पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-1
उस मूर्ख को इस बात का भी ध्यान नहीं था कि उसकी आंड़ी सिल्ली का फांक में लटक रही है। कुछ देर तक कोशिश करने के बाद खूंटी एक झटके से बाहर आ गई पर आंड़ी जो दबी तो उसी के साथ वह परलोक सिधार गया।
इसीलिए कहता हूं कि बेमतलब किसी पचड़े में पडऩे का फल अच्छा नहीं होता। अरे भई, राजा के खाने के बाद का बचा-खुचा खाने को तो हमें मिल ही जाता है। बेकार में झंझट क्यों मोल लें।
दमनक को करटक की बात सुन कर कुछ ग्लानि हुर्ई। सोचने लगा, यह तो आदमियों से भी गया बीता है। इसे सियारपन छू नहीं गया है। क्या तो संभालेगा यह मंत्री का पद और क्या करेगा शेर की आड़ में जंगल पर राज।
फिर उस क्रोध आया, और यह याद आया कि इसके बाप ने इसके भविष्य के बारे में ज्योतिषियों से सलाह करके ही इसका नाम करटक रखा होगा। …..जारी
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