अप्रैल में 22 प्रतिशत कर्जदार नहीं चुका सके बैंकों की ईएमआई
महामारी की दूसरी लहर कर्जदार को किस बैंकिंग क्षेत्र की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। निजी और सरकारी बैंकों की आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल में उनके 22 फ़ीसदी खुदरा कर्जधारको ने एमआई का भुगतान नहीं किया है। ग्राहक अगर दो और किस्त और डिफॉल्ट करते हैं तो बड़ी मात्रा में कर्ज की राशि एनपीए में चली जाएगी।
आरबीआई की दो दिन पहले घोषित मोरेटोरियम योजना का लाभ ने उन्हीं कर्जधारकों और व्यापारियों को मिलेगा जिन्होंने न तो पिछले साल इसका लाभ लिया था और न ही कोई डिफॉल्ट किया है। बैंकिंग नियमों के मुताबिक 90 दिन तक ईएमआई न देने पर कर्ज को नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट (एनपीए) घोषित कर दिया जाता है। बैंकों की कर्ज वसूली पर इसलिए भी असर पड़ा है। क्योंकि दूसरी लहर में कई बैंक कर्मचारी संक्रमित हो गए। साथ ही कई शहरों में लॉकडाउन की वजह से लोन विभाग का काम ठप हो गया है।
बैंक अधिकारीयों का कहना है कि इस समय अधिकतर बैंक 3.5 से 4 फीसदी मार्जिन पर काम कर रहे हैं। ऐसे में 20-22 फीसदी कर्ज डूबने से ब्याज तो जाएगा ही मूलधन का भी नुकसान होगा और बैलेंस शीट बिगड़ जाएगी। रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों ज़ारी रिपोर्ट में कहा था कि सितंबर 2021 तक बैंकों का एनपीए 13 प्रतिशत को पार कर सकता है, जबकि कुछ रिपोर्ट में इसके 18 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान है।
बैंकों ने आरबीआई से अनुरोध किया है कि वह बैंकों को घाटे से बचाने के लिए मोरेटोरियम की शर्तों में सुधार करें और पिछले साल के लाभार्थियों को भी शामिल करने की इजाजत दें। एक बैंकर ने कहा, जो लोग पिछले साल लॉकडाउन की वजह से किस्त भरने में असमर्थ थे वे बिना किसी आय के इस बार भी कहां से पैसे दे पाएंगे। दूसरी ओर एनपीए घोषित होने के बाद ग्राहक का सिबिल भी खराब हो जाएगा और उसे दोबारा कर्ज नहीं मिलेगा। इससे आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ सकती हैं और बैंकों की कमाई पर भी असर पड़ेगा।