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संत कबीरदास ने सदैव रुढ़िवाद का विरोध किया: मुख्यमंत्री

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द ने आज जनपद संत कबीर नगर स्थित संत कबीर दास परिनिर्वाण स्थल, मगहर में शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के विकास से सम्बन्धित परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इस अवसर पर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी उपस्थित थे।

इन परियोजनाओं में 31.49 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान, भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत 17.61 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इंटरप्रेटेशन सेन्टर तथा 37.66 लाख रुपये की लागत से कबीर निर्वाण स्थली, मगहर के सौन्दर्यीकरण के कार्य सम्मिलित हैं।

इस अवसर पर राष्ट्रपति जी, राज्यपाल जी एवं मुख्यमंत्री जी ने वृक्षारोपण भी किया। मुख्यमंत्री जी द्वारा राष्ट्रपति जी को कबीर दास जी के दोहे लिखे टेलीग्राफिक अंगवस्त्र तथा ‘एक जनपद एक उत्पाद’ योजना का स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम के दौरान पर्यटन से सम्बंधित एक लघु फिल्म भी दिखाई गयी।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि संत कबीर दास की निर्वाण स्थली साम्प्रदायिक एकता की अदभुत मिसाल है। यहां पर समाधि और मजार एक साथ निर्मित हैं। लगभग 700 वर्ष गुजर जाने के बाद भी उनकी शिक्षाएं एवं वाणी जनसाधारण से लेेकर बुद्धिजीवी वर्ग में लोकप्रिय है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संतों के आगमन से धरती पवित्र हो जाती है। संत कबीर मगहर में लगभग 3 वर्ष तक रहे। ऊसर, बंजर तथा अभिशप्त मानी जाने वाली यह भूमि उनके आगमन से खिल उठी। कबीर दास जी के आमंत्रण पर नाथ पीठ के सिद्ध पुरुष भी यहां पधारे थे। उनके प्रभाव से यहां का तालाब जल से भर गया। कबीर दास जी सच्चे पीर थे। वह लोगों की पीड़ा समझते थे और उस पीड़ा को दूर करने के उपाय करते थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि कबीर दास जी का पूरा जीवन मानव धर्म का श्रेष्ठतम उदाहरण है। कबीर दास जी ने उस समय के विभाजित समाज में समरसता लाने के लिए सामाजिक मेल-जोल की बारीक कताई की। ज्ञान के रंग से सुन्दर रंगाई की, एकता और समन्वय का मजबूत ताना-बाना तैयार किया और समरस समाज के निर्माण की चादर बुनी। इस चादर को उन्होंने बहुत सावधानी से ओढ़ा और कभी मैला नहीं होने दिया।

राष्ट्रपति ने कहा कि कबीर एक गरीब और वंचित परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन उन्होंने उस वंचना को कभी अपनी कमजोरी नहीं समझा, बल्कि उसे अपनी ताकत बनाया। कबीर दास जी ने सदैव इस बात पर बल दिया कि समाज के कमजोर से कमजोर वर्ग के प्रति संवेदना और सहानभूति रखे बिना मानवता की रक्षा नहीं हो सकती। हमारे समाज ने उनकी वाणी और शिक्षा को दिल से स्वीकार किया। यही कारण है कि दुनिया की अनेक बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामो निशान मिट गया, तब भी हमारा देश अपनी अटूट विरासत को लेकर अपने पांव पर मजबूती से खड़ा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि कबीर दास जी ने हमेशा अन्धविश्वास, कुरीतियांे, आडम्बरों और भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया। यही कारण था कि वह अंतिम समय में काशी छोड़कर मगहर चले आए। वह एक सहज संत थे। वह मानते थे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं है। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। कबीर दास जी ने गृहस्थ जीवन को भी संतों की तरह जिया। उनकी पवित्र वाणी ने सुदूर पूर्व में श्रीमंत शंकर देव से लेकर पश्चिम में संत तुकाराम और उत्तर में गुरुनानक से लेकर छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास को प्रभावित किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि बिहार के राज्यपाल के रूप में मुझे वाराणसी स्थित संत कबीर की तपस्थली के दर्शन का अवसर मिला था। राष्ट्रपति के रूप में वर्ष 2017 में मध्य प्रदेश के भोपाल में आयोजित कबीर महोत्सव तथा वर्ष 2018 में सागर में स्थित कबीर आश्रम के कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला था। मैंने वर्ष 2018 में हरियाणा के फतेहाबाद में संत कबीर प्रकटोत्सव में भी भाग लिया। इस अवसर पर मैने संत कबीर के अनुयायियों का भारी उत्साह देखा है।

राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2003 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम जी ने मगहर आकर कबीर चौरा के दर्शन किये। 28 जून 2018 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस रिसर्च सेन्टर की आधारशिला रखी थी। उस परियोजना के पूरा होने पर आज यहां कबीर दास जी की चित्र-प्रदर्शनी, ऑडिटोरियम, पुस्तकालय और शोधार्थियों के लिए आवास आदि का लोकार्पण करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है।

राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर उन्होेेंने संत कबीर दास जी के समाधि स्थल पर वृक्षारोपण किया। यह पौधा आगे चलकर जब बड़ा होगा, तो सभी को छाया और शीतलता प्रदान करेगा। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले बोध गया से लाये गये बोधि वृक्ष के पौधे को राष्ट्रपति भवन में रोपित किया गया था, अब वह काफी बड़ा हो गया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संत कबीर पुस्तकीय ज्ञान से वंचित रहे फिर भी उन्होंने साधु-संगति से अनुभव सिद्ध ज्ञान प्राप्त किया, उस ज्ञान को पहले स्वयं जांचा, परखा, आत्मसात् किया और तब लोगों के सामने प्रकट किया। कबीर दास जी ने बंगाल से लेकर पंजाब, राजस्थान और गुजरात तक की यात्रा की। वह भारत के बाहर ईरान और बल्ख भी गये। वह विषम वातावरण में श्रद्धा, विश्वास, प्रेेम और मैत्री का संदेश फैलाने के लिए लोगों के बीच गये। वह लोगों के साथ सीधा संवाद करते थे। कभी-कभी वह एकदम ठेठ शब्दों का प्रयोग करते थे। उन्होंने समाज को पहले जगाया और फिर चेताया।

राष्ट्रपति जी ने कहा कि राज्यपाल के रूप में प्रदेश को श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी का मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। वह संत कबीर की शिक्षाओं के अनुरूप अपने आचरण से सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए सजग प्रयास करती है। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री जी भी अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री जी को उनके जन्मदिन की बधाई देते हुए दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना की। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में प्रदेश विकास एवं समरसता के पथ पर मजबूती के आगे बढ़ता रहेगा।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि संत कबीरदास जी ने सदैव रुढ़िवाद का विरोध किया। उन्होंने इसके विरुद्ध एक आवाज उठायी थी, इसीलिए वे मगहर आए थे। उस समय कहा जाता था कि मगहर में आने पर नर्क मिलता है। कबीरदास जी इसके खिलाफ जाकर यहां आए और उन्होंने इसे स्वर्ग बना दिया। आज यहां पर पर्यटन विकास के अनेक कार्य हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज राष्ट्रपति जी के कर-कमलों से मगहर में 03 बड़ी परियोजनाओं का लोकार्पण कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा है। इनमें 31.49 करोड़ रुपये की लागत से संत कबीर अकादमी एवं शोध संस्थान का निर्माण शामिल है, जिसके माध्यम से संत कबीर दास जी की लोक साहित्य, उनकी साखी, बीजक, शबद, उनकी सिद्धी को लेकर शोध कार्य किये जाएंगे। साथ ही, स्वदेश दर्शन योजना के अन्तर्गत 17.61 करोड़ रुपये की लागत से इंटरप्रेटेशन सेन्टर का निर्माण तथा 37.66 लाख रुपये की लागत से कबीर निर्वाण स्थली, मगहर का सौन्दर्यीकरण का कार्य भी इसमंे शामिल है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें अपनी जिम्मेदारी को समझना ही पड़ेगा। अपने कर्तव्य के प्रति कबीर दास जी ने आगाह करते हुए कहा था – ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब’। कार्य को टालने के आदत नहीं डालनी है। जो कल करना है, उसे आज ही करें और जो आज करना है, उसकी शुरुआत अभी से कर दें। बहुत से लोग मुहूर्त देखते हैं, यह टालने की आदत है। टालने से समस्या का समाधान नहीं होता है। कर्म के पथ पर चलकर ही हम अपने समाज, अपने देश को आगे बढ़ा सकते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अमृत महोत्सव वर्ष में हम सबको एक साथ जोड़ने के लिए अमृत काल के आगामी 25 वर्षाें के लिए लक्ष्य निर्धारण के लिए कहा है। जब प्रत्येक नागरिक इस संकल्प के साथ जुड़ेगा, तब हम इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री जी की भावनाओं और विज़न के अनुरूप संत कबीर दास जी के विचार दर्शन को आने वाली पीढ़ी के सामने जीवन्त बनाने के इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री जी ने प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति विभाग तथा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह पूरा क्षेत्र विकास की नई ऊंचाइयों को छूता हुआ अनेक श्रद्धालुआंे को आकर्षित करने में सफलता प्राप्त करेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मगहर में आज लोकार्पित होने वाली परियोजनाओं का शिलान्यास प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया था। प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में देश में अनेक स्थलों का सौन्दर्यीकरण और उनकी पहचान प्रदान करने के अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इनमें स्वदेश दर्शन योजना हमें वैचारिक रूप से जोड़ने, समाज को एक नई दिशा प्रदान करने तथा अपने परम्परागत तीर्थस्थलों के पर्यटन विकास के लिए भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके एक बड़े प्रोजेक्ट का मगहर में लोकार्पण हो रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के अन्दर अलग-अलग स्थानों पर रामायण सर्किट, कृष्ण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, बौद्ध सर्किट के अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके अन्तर्गत पर्यटन विकास की सम्भावनाओं को आगे बढ़ाने के साथ-साथ रोजगार, श्रद्धालु एवं नागरिकों के लिए बेहतर बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के कार्य भी किये जा रहे हैं।

काशी, जहां पर संत कबीर दास जी का जन्म हुआ था, वहां विगत 13 दिसम्बर, 2021 को प्रधानमंत्री जी द्वारा काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण किया गया था। आज वहां एक लाख से अधिक श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन के लिए जा रहे हैं। इसके माध्यम से रोजगार की व्यापक सम्भावनाएं साकार की गयी हैं। इसी प्रकार अयोध्या, कुशीनगर, उच्च हिमालय में केदार नाथ धाम में भी इसी प्रकार विकास की अनेक सम्भावनाओं को बढ़ाने का कार्य हुआ है।

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि देश के राष्ट्रपति उत्तर प्रदेश के ही सपूत हैं। यहीं पर उनका जन्म हुआ और यहीं पर उन्होंने अपना बचपन तथा जवानी व्यतीत करते हुए अपने को लोक सेवा तथा समाज सेवा के कार्यांे के प्रति समर्पित किया। यह भारत के लोकतंत्र की ही ताकत है कि एक छोटे से गांव के एक सामान्य परिवार में जन्म लेकर उन्होंने देश के सर्वाेच्च संवैधानिक पद पर पहुंचकर पूरे देश का मार्गदर्शन किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज विश्व पर्यावरण दिवस भी है। हमारे संतांे, ऋषियों, महापुरुषों ने सदैव पर्यावरण के साथ मिलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। उन्होंने मगहर की आमी नदी, जो पांच वर्ष पूर्व अत्यन्त प्रदूषित थी, को एक व्यवस्थित  कार्ययोजना के माध्यम से प्रदूषण मुक्त किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्हांेने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रत्येक गांव में अमृत सरोवर बनाने का संकल्प लिया है। गांव के जिन सरोवरों पर अवैध कब्जा हो चुका है, या जिसमें गांव का ड्रेनेज उड़ेल दिया जा रहा है, उसे मुक्त कराते हुए, उन अमृत सरोवर को मगहर की आमी नदी के जल की भांति शुद्ध, शान्त एवं निर्मल बनाकर उसे अपने गांव के तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करना होगा। इससे कभी हमारे पास जल की कमी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि ‘जल है तो कल है’।

मुख्यमंत्री ने कहा कि भीषण गर्मी पड़ रही है। घरों में पंखे, ए0सी0 लगा सकते हैं। लेकिन सड़कों पर यह सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में सभी को पर्यावरण की शरण में जाना ही पड़ेगा। इसके लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे। हमने अपनी परम्परागत विरासत पीपल, पाकड़, बरगद, नीम, देशी आम आदि वृक्षों के साथ एक आत्मीय संवाद जोड़ने का कार्य किया था। पीपल को भगवान बुद्ध तथा भगवान विष्णु के साथ जोड़ा है। ऐसे ही अलग-अलग देवी-देवताओं के साथ वनस्पतियों को जोड़ने का कार्य भारत की परम्परा ने किया है। विश्व पर्यावरण दिवस पर हम सभी को ऐसे कार्यक्रमों से जुड़ना ही होगा।

प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यावरण मंत्री श्री जयवीर सिंह ने कहा कि संत कबीर दास जी के विचार आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने भारत की संस्कृति, सभ्यता व सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाने का कार्य किया। उनके संदेश समाज के लिए अनुकरणीय हैं।
इस अवसर पर जनप्रतिनिधिगण सहित शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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