पंचतंत्र

PanchTantra की कहानी-King & Damanak भाग-18

पंचतंत्र के बेकार का पचड़ा भाग-17 में आपने पढ़ा कि ……..

Damanak ने बताया कि महाराज, योग्य लोग तो कहीं भी पैदा हों, अपनी योग्यता से दुनिया को यह बात और दिखा ही देते हैं कि वे क्या हैं।

अब इससे आगे पढ़िए, भाग-18 …………

Damanak बोला, जन्म से कोई भी ऊंच-नीच नहीं होता। इसी तरह सेवक चुनते समय इस बात का भी कोई तुक नहीं कि कौन अपने परिवार का है और कौन बाहर का। चुहिया यदि अपने घर में ही पैदा हुई हो तो भी उसको मार डालना चाहिए, क्योंकि वह नुकसान छोड़ और कुछ नहीं कर सकती है। पर चूहों की सफाई करने वाली बिल्ली को पराए घर से भी लाकर पाला-पोसा जाना चाहिए।

Damanak ने सीधे तो नहीं कहा कि आप के आसपास मूर्खों और निकम्मों की भीड़ लगी है, जिनके ऊपर भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन घुमा फिराकर वह कह यही रहा था। वह बोला भिंडी के डंठल, रेंड़ के तने, मदार और नरकुल के गठ्ठर से जिस तरह खंभा नहीं बनाया जा सकता उसी तरह मूर्खों की भीड़ जुटा लेने से अकल की एक बात भी नहीं निकाली जा सकती।

Damanak बोला, राजा के पास वफादार लोगों की भीड हो भी, पर वे कायर हों तो उनसे भी उसका कोई भला नहीं हो सकता। इसी तरह उसके पास जीवट के लोग हों पर राजा की बुराई की ताक में रहते हों तो उनके होने से नुकसान छोड़ कुछ नहीं हो सकता। इसलिए आप को मेरे जैसों का मोल समझना चाहिए जो वफादार भी हैं और जिनमें जीवट भी है। Damanak ये बातें राजा पिंगलक से कह रहा था।

पिंगलक राजा था। वह इतनी आसानी से कोई बात कैसे मान लेता। उसने कहा, तुम्हारी बात में दम भी हो सकता है। पर बड़ी-बड़ी बातें करने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। मेरे लिए इस बात की कोई कीमत नहीं कि तुम समर्थ हो या असमर्थ। कीमत इस बात की है कि तुम मेरे पुराने मंत्री के पुत्र हो इसलिए तुम्हें जो कहना हो निडर होकर कह सकते हो।

Damanak बोला, महाराज मैं एक ही अर्ज करना चाहता हूं। पिंगलक ने उसे उकसाया, तो फिर वही कहो ना। इतना घुमा-फिरा कर कहने का क्या मतलब है।
इसके आगे भाग—19 में पढ़ियेग़ा……….

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