एनालिसिस

न्याय तो Judiciary में भी ढ़ूंढे नहीं दिख रहा

कानून के राज पर आधारित हमारी कानूनी व्यवस्था में मुख्य न्यायाधीश समेत कोई भी इससे ऊपर नहीं है। बेशक भारत के मुख्य न्यायाधीश को खंडपीठ गठित करने का अधिकार है, लेकिन यही माना जाता है कि वह इस अधिकार का उपयोग न्यायोचित तरीके से करेंगे, मनमाने ढंग से नहीं।

सरकार, राष्ट्रीय न्यायिक आयोग कानून को लागू करने का मौका देख रही है। जिसे जजों ने खारिज कर दिया है। दुर्भाग्य से जजों ने यह नहीं समझा है कि मौजूदा विवाद के जरिये वे सरकार को इसका रास्ता दे चुके हैं, जिसका उपयोग वह जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कर सकती है।

भारत सौभाग्यशाली है कि आजादी के बाद से इसके पास एक स्वतंत्र न्यायपालिका (Judiciary) है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीश, एचoआरo खन्ना और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जगमोहन लाल सिन्हा ऐसे समय में उसे ऐसी बुलंदी पर ले गए जब न्यायपालिका (Judiciary) बुजदिल थी और जब अपना-अपना घर भरने का फैशन था।

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