नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश से ‘पुरानी सोच और मान्यताओं का पुनर्मूल्यांकन’ और ‘पेशेवर निराशावादियों के दबाव से समाज को मुक्त’ करने का आह्वान करते हुए कहा है कि भारत की आजादी के शताब्दी वर्ष के 25 वर्षों में ‘विकसित भारत’ की नींव निश्चित तौर पर रखी जानी चाहिए।
उन्होंने एक लेख में कहा, ‘‘21वीं सदी का विश्व अनेक आशाओं से भारत की ओर देख रहा है। और वैश्विक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बदलाव करने होंगे। हमें सुधार के संबंध में अपनी पारंपरिक सोच को भी बदलने की जरूरत है।
भारत सुधारों को सिर्फ आर्थिक सुधारों तक सीमित नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री ने यह लेख एक जून को कन्याकुमारी से दिल्ली की हवाईयात्रा के दौरान लिखा था। लोकसभा चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद वह 30 मई को आध्यात्मिक प्रवास पर कन्याकुमारी पहुंचे थे।
पीएम मोदी ने लोगों से जीवन के हर पहलू में सुधार की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया। सोमवार को कई अखबारों में प्रकाशित इस लेख में मोदी ने कहा कि भारत के सुधार 2047 तक ‘विकसित भारत’ की आकांक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सुधार किसी भी देश के लिए कभी भी एक-आयामी प्रक्रिया नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, मैंने देश के लिए रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म (सुधार, निष्पादन और परिवर्तन) का दृष्टिकोण रखा है। सुधार की जिम्मेदारी नेतृत्व की है। उसी के आधार पर हमारी नौकरशाही काम करती है और जब लोग जनभागीदारी की भावना के साथ जुड़ते हैं तो हम बदलाव होते देखते हैं। यह लेख लोकसभा चुनावों की मतगणना से एक दिन पहले प्रकाशित हुआ है।
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