NPPA के कार्यपद्ति की जॉंच की जानी चाहिए कि उसने अपने उदभव काल से आजतक किया क्या? और आजतक कितनी निर्माता कम्पनियों के खिलाफ कार्रवाई की जो मनचाहे जितनी मर्जी एमआरपी लिख कर जनता को ठग रहे हैं।
इधर देखने में आ रहा है कि कम्पनियॉं एक ही प्रोडक्ट पर अलग-अलग स्थान के हिसाब से अलग-अलग एमआरपी लिखकर जनता को धोखा दे रही हैं और ठग रही हैं। प्राइवेट Hospital में बेची जा रही दवाइयों की एमआरपी और खुले बाजार में बेची जा रही दवाईयों की एमआरपी अलग-अलग हैं।
इसी के साथ कम एमआरपी वाली दवाओं का उत्पादन ही बन्द कर दिया गया है। उदाहरण के तौर पर बताना चाहेंगे कि दस्त के लिए आने वाली दवाई जिसकी 10 टेबलेट की कीमत 2.60 रूपये थी, अब आपको खोजे नहीं मिलेगी। इसीतरह लोपामाइड जिसकी 10 टेबलेट की कीमत 12 रूपये थी, अब बन्द कर दी गई।
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