जन संसद
Yogi की मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश?
Uttar Pradesh की पूरी की पूरी Yogi सरकार नवरात्रि और दशहरे के कर्म-कांड और जश्न में चार दिन डूबी रही। अब जब सरकार के मुखिया Yogi खुद एक पीठ के मुख्य महंत के तौर पर मंदिर में रोज पहले की भांति घंटों हवन और पूजा पाठ कर रहे हो तो मंत्री भी तो उनका कुछ तो अनुसरण करेंगे और थोड़ा-बहुत ढकोसला भी करेंगे…..
मुख्यमंत्री Yogi Adityanath पिछले तीन-चार दिनों से गोरखपुर की गोरखनाथ पीठ में डेरा डाले रहे और मंत्री अपने-अपने गृह नगर में। उधर राजधानी लखनऊ में शासन-प्रशासन करीब-करीब ठप रहा। गुरुवार को उन्होंने सप्तमी पूजन किया। शुक्रवार को महागौरी का।
कन्या पूजन और बटुक पूजन के बाद वे मंदिर स्थित अपने कक्ष में ध्यान लगाने चले गए। इसके बाद Yogi शनिवार को दशहरे के परंपरागत पोशाक में जेड सिक्युरिटी के साथ जुलूस में शामिल हुए और मानसरोवर पहुंचकर राम, सीता, शिव और हनुमान का पूजन भी किया।
क्या किसी मुख्यमंत्री को जिसने विधि द्वारा स्थापित संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने तथा शुद्ध अंतःकरण से अपने कर्तव्यों के यानी राज्य के प्रति न कि अपनी पीठ, संस्था के प्रति निर्वहन की शपथ ली हो, यह शोभा देता है कि वो किसी एक ही धर्म विशेष के प्रति अनुराग के साथ इतना आसक्ती भाव दिखाएँ और वहीं अपने मुख्य संवैधानिक दायित्व से विरक्ति के साथ दूरी बनाएँ।
अब सवाल यह है कि हमारे नेतागण सत्ता संभालने के बाद इतने कर्मकाण्डी और उत्सव धर्मी क्यों हो जाते हैं और जो पहले से ढकोसले और कर्मकांड पर यकीन करते हैl उनका धार्मिक पारा तो दस डिग्री ऊपर चढ़ना तय ही है।
BJP के नेताओं और मंत्रियों में यह आडम्बर ज्यादा ही छलकता हैl फिर ऐसे में यदि Yogi Adityanath जैसे मठाधीश मुख्यमंत्री हो तो यह आडम्बर फूहड़ता की हद पर कर जाता है।
किसी भी व्यक्ति या नेता को अपने संवैधानिक दायित्व के साथ-साथ धार्मिक पूजा पाठ करने पर कोई मनाही नहीं है, यह उसकी व्यक्तिगत आस्था और स्वतंत्रता का मामला हैl पर वह बिना ढिढोरा पीटे भी यह कर सकता है।
किसी भी धार्मिक अवसर पर सार्वजनिक नुमाईश और उग्रता का प्रदर्शन गलत हैl हमारे संविधान की भावना के विरुद्ध भी है। कम से कम किसी संवैधानिक पद पर विराजमान व्यक्ति को इतना पाखण्ड शोभा नहीं देता। लेकिन यदि वह कोई जिम्मेदारी पूर्ण पद धारण करता हैl तो उससे पद के अनुरूप संविधान सम्मत मर्यादित आचरण की तो उम्मीद की ही जा सकती है।
यहाँ सीएम Yogi के इस तरह सार्वजानिक प्रदर्शन का यह पूरा मसला और उसका फूहड़ प्रचार जमीनी मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश भी हो सकती है। हमारा लोकतंत्र सत्तर साल बाद भी ऐसे ही नेताओं के कारण परिपक्व नहीं हो पाया है। अफसोस तो यह है कि राजनीतिज्ञ संविधान पढ़ते कहा हैं?
पत्रकार पूर्णेन्दु शुक्ल की फेसबुक वाॅल से…..
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