राष्ट्रीय

सियासी हत्याओं के लिए जाना जाता था कन्नूर

तिरुवनंतपुरम। केरल में क्या वाम दल अपनी गद्दी बचा पाएगी या फिर यूडीएफ सत्ता में आएगी ? इस सवाल के साथ केरल की सियासत गर्मायी हुई है और तो और भाजपा भी अपना दांव खेल चुकी है। भाजपा का कहना है कि यहां के लोग अब हमें एक विकल्प के तौर पर देख रहे है। हमारे नेताओं को अच्छा समर्थन मिल रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा कन्नूर की हो रही है। कुदरती खूबसूरती के लिए मशहूर कन्नूर का खूनी खेल किसी से छिपा नहीं है। यहां पर साल 1969 में पहली सियासी हत्या हुई थी और अब तक 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

खूबसूरती के साथ-साथ सियासी हत्याओं के लिए जाना जाने वाले कन्नूर की हवा अब बदल रही है। यहां पर वामदलों से लेकर भाजपा और संघ के लोग अब सियासी हत्याओं की जगह पर विकास की बात करने लगे हैं। दोनों दलों के नेताओं का कहना है कि सियासी हत्याएं चुनाव का मुद्दा नहीं है। ऐसे में विकास की चर्चा जोर पकड़े हुए हैं लेकिन सवाल खड़ा होता है कि क्या इससे कन्नूर की खूनी सियासत बदल जाएगी ?

अरब सागर के तट पर बसा केरल का कन्नूर जिला वामदलों का हार्ट लैंड है। यहां के पारापरम गांव में ही कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सिस्ट (सीपीएम) की साल 1939 में शुरुआत हुई थी। वैसे इस गांव के पास में ही मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का गांव पिनराई बसा हुआ है और आप यह तो समझ गए होंगे कि मुख्यमंत्री अपने नाम के आगे अपने गांव का नाम ही इस्तेमाल करते हैं।

सियासी हत्याओं के गढ़ कन्नूर में साल 2000 से लेकर 2016 तक के बीच में 69 हत्याएं हुई हैं। जिसमें सीपीएम के 30 और संघ के 31 कार्यकर्ता शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि यहां पर चुनाव के दौरान हिंसा नहीं होती है बल्कि चुनाव से पहले या फिर बाद में होती है। इसके अलावा यहां पर सीपीएम और संघ के ऐसे कई पदाधिकारी मिलेंगे, जिनका या तो हाथ नहीं है या फिर पांव नहीं है। इतना ही नहीं कई नेताओं के तो हाथ, पांव दोनों ही कटे हुए हैं।

हिन्दी समाचार पत्र ‘नवभारत टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और कन्नूर की कुतुपरंबा सीट से उम्मीदवार सदानंदन मास्टर ने बताया कि यहां पर अब सियासी हिंसाओं को लेकर माहौल बदल रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों से यहां पर शांति है। अभी कोई भी सियासी हत्या नहीं हुई है। हालांकि जब उनसे हिन्दी समाचार पत्र ने सवाल पूछा कि आखिर कन्नूर में सियासी हत्या क्यों होती रही है ? जिसका उन्होंने जवाब दिया कि वामदलों का यह स्वभाव रहा है कि वह हिंसा से अपने विरोधियों को दबाते हैं। उन्होंने कहा कि वह दूसरी विचारधारा को दबाने के लिए भी ऐसा करते हैं।

वहीं, सीपीएम के वरिष्ठ नेता पी जयराजन ने बताया कि यहां पर पिछले पांच साल से शांति है और इसके लिए एलडीएफ सरकार ने अलग-अलग दलों के नेताओं के साथ बातचीत की। हिन्दी समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा और सीपीएम दोनों दल के ही नेता हिंसा का शिकार हुए हैं। भाजपा के सदानंदन मास्टर साल 1994 में जब संघ के प्रचारक हुआ करते थे उस वक्त उन पर हमला हुआ था और इस हमले में उनके दोनों पैर कट गए थे।

इसके बावजूद उनका हौसला कम नहीं हुआ और वह संघ के लिए काम करते रहे। जबकि सीपीएम नेता पी जयराजन पर साल 1999 में हमला हुआ था। जिसमें उन्होंने अपने बाएं हाथ का अंगूठा गंवा दिया था। इतना ही नहीं हमलावर उन्हें मरा हुआ समझकर छोड़कर चले गए थे। बता दें कि दोनों दलों के ही नेताओं ने सियासी हत्याओं के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराया।

 

 

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