फ्लैश न्यूजसाइबर संवाद
पावन पेशे की पतित राह
यह पोस्ट मनीकान्त शुक्ला जी की फेसबुक वॉल से ली गई है। इस पोस्ट को लिखने में उनको हुई पीड़ा को वो इस तरह से दर्शा रहे हैं।
लिखने में जितनी पीड़ा हो रही है, अभिव्यक्ति उतनी दुखदायी है। पत्रकारिता की यह त्रासद दास्तां है। एक दौर था, जब लिखने-पढ़ने वालों का सम्मान होता था। उनके आने का इंतजार होता था। सुबह अखबार पढ़ने की उत्सुकता। दिन की शुरुआत अखबार और खबरों से होती थी। लेखनी से पत्रकार की शिनाख्त।
पर दौर बदला। पेशे ने भी राह बदली। मगर इसके प्रभाव ने प्रवाह को प्रभावित कर डाला। विरले ही पत्रकार इसके असर से बेअसर हो सके। कोई प्रशंसक बना तो कोई आलोचक। समालोचना धर्म से विमुख हो गए। यहां तक गनीमत थी पर इस वॉयरस ने जब असर दिखाना शुरू किया तो चाल से चरित्र तक बदलने लगा। दलाली को कर्म से जोड़ा तो धर्म धिक्कारने लगा।
आईने में अक्स को देखने की हिम्मत नहीं, पर छद्म सिद्धांत का बखान जरूर किया। गरीबों की करुण व्यथा ने कभी व्यथित नहीं किया पर साहबों, बड़े कारोबारियों, नेताओं का ख्याल रखने में खुद बेखबर रहे। न मर्यादा का ख्याल रहा न नैतिकता की परवाह। लॉक डाउन में तो यह पेशा क्रूर हो चला। सत्ता की चरण वंदना में सिद्धांत को ताक पर रख दिया गया है। पर अभी भी वक्त है, यदि पतित से पावन की राह पर न लौटे तो नजरों से गिर जाएंगे।
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