डायबिटीज (मधुमेह) के मरीजों के लिए एक राहत भरी खबर है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के डॉक्टरों ने एक ऐसा बायोमार्कर खोजा है, जिससे किडनी की बीमारी (सीकेडी) का पता बीमारी शुरू होने से पहले ही लग सकेगा। यह खोज पेशाब की जांच के माध्यम से बिना किसी सर्जरी या रक्त जांच के संभव है। यह शोध आईसीएमआर के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च एंड एक्सीलेंस (केयर) प्रोजेक्ट के तहत मौलिक्यूलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी विभाग में किया गया। इस शोध को प्रो स्वस्ति तिवारी के नेतृत्व में किया गया, जिसमें में एसजीपीजीआई के डॉ धर्मेंद्र के चौधरी, डॉ सुखान्शी कांडपाल, डॉ दीनदयाल मिश्रा और डॉ बिश्वजीत साहू के साथ पुड्डुचेरी के सामुदायिक चिकित्सा विशेषज्ञ भी शामिल रहे।
पांच साल में 1000 मरीजों पर अध्ययन
प्रो स्वस्ति तिवारी ने बताया शोध की शुरुआत वर्ष 2019 में हुई, जिसमें लखनऊ और पुड्डुचेरी के करीब 1000 मधुमेह रोगियों को शामिल किया गया। इन रोगियों का लगभग पांच साल तक फॉलोअप किया गया। बायोमार्कर को मानव मूत्र में मौजूद नैनो आकार की पुटिकाओं (एक्सोसोम) में पहचाना गया है, जो कि बाल से भी हजारों गुना छोटे होते हैं।
पेटेंट की प्रक्रिया और राष्ट्रीय पहचान
इस तकनीक को मार्च 2024 में पेटेंट के लिए भारतीय पेटेंट कार्यालय में दर्ज किया गया है। इसकी उपयोगिता को देखते हुए आईसीएमआर ने इसे अपनी 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया है।
देश में पहली बार मूत्र एक्सोसोम से निदान
प्रो स्वस्ति तिवारी ने बताया कि भारत में यह पहली प्रयोगशाला है। जिसने किडनी रोग के लिए मूत्र एक्सोसोम की उपयोगिता साबित की है। इसके अलावा, विभाग ने राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित कर अन्य डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को भी इस तकनीक से प्रशिक्षित किया।
विशेषज्ञों ने गिनाए फायदे
विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज डायबिटीज के मरीजों के लिए उम्मीद की एक नई किरण है। इससे बीमारी समय रहते पकड़ में आएगी और मरीज गंभीर किडनी फेल्योर या दिल की समस्याओं से बच पाएंगे।
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