कारोबार

Dhirubhai Ambani को भी करना पड़ा था ‘अडानी’ जैसे संकट का सामना

एक रिपोर्ट और उसका असर ऐसा की दुनिया के अरपतियों की सूची में फेरबदल हो गया। कंपनी को 65 अरब डॉलर का नुकसान हुआ वहीं ग्रुप के चेयरमैन की नेटवर्थ में भी भारी गिरावट आई। अडानी ग्रुप के कई कंपनियों के शेयर धड़ाम से गिए गए। बाजार में अफरा-तफरी मचने लगी। 24 जनवरी से अबतक गौतम अडानी पैसे गंवाते जा रहे हैं वो भी लाख या करोड़ में नहीं बल्कि हजारों करोड़ में और आलम ये है कि कुछ दिन पहले तक दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में चौथे स्थान पर काबिज गौतम अडानी टॉप 10 की सूची से नदारद हो गए हैं।

आलम ये हो गया कि गौतम अडानी की कंपनी अडानी एंटरप्राइजेज ने 20000 करोड़ रुपये का अपना एफपीओ वापस लेने का फैसला लेना पड़ा। वैसे बीते कुछ वर्षों के अडानी की ऊचाईयों को छूने की कहानी भी सभी को चौंकाती ही रही है। वो सरप्राइजिंग डिसिजन लेने में माहिर माने जाते हैं। चाहे वो रिटेल हो या पोर्ट व एयरपोर्ट। पॉवर और इन्फ्रास्ट्रक्र के क्षेत्र में जबरदस्त विस्तार की वजह से अडानी लगातार मुकेश अंबानी को पीछे छोड़ते आए।

लेकिन मुकेश अंबानी के पिता यानी उद्योगपति धीरूभाई अंबानी भी कुछ ऐसी मुसीबत में एक वक्त में फंसे थे। और उन्होंने ऐसा सबक सिखाया था कि उनसे खिलाफ साजिश करने वालों की गिड़गिड़ाने तक की नौबत आ गई थी। शेयर मार्केट के इतिहास में शह और मात का खेल हमेशा से देखने को मिलता रहता है।

लेकिन कुछ ऐसे ही माहौल का सामना आज से करीब चार दशक पहले बिजनेसमैन धीरूभाई अंबानी को भी सामना करना पड़ा था। धीरूभाई ने अपने अंदाज में मामले को निपटाया था।

दरअसल आज अडानी जिस तरह के संकट का सामना कर रहा है। 1982 में धीरूभाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। धीरूभाई के इस कदम से 18 मार्च 1982 को मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में हड़कंप मच गया। साल 1977 में धीरूभाई अंबानी ने अपनी कंपनी रिलायंस को शेयर बाजार में लिस्ट कराने का फैसला किया। उस समय रिलायंस ने 10 रुपये प्रति शेयर की दर से करीब 28 लाख इक्विटी शेयर जारी किए थे।

एक साल से भी कम समय में रिलायंस कंपनी के शेयर की कीमत 5 गुना से ज्यादा बढ़कर 50 रुपये हो गई थी। इसके बाद 1980 में रिलायंस के एक शेयर की कीमत बढ़कर 104 रुपये हो गई और 1982 में यह 1.8 गुना बढ़कर 186 रुपये हो गई। जैसे मौजूदा दौर में अडानी ग्रुप के शेयरों में तेजी आई है।

उसके बाद धीरूभाई अंबानी ने डिबेंचर के जरिए पैसा जुटाने की योजना बनाई। डिबेंचर कंपनियों के लिए ऋण के माध्यम से पूंजी एकत्र करने का एक तरीका है। हालांकि, उस वक्त भी कोलकाता में बैठे शेयर बाजार के कुछ बड़े दलालों ने रिलायंस के शेयरों को गिराने की साजिश रची।

इसके लिए एक योजना के तहत बड़े पैमाने पर रिलायंस के शेयर बेचे गए। दरअसल, दलालों की ओर से यह सोचा गया था कि रिलायंस के गिरते शेयरों को बड़े निवेशक नहीं खरीदेंगे और उस समय यह भी नियम था कि कंपनी अपने शेयर खुद नहीं खरीद सकती थी। यानी एक तरह से दलालों ने धीरूभाई अंबानी को गिराकर खुद मुनाफा कमाने की पूरी साजिश रची थी, जैसा कि आज हिंडनबर्ग कर रहा है।

शॉर्ट सेलिंग और साजिश
उस वक्त भी ब्रोकर रिलायंस के शेयर की कीमत नीचे लाने के लिए ‘शॉर्ट सेलिंग’ कर रहे थे। दलालों की साजिश यह थी कि वो ब्रोकरेज से उधार लिए शेयर को बाजार से कम कीमत पर खरीदकर मोटा मुनाफा कमाकर वापस कर देते थे। इस साजिश के तहत दलालों ने करीब आधे घंटे में शॉर्ट सेलिंग के जरिए रिलायंस के करीब 3.5 लाख शेयर बेच दिए। एक साथ इतने शेयर बिकने से रिलायंस के एक शेयर का भाव 131 से गिरकर 121 रुपये पर आ गया।

दरअसल, कोलकाता में बैठे दलाल रिलायंस के शेयर की कीमत घटाकर यानी ‘शॉर्ट सेलिंग’ कर अपनी जेब भरना चाहते थे। अडानी पर नकारात्मक रिपोर्ट जारी करने वाली कंपनी हिंडनबर्ग भी ‘शॉर्ट सेलिंग’ से पैसा कमाती है। यानी पहले वे रिपोर्ट जारी करके ऐसी स्थितियां पैदा करते हैं। कि कंपनी के शेयर की कीमतें गिर जाती हैं। और फिर वे शॉर्ट सेलिंग के जरिए पैसा कमाते हैं।

यही चाल उस समय के दलालों ने धीरूभाई के साथ भी खेली थी। लेकिन जैसे ही धीरूभाई अंबानी को दलालों की इस चाल के बारे में पता चला, धीरूभाई ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके कुछ दलालों को रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयर खरीदने के लिए राजी कर लिया।

जिसके बाद असली खेल शुरू हुआ, एक तरफ कोलकाता में बैठे दलाल मुंबई शेयर बाजार में लगातार रिलायंस के शेयर बेच रहे थे। दूसरी तरफ अंबानी के पक्ष में दलाल शेयर खरीद रहे थे। जिससे शेयर की कीमत गिरने के बजाय ऊपर चढ़ने लगी। शेयर की कीमत बढ़कर 125 रुपये हो गई।

रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के कुल 11 लाख शेयर बेचे गए और इनमें से 8 लाख 57 हजार धीरूभाई अंबानी के दलालों ने खरीदे। इससे कोलकाता में धीरूभाई को गिराकर पैसा कमाने का सपना देख रहे दलाल अपने ही जाल में फंस गए।

उसके बाद जब अगला शुक्रवार आया तो अंबानी के दलालों ने कोलकाता में बैठे दलालों से शेयर मांगे। वायदा कारोबार के कारण कोलकाता के दलालों के पास शेयर नहीं थे। 131 रुपए पर शेयर बेचने वालों की हालत और खराब हो गई।

क्योंकि तब तक ओरिजिनल शेयर की कीमत काफी ऊपर पहुंच चुकी थी और अगर ब्रोकर्स ने एक्सटेंशन मांगा तो ब्रोकर्स को 50 रुपये प्रति शेयर बदला चुकाना पड़ता। लेकिन, धीरूभाई के दलालों ने कोलकाता के दलालों को समय देने से मना कर दिया। इसके बाद दलालों को बड़ा झटका लगा और उन्हें रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के शेयरों को ऊंचे दामों पर खरीदना-बेचना पड़ा।

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