
भारत में गहरा जल संकट, बूंद-बूंद बचाने की जरूरत
लखनऊ। आज पूरा विश्व जल दिवस मना रहा है। इस दिन जल संकट को लेकर सरकार से लेकर संस्थानों में चर्चा होती है। लेकिन इस समय भारत में तेजी से जल संकट बढ़ रहा है। भारत में गहराते जल संकट के प्रति नीति आयोग ने भी चिंता व्यक्त की है। वहीं देश के बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात आदि राज्यों में जल संकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। जिसको लेकर आए दिन संघर्ष भी देखने को मिलते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में पानी के कारण 838 आपराधिक घटनाएं दर्ज की गई थी। इनमें से पानी को लेकर हुए विभिन्न झगड़ों में 92 लोगों की हत्याएं भी कर दी गई थी। सबसे ज्यादा हत्याएं गुजरात में हुई थी। तो वहीं देश की सबसे ज्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला उत्तर प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है। उत्तर प्रदेश में पानी के विभिन्न झगड़ों में 12 लोगों की मौत हुई थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिले जल संकट से जूझ रहे है। प्रदेश के 820 ब्लॉक में आधा से ज्यादा ब्लॉकों में भूगर्भ जल के ज्यादा दोहन के चलते यहां स्थिति गंभीर हो रही है। वहीं अगर प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता की बात करें तो इसका ग्राफ भी तेजी से गिर रहा है। 1951 में जहां 5000 घन मीटर जल की वार्षिक उपलब्धता थी जो अब गिरकर 1500 पर आ पहुंची है। इसी से जल संकट की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
देश ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी भूगर्भ जल के ज्यादा दोहन के चलते जल संकट की स्थिति गंभीर होती जा रही है। भूजल विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 820 ब्लाॅक में से 572 ब्लाॅक के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश में पानी गंभीर रूप से प्रदूषित भी होता जा रहा है। नदियां, तालाब आदि नाला बनते जा रहे है।
उत्तर प्रदेश में जल प्रदूषण का जीवंत उदाहरण लखनऊ में गोमती नदी और कानपुर में गंगा नदी है। वहीं बढ़ते प्रदूषण के चलते भूगर्भ जल में खतरनाक रसायन आर्सेनिक और फ्लोराइड का स्तर बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण अब प्रदेश के 24 से ज्यादा जनपदों में लोग पानी के साथ खतरनाक जहर पीने को मजबूर है।
भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। जबकि मान्य सीमा 1.0 पीपीएम है। वहीं आर्सेनिक की मान्य सीमा 0.01 पीपीएम और अधिकतम मान्य सीमा 0.05 पीपीएम है। उत्तर प्रदेश के 63 जनपदों में फ्लोराइड की मात्रा 3 पीपीएम और 25 जनपदों में आर्सेनिक की मात्रा 1 पीपीएम पाई गई, जबकि 18 जिले तो ऐसे है।
जहां भूजल में फ्लोराइड और आर्सेनिक दोनों ही मानक से अधिक पाए गए है। उत्तर प्रदेश शासन में तैनात रहे सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ. पी के गुप्ता बताते हैं कि जिस तेजी से भूगर्भ जल का स्तर काफी गिर रहा है। वह निश्चय ही एक भयावह स्थिति को प्रकट करता है। इस दिशा में सरकार को गंभीर प्रयास करने होंगे। वहीं कृषि क्षेत्र में भी होने वाली सिंचाई और जल के दोहन के लिए भी नीतियां बनानी होंगी।
प्रदेश में भूगर्भ जल के दोहन की स्थिति पहले की अपेक्षा ज्यादा खराब हो चली है। क्योंकि जिस तेजी से शहरों में कंक्रीट के जंगल का विस्तार हो रहा है। वहीं ग्रामीण इलाकों में उसी तेजी से 45 लाख निजी सिंचाई नलकूप, 17 लाख बिना पंपसेट की बोरिगें, शहरों में घर- घर लगी लाखों समर्सिबल बोरिंग और अनगिनत टयूबवेल और बेहिसाब कमर्शियल बोरिंगों से भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। जिसके चलते प्रदेश के आधे से ज्यादा विकासखंड डार्क जोन में पहुंच गए है।
भूजल विभाग ने जहां भूगर्भ जल के अति दोहन को लेकर गंभीर स्थिति का हवाला दिया है तो वही देश में जल संकट की स्थिति अब और ज्यादा गंभीर हो रही है। 1951 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5000 घन मीटर वार्षिक थी जो अब घटकर 1500 घन मीटर वार्षिक रह गई है। वहीं बात करें तो इस जल में भी पीने योग्य पानी का प्रतिशत बहुत कम है।
जल के क्षेत्र में कार्य करने वाले एक्टिविस्ट डॉ. आर एस सिन्हा बताते है पिछले 20 सालों से भूगर्भ जल के उपयोग की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। वहीं इस दिशा में सरकार द्वारा नीतियां तो जरूर बनाई गईं लेकिन इस दिशा में कुछ और बेहतर कार्य भी होने चाहिए। देश में बारिश का पानी सबसे ज्यादा प्राप्त होता है लेकिन शहरों में जिस तेजी से कंक्रीट के जंगल विकसित हो रहे है। उससे हमारा भूगर्भ जल का स्तर नहीं बढ़ रहा है।
कहते हैं जल ही जीवन है यह आदर्श वाक्य बिल्कुल सही है। क्योंकि जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इसी वजह से जल का संरक्षण देश के हर नागरिक की एक जिम्मेदारी भी है। इसके लिए सरकार ही नहीं जिम्मेदार है बल्कि घर में भी जल की बर्बादी को कुछ उपाय अपनाकर रोक सकते है। समाज सेविका डॉ. अनीता बताती हैं कि हम घरों में बेकार होने वाले पानी को भी पौधों कि सिंचाई में भी उपयोग कर सकते है।
वहीं हर घर में जहां आरओ लगा हुआ होता है जिससे 1 लीटर पानी को शुद्ध करने में 5 से 6 लीटर पानी बर्बाद होता है। इस पानी को भी हम संरक्षित करके कपड़े धोने से लेकर बर्तन धोने जैसे कामों में उपयोग लाया जा सकता है।वहीं छोटे-छोटे उपायों को अपनाकर हम प्रतिदिन सैकड़ों लीटर जल को बचा सकते है।



