पंचतंत्र
PanchTantra-कान भरने की कला भाग-9
पिछले अंक के भाग-8 में आपने पढ़ा कि……………
कुछ समय तक अपने गुणों की तालिकाओं को बार-बार सुनते रहने के बाद वे यह मानने को तैयार हो जाते हैं कि अपने को गुणों, मानी, कवि और विद्वान कहने वाले गुणी और मानी इसलिए हैं कि उन्होंने राजा के उन गुणों को पहचान लिया है, जिन्हें वह स्वंय पहचान नहीं पाया था। इसे छोड़ उनमें दूसरा कोई गुण होते ही नहीं हैं।
इससे आगे भाग-9 में पढ़िए………कि…..
यदि हों तो भी किसी राजा के लिए उसका कोई मतलब नहीं है। अपने लड़कों को बिगाडऩे और उधमी बनाने में काफी दूर तक उनके पिता अमरशक्ति का भी हाथ था। पहली बात तो यह कि वह इतना गुणी मान लिया गया था कि उसके नाम की छाया में सूरज की किरण तक प्रेवश नहीं कर सकती थी।
यह तो एक नियम ही है कि खरों के लड़के खोटे और बड़ों के लड़के छोटे होते हैं। इसी तरह खोटों के लड़के खरे और छोटों के लड़के बड़े निकलते हैं। बरगद के नीचे की घास सूख जाती है और कई के ऊपर बीट से भी बरगद निकल आता है।
इसलिए अपने लड़कों का भला चाहने वाले को उन्हें अपने बड़प्पन से दबा कर नहीं, अपने से अधिक बड़ा न बन पाने की ग्लानि से सींचते रखना चाहिए, जो उस राजा ने नहीं किया था।
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