
Bhagat Singh अमर शहीद भाग-तीन
Bhagat Singh अमर शहीद भाग-दो में आप यहॉं तक पढ़ चुके हैंl
कि उन्होनें रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ बंगाल से संपर्क साधना शुरू किया।
अब इससे आगे पढ़िए—
जो उस समय क्रान्ति का मुख्य केंद्र था। इसके नेता सचीद्र नाथ सान्याल थे।
पार्टी की सदस्यता के लिए यह शर्त होती थीl
कि नेता द्वारा क्रांति से जुड़े कार्यों के याद किये जाने पर उसे घर छोडऩे के लिए तैयार रहना होगा।
Bhagat Singh की दादी की इच्छा थी कि अब उनकी शादी हो जानी चाहिए।
उनके लिए उन्होंने लड़की भी देख ली थी।
लेकिन शादी तय होने के दिन ही भगत सिंह घर छोड़ कर चले गए।
जाते-जाते घर वालों के लिए वह खत छोड़ गए थे।
जिसमें लिखा था-मेरी जिंदगी का लक्ष्य देश की आजादी के लिए लडऩा है।
मैं भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं पडऩा चाहता। मेरे उपनयन (हिन्दू धर्म में दीक्षा संस्कार समारोह) के मौके पर मेरे चाचा ने मुझसे एक पवित्र वचन लिया थाl
आज मैं उनसे वादा करता हूं कि मैं अपने आप को देश के लिए बलिदान कर दूंगा।
बाद में Bhagat Singh कानपुर आ गए। यहां खर्च चलाने के लिए वे अखबार बेचते थे।
यहीं उन्हें प्रसिद्ध क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में पता चला।
विद्यार्थी का अखबार प्रताप उस समय देश में आजादी के आन्दोलन की आवाज माना जाता था।
उन्होंने Bhagat Singh को अपने प्रेस में नौकरी पर रख लिया लिया।
धीरे-धीरे भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह के संपर्क में आए और वह हिन्दुस्तान एसोसिएशन में शामिल हो गए।
बाद में इस संगठन को समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष रूप देने के लिए भगत सिंह,चंद्रशेखर आजाद तथा अन्य सदस्यों ने इसका नाम कर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया।
१९२६ में भगत सिंह, सुख देव, भगवती चरण वोहरा और अन्य साथियों ने समाजवादी विचारधारा के प्रचार, ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सीधी कार्रवाई की जरूरत को समझने और पार्टी के लिए युवकों की भर्ती करने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया।
१९२० में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो भगत सिंह ने सिर्फ १३ साल की उम्र में ही इसमें बढ़—चढ़ कर हिस्सा लिया था।
उन्हें पूरी आशा थी कि गांधी जी एक दिन जरूर भारत को आजादी दिलाएंगे। १९२२ में गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में एक जुलूस का आयोजन किया गया था।
इस दौरान आंदोलनकारियों ने पुलिस की बर्बरता का जवाब देने के लिए २२ पुलिसकर्मियों को एक थाने में बंद कर आग लगा दी।
सभी पुलिसकर्मी आग में जलकर राख हो गए।
इससे पहले कुछ इसी तरह की हिंसक घटनाएं बाम्बे (अब मुंबई) और मद्रास में हो चुकी थीं।
महात्मा गांधी इन घटनाओं से बहुत दुखी हुए, क्योंकि वह अहिंसा के समर्थक थे और बिना किसी मार-काट के आजादी पाना चाहते थेl
जबकि क्रांतिकारी हिंसा के रास्ते स्वतंत्रता हासिल करना चाहते थे।