खुफिया एजेंसी द्वारा किए गए अपराध के भी शामिल होने की संभावना है, जिससे बात कर्मियों के अभ्‍यारोपण तक जा सकती है। इसी को देखते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने पिछले गुरुवार को आपातकाल की घोषणा की कि “आईसीसी अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए असामान्य और असाधारण खतरा है।

जिसके मद्देनजर ट्रम्प ने कई प्रतिबंध लगाए। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय ( ICC ) अफगानिस्तान में आरोपित युद्ध अपराधों की जांच करने के समर्थन में ही नज़र आ रहा है। हालांकि, यूएस के सचिव माइक पोम्पिओ ने आईसीसी को ‘कंगारू कोर्ट’ कहकर संबोधित किया है।

आईसीसी और अमेरिकी संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। इन संबंधों में अधिक खटास, वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के शासन के समय से आई है।

आईसीसी क्या है और इसके अमेरिका से कड़वे संबंध क्यों हैं?

 

आईसीसी नीदरलैंड्स के हेग में स्थित एक स्थायी न्यायिक निकाय है। इसे 1998 रोम अंतर्राष्ट्रीय क़ानून न्यायालय के रोम संविधि द्वारा बनाया गया था, और 1 जुलाई 2002 को क़ानून लागू होने पर, यह सक्रिय हो गया। यह उन अपराधों के मामलों पर ध्यान देता है, जो अदंडित रह जाएं। यह नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता जैसे मुख्य अपराधों पर ध्यान देता है। अमेरिका, चीन , रूस और भारत के अलावा 123 राष्ट्र, आईसीसी के अधिकार को मान्यता देते हैं। आईसीसी, यूनाइटेड नेशन्स ऑर्गनाइजेशन का हिस्सा नहीं है। इनके संबंध एक अलग समझौते द्वारा शासित है।

क्लिंटन प्रशासन (1993-2001) के समय, अमेरिका रोम संविधि में शामिल था, और 2000 में दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। लेकिन, 2002 में अगले अमेरिकी राष्ट्रपति ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने हस्ताक्षर वापस ले लिए। साथ ही, उन्होंने अमेरिकन सर्विस मेंबर्स प्रोटेक्शन एक्ट को अपनाया जिससे आईसीसी के पहुंच से अमेरिकी नागरिकों की रक्षा हो सके।

वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2018 में यू.एन. जनरल असेम्बली में अमेरिका के तरफ़ से आईसीसी को कोई समर्थन या मान्यता प्रदान नहीं करने की घोषणा कर दी। उन्होंने बताया कि, “जहां तक ​​अमेरिका का सवाल है, आईसीसी का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, कोई वैधता नहीं है। ”

फिर, 2019 में, आईसीसी के मुख्य अभियोजक फतौ बेन्सौडा (Fatou Bensouda) ने 2003 और 2014 के बीच अफगानिस्तान युद्ध के दौरान किए गए अत्याचारों की औपचारिक जांच के लिए कहा, जिससे अमेरिकी सेना और सीबीआई अधिकारियों के संभावित अभियोगों को सामने रखा जा सके।

अमेरिका के सचिव माइक पोम्पिओ ने इस जांच से जुड़े किसी भी गैर-अमेरिकी नागरिकों पर वीज़ा प्रतिबंध और आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी दे दी। विदेश विभाग ने एक महीने से भी कम समय बाद, अमेरिका का दौरा करने के लिए Fatou Bensouda के वीजा को रद्द कर दिया। फैसला आने के पहले इसे रद्द किया गया था, जिसके वजह से जांच को खोलने की अनुमति नहीं दी गई।

अब क्यों फिर से आईसीसी और अमेरिका की हो रही है बात?

इस वर्ष, मार्च में, आईसीसी के अपील चैंबर ने फतौ बेन्सौडा द्वारा किए गए जांच को खोलने की अनुमति प्रदान कर दी। भले ही अमेरिका आईसीसी का सदस्य ना हो, परंतु अफ़गानिस्तान है, इसलिए आईसीसी आधिकारिक तौर पर अमेरिका की जांच कर सकता है। अब यातना, क्रूर व्यवहार, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर आघात और बलात्कार जैसे कई मुद्दों पर Fatou Bensouda जांच कर पाएंगी।

फिर, 11 जून को अमेरिका के सचिव माइक पोम्पिओ ने व्हाइट हाउस में एक बयान में कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने आईसीसी अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों को अधिकृत किया है। ये वो आईसीसी अधिकारी हैं “जो अमेरिका की सहमति के बिना, राष्ट्र के कर्मचारियों पर जांच करने या उन पर मुकदमा चलाने के किसी भी प्रयास में सीधे मिले हुए हैं। ”

इसके साथ-साथ, इन अधिकारियों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ वीजा प्रतिबंधों को और बढ़ा दिया गया है। यह प्रतिबंध, सिर्फ अधिकारी ही नहीं, बल्कि उनके परिवार या कोई भी सहयोगी जिन्होंने “भौतिक रूप से सहायता, प्रायोजित, या वित्तीय, सामग्री, या तकनीकी सहायता” प्रदान की है, पर लागू होगा। इस फैसले से संभवतः ट्रंप को यह उम्मीद है, कि वे आईसीसी के इस कदम को फिर से पलट सकते हैं। पिछले वर्ष, 2019 में भी वे यह करने में सफल रहे थे।

एक दिन बाद, आईसीसी ने अपने अधिकारियों के लिए समर्थन की घोषणा करके प्रतिक्रिया व्यक्त की, और वाशिंगटन के कदम को “कानून के शासन में हस्तक्षेप करने का अस्वीकार्य प्रयास” कहा। अदालत ने एक बयान में कहा, “आईसीसी पर एक हमला भी अत्याचार अपराधों के पीड़ितों के हितों के खिलाफ एक हमले का प्रतिनिधित्व करता है, जिनमें से कई न्याय की आखिरी उम्मीद का प्रतिनिधित्व करते हैं।”

इससे पहले, अमेरिका ने प्रतिबंध कब लगाए?

ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों ने पहले भी आईसीसी से संबंधित प्रतिबंधों की धमकी दी है। जैसे, 2018 में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने अदालत की सहायता करने वाली किसी भी संस्था के खिलाफ प्रतिबंधों की वकालत की, लेकिन कोई फॉलो-थ्रू नहीं था।

मार्च 2019 में, अफ़गानिस्तान की जाँच को अधिकृत करने या न करने के अदालत के फैसले के आगे, राज्य के सचिव माइक पोम्पिओ ने जांच से जुड़े किसी भी गैर-अमेरिकी नागरिकों पर वीज़ा प्रतिबंध और आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी दी थी और एक महीने से भी कम समय बाद, यूएस का दौरा करने के लिए Fatou Bensouda के वीजा को रद्द कर दिया था ।

जब अपील चैम्बर ने 5 मार्च को निचली सदन के इस जांच को ना खोलने के फैसले को पलट दिया, तो जांच के लिए रास्ता साफ हो गया। फिर, माइक पोम्पिओ ने तुरंत अमेरिकी कर्मियों को लक्षित करने से रोकने के लिए “सभी आवश्यक उपाय” करने का वादा किया। इसी के परिणाम स्वरूप अब अमेरिका ने ये प्रतिबंध लगाए हैं।

आईसीसी पर हुए अमेरिकी प्रतिबंधों पर क्या कह रही है दुनिया?

इज़राइल ने अमेरिका के फैसले का स्वागत किया, प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने आईसीसी पर अपने देश के खिलाफ “अपमानजनक आरोप” लगाने का आरोप लगाया। वहीं, यूनाइटेड नेशन्स के मानवाधिकार कार्यालय ने 12 जून को कहा, “आईसीसी के स्वतंत्र और बिना हस्तक्षेप ऑपरेशन करने की क्षमता को सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि वे फैसलों को बिना अनुचित प्रभाव, प्रलोभन, दबाव, धमकी या हस्तक्षेप, के ले सकें।” उन्होंने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की।

जर्मनी को आईसीसी के सबसे मजबूत समर्थकों में से एक माना जाता है। उन्होंने इस प्रतिबंध पर चिंता व्यक्त की और बताया, “हमने स्वतंत्र अदालत, उसके कर्मचारियों और इसके साथ काम करने वालों पर दबाव डालने के किसी भी प्रयास को अस्वीकार कर दिया है।”

फ्रांस ने अमेरिका से इन प्रतिबंधों को वापस लेने का आग्रह किया है। विदेश मंत्री ज्यां-यवेस ले ड्रियन ने एक बयान में कहा, “अमेरिका का फैसला, रोम संविधि के लिए अदालत और राज्यों की पार्टियों पर एक गंभीर हमले का प्रतिनिधित्व करता है, और इसके अलावा, बहुपक्षीयवाद और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए एक चुनौती है।”

फ्रांस ने अदालत के लिए अपना पूर्ण समर्थन दोहराया। उन्होंने अमेरिकी प्रतिबंधों की निन्दा करते हुए कहा है कि कानून के शासन और न्यायालय की न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने के लिए एक बड़ा और अस्वीकार्य प्रयास है”। ले ड्रियन ने कहा, “फ्रांस यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से अपने मिशन को पूरा करने में सक्षम हो।” वहीं, डच विदेश मंत्री स्टेफ ब्लोक ने आईसीसी को “निपुणता के खिलाफ लड़ाई में और कानून के अंतर्राष्ट्रीय शासन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण” कहा, और कहा कि वह आईसीसी के खिलाफ अमेरिका के प्रतिबंधों से बहुत परेशान थे।

क्या अमेरिकी जनता है, इन प्रतिबंधों के पक्ष में?

‘दी वॉशिंगटन पोस्ट‘ में छपे एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के अधिकांश लोग, आईसीसी का समर्थन करते हैं और अमेरिकी विश्व नेतृत्व और मानव अधिकारों के बारे में चिंतित हैं। इन चिंताओं का मतलब हो सकता है कि ट्रम्प के बावजूद, अमेरिकी आईसीसी का समर्थन करना जारी रखेंगे। हालांकि, आईसीसी ने प्रतिबंधों के बावजूद अपने आधिकारियों का समर्थन किया है, परंतु यह देखना रोचक होगा कि, क्या इस बार भी आईसीसी (ICC) अपने कदम पीछे पलटती है?

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