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छवि ना हुई, ईंट-गारे की बिल्डिंग हो गई

छवि ना हुई, ईंट-गारे की बिल्डिंग हो गई कि पहले येन-केन प्रकारेण बनाई जायेगी फिर उसे रंग-रोगन से पोता और चमकाया जायेगा।

! बहरहाल!

आरएसएस ने फैसला किया है कि कोरोना, महंगा हवाई जहाज खरीदने और सेंट्रल विस्टा के कारण मोदी की खराब हुई छवि को चमकाने के लिए वह जल्द ही मोर्चा संभालेगा !————
संघ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की खराब हुई छवि को लेकर भी चिंतित है। आरएसएस के पास इस बात की पुख्ता सूचना है कि योगी बाबा से एक तरफ तो वे पिछड़ी जातियां नाराज हैं, जो भाजपा की कोर वोट बैंक रही हैं, तो दूसरी तरफ वे ब्राह्मण देवता भी गुस्सा हैं, जो भाजपा की पालकी ढोने को अपनी शान समझते हैं ?
सो, आरएसएस ने ठान लिया है कि वह योगी और मोदी के चेहरे की कालिख को साफ करेगा, फिर उनका चमकता हुआ चेहरा जनता को दिखाया जाएगा कि देखो, कैसा चमक रहा है?
उसने यह मान भी लिया है कि काले चेहरों में उसके द्वारा जो चमक पैदा की जाएगी, नकली चमक, उसे जनता भी असली चमक मान लेगी? यह सोच इस बात की प्रमाण है कि आरएसएस हम भारत के लोगों को निहायत मूर्ख मानता है।
बहरहाल, यहां-वहां भटकने का कोई इरादा नहीं है, आज बात सिर्फ आरएसएस की मजबूरियों की है, कि आखिर वह भाजपा को हर हाल में सत्ता में क्यों रखना चाहता है?

पहले आरएसएस की मजबूरी को इन दो उदाहरणों से समझें…।

1-उद्धव ठाकरे ने घोषणा कर दी कि महाराष्ट्र में सरकार का नेतृत्व तो शिवसेना ही करेगी, भाजपा को साथ आना हो तो आए, न आना हो तो न आए। तब मोहन भागवत मातोश्री गए, उद्धव ठाकरे ने उनसे दो घंटे तक इंतजार कराया, फिर तीन मिनट के लिए मिले और अपना स्टैंड साफ कर दिया कि सरकार का नेतृत्व तो शिवसेना ही करेगी।
इससे पहले कभी कोई संघ प्रमुख मातोश्री नहीं गया था। बाल ठाकरे नागपुर को ठेंगे पर रखते थे ?
2- आरएसएस का कोई प्रमुख कभी बाल ठाकरे तक से नहीं मिला, लेकिन बंगाल चुनाव के लिए मिथुन चक्रवर्ती को भाजपा में शामिल कराने के लिए भागवत मुंबई गए, मिथुन के घर गए और बाद में मिथुन चक्रवर्ती भाजपा में भी शामिल हुए।
ये दो उदाहरण बताते हैं कि अब संघ सत्ता में भाजपा को रखने के लिए बेचैन होने लगा है, तो क्यों ?
मेरी समझ में इसके निम्नलिखित कारण हैं।
1-सत्ता होती है, तो संघ कार्य में गति आ जाती है। यानी, शाखाओं की संख्या बढ़ जाती है। शाखाओं में जाने वालों की संख्या बढ़ जाती है।
हालांकि ये संख्या बढ़ती इसलिए है कि हाफ से फुल पेंट को पहनकर शाखा में जाने से अगर विधायक पर दवाब बनता है, मंत्री से कोई काम निकल जाता है, किसी बेरोजगार को नौकरी मिल जाती है, व्यापारी को लोन मिल जाता है, सरकारी योजनाओं का फायदा मिलता है, तो चतुर आदमियों के लिए शाखा में जाना कोई घाटे का सौदा नहीं है ? उनके लिए भी ये घाटे का सौदा नहीं है, जो पुलिस-प्रशासन की दलाली करना चाहते हैं ?
2-जब सरकार होती है, तो जमीन के जिस टुकड़े की तरफ उंगली उठा दो, वह चाहे कितना भी महंगा हो, मिल जाता है, फिर उसमें चाहे अपना या अपने किसी संगठन का कार्यालय खोल दो, वह जगह किसी को किराए पर देकर कमाई करो, चाहे मकान बना लो, चाहे मंदिर बना दो-चार स्वयंसेवकों के लिए कमाई का पुख्ता इंतजाम कर दो ?
3-जब सरकार होती है, तो आरएसएस के स्कूलों, कॉलेजों, कोचिंग में ज्यादा एडमिशन होने लगते हैं। लोगों को लगता है कि यहां पढ़ाएंगे, तो बालक को नौकरी मिल जाएगी, क्योंकि इनकी सरकार है ?
4-जब सरकार होती है, तो स्वयंसेवक डंके की चोट पर दंगे कर सकते हैं और कानून में हिम्मत नहीं कि उनका बाल भी बांका कर दे, बल्कि कानून पीड़ित को उठाकर ही जेल में पटक देता है।
अब आरएसएस के सामने एक मजबूरी और पैदा हो गई है।
मोदी ने देश को गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, के भाड़ में झोंक दिया है, जिससे आरएसएस की छवि खराब हुई है, न कि मोदी या भाजपा की, क्योंकि मोदी की अपनी कोई छवि नहीं है, वे मीडिया द्वारा स्थापित ब्रांड हैं, जबकि भाजपा आरएसएस की दासी है ?
सो, जो भी हो रहा है, उससे आरएसएस की छवि ध्वस्त हो गई है।

अगर बीजेपी सत्ता से हटी तो आरएसएस का किला भरभराकर गिर जाएगा ?/

 

Naresh Dixit, Editor
Naresh Dixit, Editor
नरेश दीक्षित
सम्पादक
समर विचार  

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