रोहिंग्या अवैध आव्रजक, वापस भेजने का विरोध गलतः राजनाथ
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने आज कहा कि रोहिंग्या (Rohingyas) समुदाय के लोग अवैध आव्रजक हैं और वे भारत में शरण के लिए आवेदन करने वाले शरणार्थी नहीं हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि जब म्यामां रोहिंग्या लोगों को वापस लेने के लिए तैयार है तो कुछ लोग क्यों उन्हें वापस भेजे जाने पर आपत्ति जता रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘रोहिंग्या शरणार्थी नहीं हैं। वे उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद यहां नहीं आए। किसी भी रोहिंग्या ने शरण के लिए आवेदन नहीं किया। वे अवैध आव्रजक हैं।’’
गृहमंत्री ने यह भी कहा कि भारत रोहिंग्या समुदाय के लोगों को प्रत्यर्पित कर किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि उसने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
एनएचआरसी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे रोहिंग्या लोगों को प्रत्यर्पित करने की योजना को लेकर केंद्र को हाल में नोटिस भेजा था। आयोग के अनुसार, मानवाधिकारों की दृष्टि से मामले में उसका ‘‘हस्तक्षेप उचित है।’’
गृहमंत्री ने यह भी कहा कि भारत रोहिंग्या समुदाय के लोगों को प्रत्यर्पित कर किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि उसने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
एनएचआरसी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे रोहिंग्या लोगों को प्रत्यर्पित करने की योजना को लेकर केंद्र को हाल में नोटिस भेजा था। आयोग के अनुसार, मानवाधिकारों की दृष्टि से मामले में उसका हस्तक्षेप उचित है।
मालूम हो कि म्यांमार में रोहिंग्या की आबादी 10 लाख के करीब है. रोहिंग्या समुदाय 15वीं सदी के शुरुआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस तो गया, लेकिन स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय ने उन्हें आज तक नहीं अपनाया है।
यही वजह रही है कि म्यांमार में सैन्य शासन आने के बाद रोहिंग्या समुदाय के सामाजिक बहिष्कार को बाकायदा राजनीतिक फैसले का रूप दे दिया गया और उनसे नागरिकता छीन ली गई।
2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और बौद्धों के बीच व्यापक दंगे भड़क गए। तब से म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा जारी है।