पंचतंत्र
PanchTantra की कहानी-बेकार का पचड़ा-भाग-1
किसी नगर के पास एक छोटी सी वनस्थली थी। एक बनिये ने उसमें एक मंदिर बनवाना आरंभ किया। वनस्थली नगर के पास ही था इसलिए वहां काम करने वाले कारीगर और मजदूर के दोपहर के समय रोटी खाने अपने घर चले जाते थे।
एक दिन जब वे इसी तरह दोपहर को रोटी खाने गए हुए थे, उस ओर बंदरों (Monkeys) का एक दल निकल आया। आराकशों ने अर्जुन वृक्ष की एक आधा चिरी हुई सिल्ली के बीच में खैर की एक खूंटी ठोंक दी थी।
बन्दरों (Monkeys) का स्वभाव तो आप जानते ही हो। लगे ऊधम मचाने। वे कभी उछल कर पेड़ों पर जाते तो कभी कूद कर मंदिर पर आ जाते। कोई रोकने-टोकने वाला तो था नहीं। उन्हें मजा भी बहुत आ रहा था।
पर इन बंदरों (Monkeys) में एक कुछ बूढ़ा हो चला था। इतनी उछल-कूद उसके वश की बात न थी। उसे और कुछ नहीं सूझा तो वह जाकर उस सिल्ली पर ही चढ़ गया और फिर उस पच्चर को पकड़ कर हिलाने और बाहर निकलने लगा।
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