
जीएसटी के दो टैक्स स्लैब से हटने पर व्यापारियों ने जताई नाराजगी, बताई ये बड़ी वजह
जीएसटी के दो टैक्स स्लैब होने के मिल रहे संकेतों को देखते हुए विभिन्न ट्रेड पर लागू अलग-अलग दरों को खत्म करने की मांग रखी है। व्यापारियों का कहना है कि चाहे स्टेशनरी हो या फिर कपड़ा व्यापार, किराना हो या फिर भवन से जुड़ी सामग्रियों पर लग रही अलग-अलग जीएसटी दरें कारोबार प्रभावित कर रही हैं। ऐसे में 12 प्रतिशत एवं 28 प्रतिशत के टैक्स रेट को समाप्त करते हुए केवल 5 और 18 प्रतिशत जीएसटी स्लैब को अनुमति मिलनी चाहिए।
यही नहीं 18 एवं 28 फीसदी टैक्स संरचना को भी समाप्त किया जाना चाहिए। यही नहीं दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर 5 प्रतिशत की दर निर्धारित होनी चाहिए। लखनऊ व्यापार मंडल के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्र ने जीएसटी काउंसिल को भेजे गए पत्र में विभिन्न टैक्स संरचना पर सुझाव दिए हैं।
उदाहरण देखिए
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक एक गुड्स में तीन-तीन प्रकार के टैक्स रेट लागू हैं। जैसे रेडीमेड होजरी पर और 999 मूल्य के वस्त्र पर पांच फीसद, और इससे ऊपर के वस्त्र पर 12 प्रतिशत ली जा रही है। यही हाल स्टेशनरी का है। रबड़ पर पांच प्रतिशत, पेन्सिल, कॉपी पर 12 फीसद और कटर, पेन, डायरी पर 18 प्रतिशत जीएसटी है। किताब,जूता 12 प्रतिशत 999 मूल्य तक, इसके ऊपर 18 प्रतिशत का प्रावधान है। किराना को ले लीजिए। पांच प्रतिशत मसाला पर मेवा पर 12 प्रतिशत टैक्स है।
स्टेशनरी में चार प्रकार के टैक्स रेट
लखनऊ व्यापार मंडल प्रमुख मिश्र एवं स्टेशनरी अध्यक्ष जितेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि कॉपी, डायरी एवं किताब में कागज ही इस्तेमाल होता है परन्तु टैक्स सभी का अलग-अलग है।
रोजमर्रा की चीजें पर भी हो विचार
कास्मेटिक्स हेयर ऑयल, टूथपेस्ट, प्रसाधन सामग्री आदि वस्तुओं पर भी कर की दर काफी अधिक है जो कि दैनिक उपभोग की ही वस्तुएं हैं। यही हाल कपड़ा व्यापार का है। कपड़ा व्यवसाय से जुडे़ प्रभू जालान और अशोक मोतियानी, अनिल बजाज का कहना है कि कारोबार उलझा हुआ है। यार्न पर अलग दर और रेडीमेड पर अलग जीएसटी। आढ़ती एवं पांडेयगंज गल्ला मंडी के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि कुछ को कर मुक्त कर रखा गया है तो कुछ पर टैक्स की बड़ी दरें हैं।
इसी तरह परिवहन भाड़ा जीएसटी गुड्स रूल 9(4) सस्पेन्ड होने से क्रेता व्यापारी को भाड़े पर आरसीएम के तहत टैक्स देना पड़ता है और उसी महीने में उपरोक्त टैक्स की आईटीसी क्लेम कर ली जाती है। इससे सरकार का कोई लाभ नहीं होता है और क्रेता व्यापारी को दोहरी लिखा पढ़ी करनी पड़ती है।