एनालिसिस
न्याय तो Judiciary में भी ढ़ूंढे नहीं दिख रहा
इस धारणा के कारण भी कि जजों से मनचाहा काम कराया जा सकता है। मुवक्किल और वकील कथित तौर पर खास जज के यहां सुनवाई कराने की साजिश रचते हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब फैसले लोगों के समर्थन में, कमजोरों के समर्थन में और पर्यावरण के समर्थन में होते थे।
कानून की व्याख्या इस तरह की जाती थी कि आम लोगों को राहत मिले और लुटेरे बिल्डरों के खिलाफ हरियाली की रक्षा की जाती थी। न्यायपालिका (Judiciary), खासकर उदारीकरण के बाद से आमजन को छोड़कर शक्तिशाली और जंगल एवं जानवरों को नष्ट करने वालों के पक्ष में जाती हुई दिखाई देती है।
न्यायपालिका (Judiciary) ने विधायिका के अधिकारों को भी जोरदार तरीके से हथियाने का प्रयास किया है। न्यायपालिका (Judiciary) सार्वजनिक जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। राजनीतिज्ञों को सिर्फ कानून के जरिये अनुशासित किया जा सकता है। अगर सुप्रीम कोर्ट के जज सिर्फ अपने बारे में ही सोचेंगे और कानून के बारे में नहीं तो वास्तव में लोकतंत्र पर खतरा अवश्यम्भावी है।
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