
डिफॉल्टर बिल्डर्स से फ्लैट न खरीदें
आवास एवं विकास परिषद ने वृंदावन योजना में 33 डिफॉल्टर बिल्डरों की सूची जारी कर लोगों को इनसे फ्लैट न खरीदने के लिए आगाह किया है। दस्तावेज के मुताबिक इन बिल्डरों को ग्रुप हाउसिंग के लिए साल 2012 से 2016 के बीच प्लाट आवंटित किए गए थे। इन बिल्डरों ने इन प्लॉट पर अपार्टमेंट बनाकर फ्लैटों का पंजीकरण खोल दिया, लेकिन आवास विकास के करीब 360.55 करोड रुपए दबाये बैठे हैं।
इस पर आवास विकास परिषद ने इन सभी को आरसी नोटिस जारी कर दिया है। इसके मुताबिक इन अपार्टमेंट में किसी भी समय बिजली—पानी का कनेक्शन काटा जा सकता है। इसका खामियाजा यहां फ्लैट खरीदने वालों को भुगतना पड़ सकता है।
लखनऊ जोन के डिप्टी हाउसिंग कमिश्नर अनिल कुमार ने बताया है कि 7 दिन के भीतर भुगतान न होने पर बिल्डरों को आरसी जारी होने लगेगी। इसके बाद प्लॉटों का आवंटन निरस्त करने के बाद बकाया वसूली के लिए दोबारा नीलामी कराई जाएगी। वहीं आवास विकास की प्रदेशभर की योजना में ऐसे डिफॉल्टर बिल्डर करोड़ों रुपए दबाये बैठे हैं। माना जा रहा है कि राजधानी के बाद दूसरे जिलों में भी ऐसे ही अभियान की तैयारी है।
इन बिल्डरों को नोटिस जारी की गई है।
बसेरा सिटी प्राइवेट लिमिटेड, सिविल प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, पीएसीएल इंडिया लिमिटेड, अम्बा हाउसिंग इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड, कैलाश यादव, संजय बिल्डर एंड कंस्ट्रक्शन लि०, वीएन इंफ्राटेक प्रा०लि०, सुनीता सिंह, श्री श्रेय जैन, श्री हरि रियलटेक, सूरत इन्फ्राटेक प्रा०लि०, सिवांश इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रा०लि०, राधेकृष्ण टैक्नोबिल्ड प्रा०लि०, शिवशंकर अग्रवाल, मंगलम बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड, एजेड गए जीएसआई प्रा०लि०, हरिविंदर सिंह नरूला, रूद्र रियल एस्टेट लि०, पंकज कुमार अग्रवाल, मधु अग्रवाल, विद्यासागर, नीना सिंह, अखिलेश इम्पेक्स लि०, सत्येंद्र कुमार गौतम, साधना चौधरी, प्रतिष्ठा इन्फ्रावेंचर प्राइवेट लिमिटेड, राधेश्याम, प्रकाश, विकास वर्मा और सरिता हैं।
2012 से लेकर 2016 तक उ0प्र0 आवास विकास परिषद सोता रहा। क्योंकि उसके अधिकारियों को लाथ होता रहा। जब प्लॉट का सम्पूर्ण भुगतान ही इन कम्पनियों ने नहीं किया तो उस भूमि पर इन बिल्डरों ने कैसे अपार्टमेन्ट खड़े कर लिए और फिर कैसे बेच भी दिये।
जब उन्होंने फ्लैट बनाकर बेच लिए तो अब आप उन भवनों को क्रय करने वालों और उसमें रहने वालों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से रिकवरी करने चले हैं। 2012 से 2016 तक जो भी अधिकारी इन भूखण्डों को देख रहा था, दरअसल रिकवरी उससे होनी चाहिए। निश्चित रूप से उसने रिश्वत लेकर बिल्डरों को फायदा पहुंचाया। इसमें बाबू से लेकर कमिश्नर तक की भूमिका संदिग्ध दिखाई देती है।