
GPO,प्रदेश की राजधानी का प्रधान डाकघर भारी भरकम अव्यवस्थाओं का गढ़ बनकर रह गया है। ध्यान रहे GPO, वीवीआईपी एरिया में स्थित होने के कारण, यहां की सेवाओं (वह भी दुखभरी) का उपभोग करने वाला कोई गांव-गिराव का मनई न होकर प्रतिष्ठित लोग ही हैंl फिर भी वे परेशानी दर परेशानी झेल रहे हैं।
स्पीड पोस्ट/रजिस्ट्री की लम्बी-लम्बी लाइनें रोजाना आपको देखने को मिल जायेंगी। इस संवाददाता ने आज तक नहीं देखा कि स्पीड पोस्ट/रजिस्ट्री के सारे काउण्टर एक साथ खुले हों और कार्य कर रहे हों। दो खुले होंगे तो तीन या तो बन्द रहते हैं अथवा उस पर बैठा क्लर्क जनता को दूसरे भीड़ लगे काउण्टर पर टरका देता है।
यही हाल सेविंग/पी.पी.एफ. का पैसा जमा करने वालों का भी है। इसके एक ही काउण्टर हैं। मार्च के अंतिम भीड़ भरे सप्ताह में भी दूसरा काउण्टर नहीं खोला गया। सम्पर्क करने पर कोई अधिकारी मिलता ही नहीं। चीफ पोस्टमास्टर से दो बार मिलने का प्रयास किया गया और दोनो ही बार वे नदारद मिले। कौन उनके नीचे है, आम जनता ये जान ही नहीं पाती है।
काउण्टर के पीछे बैठे कर्मचारी भी कुछ नहीं बतातेl बस यही कहते हैं कि लाइन में लग जाइये और काम कराइये। सारा लोड GPO पर ही है कहां तक झेला जाये। हम स्वयं ही परेशान हैं, जनता की परेशानी देखने लगे तो क्या अपनी चिता जला लें। ये कह नहीं सकते कि उनसे मिलिये। अधिकारी के पास एक भी ग्राहक न पहुंचे, यह उनका निर्देश है।
क्या उन्हें नहीं दिखाई देता कि GPO कैसे चल रहा है। जब वे सारा कुछ देखकर भी कुछ नहीं करना चाहते तो हम क्या कर सकते हैं। हम अपने काउण्टर पर अपना काम तो कर ही रहें हैं ना। दबी जुबान तभी बगल वाले ने कहा कि जब हम कर्मचारी ही ऊपर के अधिकारियों विशेष तौर पर एसएसपी से……। बताइये बीस साल हो गये यहां नौकरी करतेl अब कह रहे हैं कि नौकरी के समय जो दस्तावेज दिये थेl
उसकी मूल कापी जमा करो। दरअसल अभी हाल ही में प्रवर डाक अधीक्षक ने कर्मचारियों को एक पत्र जारी किया है कि आपकी सेवा पुस्तिका को आनलाइन किया जाना है। अतः नियुक्ति के समय का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र, पुलिस की जांच रिपोर्ट और जाति प्रमाण पत्र की मूल प्रतियां जमा करें। इन्हीं कर्मचारियों में इस बात को लेकर कुंठा हैl कि ऐसे-ऐसे बेवकूफी के और प्रताड़ित करने वाले आदेश निकाल दिये जाते हैl
अच्छा भला कर्मचारी परेशान हो और काम न करे। अब स्वास्थ्य का मूल प्रमाण पत्र तो तभी दे दिया, अब कहां से लायें। जब हमारे ही साथ ऐसा अन्याय है तो जनता को कौन पूछे। कर्मचारियों का दुख वास्तव में सही है। लगता है जनता को परेशान करने का यहां के अधिकारियों ने मन बनाया हुआ है। बचत खाते का एक ही काउण्टर है, उस पर लम्बी-लम्बी लाइन रोजाना ही लगती हैl यही हाल पीपीएफ काउण्टर, एन.एस.सी. काउण्टर, एवं अन्य काउण्टरों का भी है।

आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि पूरे जी0पी0ओ0 में पासबुकों में एण्ट्री करने का भी एक ही काउण्टर हैl वह भी टाइम से बन्द हो जाता है। लाखो-करोड़ों की जमा डाकघर में होती है, लेकिन पासबुक में एण्ट्री करने के लिये एक ही मशीन है। मेरा कहना है कि पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ विभाग धन जमा करने की स्कीमों को सुचारू रूप से चला नहीं पाता तो फिर ये जिम्मेदारियां इसे दी ही क्यों गई हैं।
क्या बचत खातों/पीपीएफ/एनपीएस आदि की पोर्टेबिलिटी की व्यवस्था करने में अपने को अक्षम पाता है। पीपीएफ में किसी को यदि डेढ़ लाख रूपये जमा करना है तो कम से कम आधा घंटा उसे काउण्टर पर लगता हैl क्योंकि नोट गिनने की मशीन किसी भी काउण्टर पर नहीं है। कर्मचारी हाथ से गिनता है, और जरा सा डिस्टर्ब हुआ तो पुनः गिनती और फिर पुनः गिनती। लखनऊ में डाक सेवाओं के निदेशक और महानिदेशक, GPO के पीछे ही डाकघर अधिकारी आवास बना हुआ हैl

जिसमें प्रधान महाप्रबन्धक आर0एस0 सिंह, आईपीएस के अधिकारी एवं एस0एन0 त्रिपाठी बैठते हैं। लेकिन किसी के पास फुर्सत नहीं है कि एक नजर GPO पर डालें और जनता की परेशानी को हल करें। हालात इतने बदतर है कि यहां के इंस्पेक्टर भी अपने को सी.बी.आई. का इंस्पेक्टर समझते हैं। ग्राहकों से ऐसे बात करते हैं गोया ग्राहक उनका गुनहगार हैl और वे जांचकर्ता अधिकारी… इनकी कारस्तानी आगे..।
खबर लखनऊ से
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