फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद
धान बोने पर भी लोग धान बोने लगते हैं
फ़ेसबुक की दुनियां में अधीरता और व्यग्रता का पैमाना देखिये .
कल मैने #धान_बोने की #लोकोक्ति के साथ एक पोस्ट क्या डाली कि #Facebook पर #ज्ञान_गंगा का #उफान सा आ गया । अब लोगों को धान बोने से दिक्कत हुई या उसके साथ लगे फ़ोटो से यह तो वही जाने,लेकिन जिन्हें मालूम न हो उन्हें बता दें कि खेती-किसानी न सिर्फ मेरा पैतृक पेशा है बल्कि मुझे खुद गेंहू, धान ही नही बल्कि गन्ने की खेती का खासा अनुभव है।
मुझे यह भी अच्छी तरह मालूम है कि “जो बोया जाता है वही काटा जाता है”
#धान_बोने” को लेकर इतने गहरे शाब्दिक ज्ञान का अनुभव कराने वाले जरा ये लोकोक्तियां सुनें।
#गहिर_न_जोतै_बोवै_धान।
#सो_घर_कोठिला_भरै_।
अर्थ – अगर किसान गहरी जुतायी न करके धान बोयें तो उसकी पैदावार ख़ूब होती है।
#कुलिहर_भदई_बोओ_यार।
#तब_चिउरा_की_होय_बहार।।
अर्थ – कुलिहर (पूस-माघ में जोते हुए) खेत में भादों में पकने वाला धान बोने से चिउड़े का आनन्द आता है- अर्थात वह धान उपजता है।
#पूख_न_बइए,
#कूट_के_खइए।
अगर सही समय धान नहीं बोता है, तो किसान को कूटकर खाना पड़ता है।
और अब सुनिये खालिस फर्रुखाबादी कहाबत
#अब_तौ_धान_बइ_दए_हमने!#अब_करि_लियउ?
विमल पाठक
वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार
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