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Ahmed अकेले ही बन गये पटेल
सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव, अहमद पटेल (Ahmed Patel) को राज्यसभा से वंचित करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी ओर से विशेष बल लगाकर भरपूर घेराबन्दी की, लेकिन शाह की घेराबन्दी को तोड़ते हुये पटेल राज्यसभा में पहुंच ही गये। ये बात अलग है, कि अहमद पटेल अपने को सरवाईव कराने के लिए अकेले पड़ गये थे। उन्हें चारों खानोंं चित्त करने के लिए अमित शाह ऐड़ी-चोटी का जोर लगाये हुये थे। यहीं पर व्यक्ति को सोचना चाहिए कि मुकद्दर से बड़ा कोई सिकन्दर इस पृथ्वी पर नहीं है।
सोनिया गाँधी (Soniya Gandhi) का ताकतवर प्यादा
एक समय था, जब अहमद पटेल, अमित शाह को बर्बाद करने में लगे थे, लेकिन देखिये,समय का खेल कि अमित शाह एक ताकतवर नेता के रूप में आपके सामने हैं, और आज का समय है कि अमित शाह, अहमद पटेल को राजनैतिक रूप से तबाह करना चाह रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर पटेल भी आपके सामने तनकर खड़े हैं। अहमद पटेल की आवाज अब राज्यसभा में निरिश्चत तौर पर गूंजेगी।
आपको थोड़ा सा बता दें कि- अहमद पटेल और अमित शाह दोनों ही गुजरात से हैं और वर्ष 2010 से इन दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। अमित शाह को 2010 में सोहराबुद्दीन के फर्जी एनकाउंटर केस में जेल जाना पड़ा था, इसके लिए अमित शाह तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार को दोषी मानते हैं और समझते हैं कि ऐसा सब कुछ अहमद पटेल के इशारे पर हुआ है।
अबका ताकतवर प्यादा
इस समय जबकि केन्द्र में भाजपा की सरकार है, अमित शाह उसके खेवनहार हैं, तो अमित शाह अपना पुराना बदला चुका लेना चाहते थे, वह भी अहमद पटेल का राजनैतिक कैरियर खत्म करके। शाह ने अपने हिसाब से जितना वो कर सकते थे, अहमद पटेल की राह में कांटों का रेड कार्पेट बिछाया, लेकिन ये कांटों का रेड कार्पेट, अहमद पटेल के लिए फूलों का रेड कार्पेट साबित हुआ, और राज्यसभा का दरवाजा उनके लिए सिम-सिम खुल जा की तरह खुल गया।
किसी कांग्रेसी ने साथ नहीं दिया
ये बात भी गौर करने वाली है कि इन मुश्किल भरे सफर में अहमद पटेल के साथ कांग्रेस पार्टी के दिग्गज भी नहीं थे। कई कांग्रेसी विधायकों ने बगावत भी कर दी और पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन भी थाम लिया। अमित शाह के प्रकोप से बचाने के लिए कांग्रेस को अपने 44 विधायकों को कर्नाटक ले जाना पड़ा, लेकिन जिस विधायक ने उन 44 विधायकों को अपने यहॉ रखा, उसके यहॉ सरकार के निर्देश पर आयकर विभाग ने जबरदस्त छापा मारा, इस पर अहमद पटेल ने जबरदस्त ऐतराज भी किया, लेकिन अबकी बार शासन भाजपा का है, पटेल का नहीं। कांग्रेस पार्टी के नेता, अहमद पटेल के साथ उस तल्लीनता से नहीं खड़े दिखाई दिये, जिस तल्लीनता और तनमयता से बीजेपी के नेताओं की पूरी टीम अमित शाह के साथ खड़ी थी।
हनुमान जी Ahmed पर मेहरबान
अहमद पटेल के लिए मंगलवार का दिन मंगलमय साबित हुआ। दरअसल अहमद पटेल के लिए मंगलवार 8 अगस्त 2017 का दिन किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं था, इसी दिन गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए मतदान हुआ था। कांग्रेस पार्टी के दो विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी। अहमद पटेल मुसीबत में फंसे थे, उनकी जीत पर असमंजस बरकरार था। उसी समय दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक भी चल रही थी। इस बैठक में राहुल गांधी पर हुए हमले और अंग्रेजों भारत छोड़ो पर तो चर्चा हुई, लेकिन अहमद पटेल को लेकर किसी भी तरह की कोई चर्चा नहीं हुई। ऐसा होना बताता है कि कांग्रेसी नेता, अहमद पटेल के प्रति कैसा रवैय्या अपनाये हुए थे।बावजूद इसके हनुमान जी ने पटेल का साथ दिया और उन्हें राज्यसभा पहुंचा ही दिया।
बागी विधायक बने Ahmed की तक़दीर
कांग्रेस के दो बागी विधायकों ने बीजेपी के बलवंत सिंह राजपुत (कांग्रेस के बागी नेता) को वोट देकर पटेल की मुसीबत बढ़ा दी, लेकिन अमित शाह की सरपरस्ती और अति उत्साह में वे ऐसा कर गये कि बस उसी कृत्य ने पटेल को राज्यसभा पंहुचा दिया। उन दोनों विधायकों ने बीजेपी को वोट देने के बाद अपने मतपत्र को अमित शाह को दिखा दिया, जो कि कैमरे में कैद हो गया। बस यहीं से अहमद पटेल की तकदीर ने बुलन्दी का जोर पकड़ लिया।
क्रास वोटिंग को लेकर कांग्रेस की तरफ से नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और आर.पी.एन. सिंह ने चुनाव आयोग जाकर मामले की शिकायत की और उन दोनों विधायकों के वोट रद्द करने की अपील की। अपील पर सुनवाई हुई और चुनाव आयोग ने पूरी विडियोग्राफी तलब की। फैसले में दोनों विधायकों के वोट रद्द करने का आदेश देते हुये मतगणना करने का निर्देश दिया, तब जाकर अहमद पटेल जीते हैं। इस निष्पक्षता के लिए भारत का निर्वाचन आयोग भी बधाई का पात्र है।
थोड़ा अन्दरूनी भी जानें। दरअसल अहमद पटेल के अकेले पडऩे की वजह, ये है कि वे दस-जनपथ के करीबी हैं। पटेल सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव हैं और 12-तुगलक लेन यानी राहुल गांधी का घर, जहां राहुल गांधी की टीम बैठती है, आपस में भी राजनीति चलती है। इस चुनाव के दौरान राहुल गांधी की टीम नदारद थी। 12-तुगलक लेन के नेता चाहते थे कि अहमद पटेल निपट जायें तो एक कांटा खत्म हो जायेगा और उनका राजनीतिक कद कांग्रेस में बढ़ जायेगा, इसी नीति के तहत वे पूरे चुनाव के दौरान कहीं भी नज़र नहीं आये।
खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान
लेकिन कहावत है कि खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान। खुदा की मेहरबानी पर जब गधा पहलवान हो जाता है तो पहलवान पर खुदा मेहरबान हो जाये तो पहलवान तो ग्रेट खली ही हो जायेगा। यहां तो मामला एक, ताकतवर सियासी खिलाड़ी का था,इसलिए कुछ ऐसा ही पटेल के साथ भी हुआ है। किसी के घेरने से कोई नहीं घिर जाता है, घिरता कोई तभी है, जब उसकी तकदीर ही उसे घेर लेती है।
>> सतीश प्रधान, राजनीतिक विश्लेषक
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