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हलषष्ठी का व्रत आज, जानिए कथा और पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान श्रीकृष्णजी के बड़े भाई बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में बलराम जयंती मनाई जाती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हलषष्ठी को कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे लह्ही छठ, हर छठ, हल छठ, पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहा जाता है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। इस बार यह व्रत 28 अगस्त, शनिवार को पड़ रहा है। हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है।

शेषनाग का अवतार है बलदाऊ
बलराम जिन्हें बलदाऊ या हलधर के नाम से भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे। अनेक धर्मग्रंथों में इस बात का वर्णन है। कि बलराम शेषनाग के अवतार थे। मान्यता है कि धरती पर धर्म की स्थापना करने के लिए जब-जब श्री नारायण ने अवतार लिया है। तब-तब शेषनाग ने भी उनका साथ देने के लिए किसी न किसी रूप में जन्म लिया है। द्वापर युग में विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के बड़े भाई तो त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में इनका जन्म हुआ। इस युग में इनके बड़े भाई होने के पीछे एक प्रसंग है। जिसके अनुसार  क्षीर सागर छोड़कर शेषनाग विष्णुजी से गुहार लगाते है। कि इस बार आप मुझे अपना बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें प्रभु। शेषनाग कहते हैं कि रामावतार में आपने मुझे छोटा भाई बनाया। अगर मैं बड़ा भाई होता तो कभी भी आपको वन जाने की आज्ञा नहीं देता है। हे प्रभु इस बार जब अवतार धारण करने जाएं तो मुझे बड़ा भाई बनाकर सेवा का अवसर प्रदान करें। देवकी के सप्तम गर्भ में जाने की आज्ञा दें। विष्णु शेषनाग को तथास्तु कह अंतर्ध्यान हो गए।

ऐसे रोहिणी के गर्भ में आए
कथा के अनुसार विष्णुजी की आज्ञा से शेषनाग ने देवकी के गर्भ में सप्तम पुत्र के रूप में प्रवेश किया था। कंस इस गर्भ के बालक को जन्म लेते ही मार देना चाहता था। तब परमेश्वर श्री विष्णु ने योगमाया से कहा कि आप देवकी के इस गर्भ को ले जाकर रोहिणी के गर्भ में रख दो। भगवान के आदेश से योगमाया ने देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहिणी के गर्भ में डाल दिया। गर्भ से खींचे जाने के कारण ही बलरामजी का नाम संकर्षण पड़ा।

हलषष्ठी व्रत पूजन विधि
माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की खुशहाली एवं दीर्घायु की प्राप्ति के लिए रखती है। और नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए करती हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। उसके बाद भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती है। और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हलषष्ठी की कथा सुनती हैं।

 

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