
सन्यासी की परंपरागत छवि बदलते योगी
डॉ0 नीलम महेंद्र
एक प्रदेश जो लचर कानून व्यवस्था अराजकता और भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता था। ऐसा राज्य जहाँ बिजली कब आएगी इसी इंतजार में लोगों का दिन निकल जाता था।जहाँ बिना नकल के कोई परीक्षा ही नहीं होती थी। जहाँ दिनदहाड़े गुंडागर्दी और साम्प्रदायिक दंगे आम बात थी। जहाँ के लोग इन हालातों को अपना भाग्य मानकर उन से समझौता करके जीना सीख चुके थे आज वो प्रदेश देश के मानचित्र पर तेज़ी से अपनी पहचान और भाग्यरेखा दोनों बदल रहा है। जब 2017 में योगी आदित्यनाथ ने उपर्युक्त परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के रूप में उत्तरप्रदेश की बागडोर संभाली थी तो उनके चयन के फैसले पर आम लोग ही नहीं पार्टी में भी कुछ लोगों को संशय था। लेकिन योगी सरकार के इन तीन सालों ने ना सिर्फ उनके विरोधियों का मुंह बंद कर दिया बल्कि पार्टी आलाकमान के फैसले पर वो मोहर अंकित कर दी जिसकी मिसाल वर्तमान में शायद ही देखने को मिले। इन तीन सालों ने एक संन्यासी को लेकर परंपरागत धारणाओं के विपरीत एक योगी की ऐसी छवि उकेरी जिसके एक हाथ में पूजा की थाली तो दूसरे में आईपैड है।
ऐसा नहीं है कि प्रश्न योगी सरकार या उनके फैसलों पर न उठे हों लेकिन अगर नीयत और नतीज़ों की बात की जाए तो सभी प्रश्न पीछे छूट जाते हैं। बात चाहे अवैध बूचड़खानों को बंद करने की हो, एन्टी रोमियो स्क्वाड गठित करने की हो, प्रदेश में 24 घंटे बिजली सुनिश्चित करने की हो, महापुरुषों की जयंतियों पर छुट्टियां खत्म करने की हो या फिर प्रशासन पर पकड़ की हो। गत वर्ष कुम्भ मेले का सफल आयोजन कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचना योगी सरकार की प्रशासनिक सफलता का श्रेष्ठ उदाहरण है। बहुत पुरानी बात नहीं है जब परीक्षा में नकल कराने के लिए उत्तर प्रदेश में पूरा माफिया सक्रिय था लेकिन इन पर नकेल कसते ही परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या कम होती गई। किसी समय अपराधों के मामले में देश में अव्वल रहने वाला राज्य जो अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित पनाह माना जाता था उस राज्य के अपराधी स्वयं पुलिस के आगे आत्मसमर्पण करने लगे।



