
हाईकोर्ट : विवाह पंजीकरण केवल विवाह का प्रमाण, आधार नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाह विच्छेद के एक मामले में अपने महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह केवल पंजीकरण के अभाव में अवैध नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि विवाह का पंजीकरण सिर्फ़ सुविधाजनक साक्ष्य के रूप में है, लेकिन यह विवाह की वैधता की शर्त नहीं है।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उपधारा (5) इस बात को साफ़ तौर पर स्पष्ट करती है कि यदि विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ हो, तो भी विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होती। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पंजीकरण प्रमाणपत्र केवल विवाह का प्रमाण है, न कि विवाह की वैधता का आधार। इस आधार पर किसी विवाह को अमान्य ठहराना कानून के विपरीत होगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम की एकलपीठ ने सुनील दूबे की याचिका स्वीकार करते हुए पारित किया।
मामले के अनुसार याची और उनकी पत्नी ने 23 अक्टूबर 2024 को आपसी सहमति से तलाक की संयुक्त याचिका दाखिल की थी। कार्यवाही के दौरान परिवार न्यायालय, आजमगढ़ ने विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। चूँकि विवाह जून 2010 में हुआ था और उस समय पंजीकरण नहीं कराया गया था, पति ने प्रमाणपत्र दाखिल करने से छूट मांगी। पत्नी ने भी इसका समर्थन किया, लेकिन परिवार न्यायालय ने हिंदू विवाह और तलाक नियम, 1956 के नियम 3(ए) का हवाला देते हुए छूट की अर्जी खारिज कर दी। इस आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की, जिस पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि 1955 के अधिनियम की धारा 8 में पंजीकरण का प्रावधान है,
लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2017 में विवाह पंजीकरण नियम बनाए हैं, लेकिन इन नियमों में भी स्पष्ट है कि पंजीकरण के अभाव में विवाह अवैध नहीं होगा। कोर्ट ने दोहराया कि विवाह का पंजीकरण “साक्ष्य की सुविधा” के लिए है, न कि विवाह की वैधता का निर्धारक तत्व। कोर्ट ने परिवार न्यायालय द्वारा विवाह प्रमाणपत्र दाखिल करने के आदेश को “पूरी तरह अनुचित” बताया और उपर्युक्त आदेश रद्द करते हुए कहा कि विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र न होने पर भी विवाह वैध रहेगा और तलाक की कार्यवाही पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।