
‘हमें मार दो लेकिन वापस मत भेजो’: रोहिंग्या शरणार्थी
नई दिल्ली। साल 2012 की गर्मियों की एक रात ने नूरउल इस्लाम की जिंदगी को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। उस रात ने उसके परिवार की किस्मत में म्यांमा के राखिन राज्य से आए शरणार्थियों का तमगा लगा दिया। उस समय नूरउल की उम्र महज सात साल थी लेकिन उसे अच्छी तरह याद है कि कैसे उग्रवादियों ने राखिन में उनके घर पर हमला बोला था। उसे यह भी याद है कि कैसे वे मौत के मुंह से बचकर भागे थे और बांग्लादेश में उनके संघर्ष के शुरूआती दिन कैसे थे। वहां से उन्हें निकाल दिया गया था और फिर वे भारत पहुंचे।
आंखों से बहते आंसू पोंछते हुए नूरउल ने कहा, ‘‘हमारी स्थिति वाकई बहुत खराब थी क्योंकि मेरे पिता के पास हमारे पालन-पोषण के लिए पर्याप्त धन नहीं था। जब तक हम भारत नहीं पहुंचे और मेरे पिता ने रोजगार के लिए मछली बेचना शुरू नहीं कर दिया, तब तक हमें कई दिन तक भूखा रहना पड़ा। ’’ नूरउल का परिवार उन 70 परिवारों में से एक है, जो दक्षिणी दिल्ली के एक कोने में स्थित शाहीन बाग के एक शिविर में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमान वे लोग हैं, जिनका वास्तव में कोई ठिकाना नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने इन्हें दुनिया का सबसे अधिक प्रताड़ित अल्पसंख्यक समुदाय माना है।
राष्ट्रीय राजधानी में लगभग 1200 रोहिंग्या मुसलमान हैं। इनमें से कुछ शाहीन बाग में रहते हैं और कुछ मदनपुर खादर स्थित एक अन्य शिविर में। हजारों रोहिंग्या लोगों में अधिकतर मुसलमान हैं। उन्हें इस माह राखिन से निकल जाने और बांग्लादेश में शरण लेने के लिए विवश किया जा रहा है। उनका दर्द वैश्विक सुर्खियों में आ चुका है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान एक विनाशकारी मानवीय स्थिति का सामना कर रहे हैं। लेकिन भारत में मौजूद रोहिंग्या मुसलमानों की अपनी अलग चिंताएं हैं। यहां सरकार उन्हें निर्वासित करने की धमकी दे रही है।
महज 12 साल का नूरउल जब कहता है कि वह कभी अपने देश नहीं लौटना चाहता, तो अपनी उम्र से कहीं बड़ा लगने लगता है। उसके लिए उसका घर कचरे के बड़े ढेर के पास बना एक अस्थायी टैंट है और उसका स्कूल जसोला में स्थित सरकारी स्कूल है। उसने कहा, ‘‘मैं यहां खुश हूं और मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है।
मैं अपने देश कभी लौटना नहीं चाहता क्योंकि वहां सेना बच्चों को मार डालती है। मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह हमें म्यांमा वापस न भेजे।’’ शिविर में मौजूद अन्य लोग भी कभी अपना घर रह चुके अपने देश लौटने के नाम पर डरे हुए हैं। सबीकुन नाहर ने कहा, ‘‘मैं अपनी पूरी जिंदगी एक शरणार्थी की तरह नहीं बिताना चाहती। लेकिन अगर मैं म्यांमा स्थित अपने गांव में लौटने के बारे में सोचती भी हूं तो सैन्य हमलों की वे भयावह यादें मेरी रूह को कंपा जाती हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने हमारे मकान जला दिए और हमें बौद्ध धर्म का पालन करने के लिए विवश किया। हमारे स्थानीय मस्जिद में जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। हम इतना डरे हुए थे कि रात में सो भी नहीं पाते थे।’’ 21 वर्षीय सबीकुन ने वर्ष 2012 में अपना गांव छोड़ दिया था और वह बांग्लादेश में अपने रिश्तेदारों के पास आ गई थी। वह एक साल तक शिविर में अपने माता-पिता के साथ रही लेकिन बेहद गरीबी और बेरोजगारी के कारण उसे भारत आना पड़ा। वर्ष 2013 में नाहर शाहीन बाग शिविर में पहुंच गई थी। उसकी शादी शिविर में ही रहने वाले वर्षीय मोहम्मद जुबैर से हुई। वह शहर के एक एनजीओ के लिए काम करता है।
वह हर माह लगभग 12 हजार रूपए कमाता है और इस दंपति को अपने जीवनयापन में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। लेकिन वापस भेजे जाने के नाम से नाहर भी कांप उठती है। नाहर ने कहा, ‘‘वर्ष 2012 से स्थिति बिगड़ी है। हम चाहते हैं कि पूरी दुनिया हमें समर्थन दे। मैं बांग्लादेश में रह रहे अपने माता-पिता को दिल्ली बुलाना चाहती हूं लेकिन सरकार हमें ही निर्वासित करने का सोच रही है। मैं उन्हें कैसे बुलाउंगी?’’ अपने वर्तमान, भविष्य और म्यांमा या बांग्लादेश में रह रहे अपने परिवार की स्थिति को लेकर लगातार चिंता अब इनके जीवन का अंग बन गई है। शिविर में परचून की एक छोटी सी दुकान चलाने वाले अब्दुल रहीम म्यांमा स्थित घर में मौजूद अपने भाई से संपर्क साधने के लिए बेहद चिंतित होकर कोशिश कर रहे हैं।
नौ साल पहले म्यांमा से भाग कर आए अब्दुल एक दिन में लगभग 300 रूपए कमाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे कई संबंधी हैं, जो अब भी म्यांमा में फंसे हैं। मुझे अपने भाई और उसके परिवार की चिंता है क्योंकि वे अभी तक बांग्लादेश नहीं पहुंचे हैं।’’ अब्दुल उन्हें निर्वासित कर देने की सरकार की योजना से स्तब्ध हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने देश लौटने के बजाय यहां मरना पसंद करूंगा। वहां लोग अत्याचारों और हिंसा का सामना कर रहे हैं।’’ किसी के हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहे शबीर रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव के लिए काम करते हैं। उन्होंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने 23 अगस्त को विदेश मंत्री को पत्र लिखा और जवाब का इंतजार कर रहे हैं। मैं यहां की सरकार से पूछना चाहता हूं कि वह हमें निर्वासित क्यों करना चाहती है?’’ सरकार ने नौ अगस्त को संसद को बताया था कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्च आयोग के पास पंजीकृत 14 हजार से ज्यादा रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं। वहीं कुछ कार्यकर्ताओं का आकलन है कि लगभग 40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। इनमें से अधिकतर लोग दिल्ली-एनसीआर, जम्मू , हैदराबाद और हरियाणा, उत्तरप्रदेश एवं राजस्थान के कुछ हिस्सों में रह रहे हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने पहले कहा था कि रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं, उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय अवैध रोहिंग्या मुसलमान प्रवासियों को म्यांमा वापस भेजने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। उनका भविष्य एक अन्य निर्णायक मोड़ ले सकता है।