उत्तर प्रदेशपोल-खोलफ्लैश न्यूज

मरीज का निकल गया दम, लेकिन 300 वेंटिलेटर ताले में बंद

लखनऊ में वेंटिलेटर की बदहाल व्यवस्था ने दूसरे दिन भी एक मरीज की जान ले ली। लकवाग्रस्त मरीज को समय पर इलाज नहीं मिला। परिवारीजन एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल वेंटिलेटर की आस में दौड़ते रहे। प्राइवेट अस्पताल ले जाते समय मरीज की सांसें थम गईं। इससे पहले 28 फरवरी को सड़क दुर्घटना में घायल नवयुवक ने भी वेंटिलेटर के अभाव में दम तोड़ दिया था। एक तरफ गंभीर मरीज वेंटिलेटर नहीं पा रहे हैं तो दूसरी तरफ राजधानी के सरकारी अस्पताल, संस्थानों में 300 से ज्यादा वेंटिलेटर ताले में बंद हैं।

चिनहट निवासी कमलेश श्रीवास्तव को लकवा का अटैक पड़ा था। परिजन उन्हें गंभीर हालत में लोहिया संस्थान की इमरजेंसी में लेकर पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने मरीज को वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत बताई। डॉक्टरों ने उन्हें केजीएमयू जाने की सलाह दी। परिजन एम्बुलेंस से मरीज को केजीएमयू ले गए, वहां भी वेंटिलेटर खाली नहीं मिला। परिवारीजन घंटों गिड़गिड़ाते रहे पर वेंटिलेटर नहीं मिल सका।
मरीज की जान बचाने के लिए परिजन मरीज को फैजाबाद रोड स्थित निजी अस्पताल पहुंचे। यहां डॉक्टरों ने 30 हजार जमा करने के लिए कहा। मगर इलाज के दौरान रात करीब 10 बजे मरीज ने दम तोड़ दिया।

बेटे अमर के मुताबिक यदि समय पर लोहिया या केजीएमयू में मरीज को भर्ती कर लिया जाता तो शायद पिता की जान बचाई जा सकती थी। 28 फरवरी को एक और मरीज को लेकर लखनऊ पुलिस ने भी कई अस्पतालों के चक्कर लगाये, हर जगह वेंटिलेटर उपलब्ध न होने की बात कही गई। आखिर में उसने लोहिया संस्थान के बाहर ही दम तोड़ दिया।

लखनऊ की आबादी 60 लाख से अधिक है, मगर शहर के अस्पतालों में 500 वेंटिलेटर ही हैं। और उनमें से 300 ताले में बंद हैं। आबादी के लिहाज से ये काफी कम हैं। सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं मिलने पर गंभीर मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज कराने को मजबूर हैं। प्राइवेट अस्पतालों में 50 हजार रुपये प्रतिदिन का खर्च है।

लोहिया में 200 बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित हैं। तीन मरीज भर्ती हैं। यहां 120 से ज्यादा वेंटिलेटर बेड ताले में बंद हैं। इसमें बच्चों के बेड भी शामिल हैं। बलरामपुर में 40 वेंटिलेटर हैं। पीजीआई, लोकबंधु और श्रीराम सागर मिश्र हॉस्पिटल में भी कोरोना बेड आरक्षित हैं। अस्पतालों में संक्रमित की संख्या पांच से छह है।

गंभीर मरीज वेंटिलेटर बेड नहीं पा रहे है तो राजधानी के सरकारी अस्पताल, संस्थानों में 300 से ज्यादा वेंटिलेटर ताले में बंद हैं। इनको कोरोना संक्रमितों के लिए आरक्षित किया गया है। संक्रमितों की संख्या कम होने के बावजूद इन्हें दूसरे मरीजों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। सरकारी अस्पताल, मेडिकल संस्थानों में बदइंतजामी हावी है।

गंभीर मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। इसका खामियाजा गंभीर मरीजों को जान देकर चुकानी पड़ रही है। बीते सोमवार को सड़क हदासे में घायल लखीमपुर निवासी टन्ने की वेंटिलेटर न मिलने से मौत हो गई थी। परिवारीजन मरीज को लेकर लोहिया, बलरामपुर और केजीएमयू में धक्के खाते रहे। आखिर में एम्बुलेंस में मरीज की सांसें थम गईं।

राज्‍यों से जुड़ी हर खबर और देश-दुनिया की ताजा खबरें पढ़ने के लिए नार्थ इंडिया स्टेट्समैन से जुड़े। साथ ही लेटेस्‍ट हि‍न्‍दी खबर से जुड़ी जानकारी के लि‍ये हमारा ऐप को डाउनलोड करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button

sbobet

mahjong slot

Power of Ninja

slot garansi kekalahan 100

slot88

spaceman slot

https://www.saymynail.com/

slot starlight princess

https://moolchandkidneyhospital.com/

bonus new member

rtp slot

https://realpolitics.gr/