राष्ट्रीय

एक दूसरे के पूरक मोदी और योगी

उत्तर प्रदेश में चुनावी राजनीति चरम पर है। नेताओं के बीच श्रेष्ठता की दौड़ चल रही है। सभी अपने आपको सर्वश्रेष्ठ-ईमानदार और विरोधियों को निकम्मा- नाकारा बताने में जुटे हैं। छोटे हों या बड़े दल के रहनुमा, सब इस जतन में लगे है। कि कैसे मतदाताओं का दिल और दिमाग जीता जाए।

इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद सभी हथकंडों का सहारा लिया जा रहा है। अपनी बात मतदाताओं तक पहुंचाने के लिए सोशल साइट्स से लेकर पुराने तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें सबसे अधिक प्रचलित तरीका है। चुनावी यात्राओं का ‘खेला’।

बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर करीब-करीब सभी दलों के बीच अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यात्राएं निकालने की होड़ मची हुई है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच चुनावी यात्राएं निकालने की दौड़ के बीच सत्तारुढ़ बीजेपी भी इसमें पीछे नहीं है।

बीजेपी भी यात्राओं की राजनीति में ‘डुबकी’ लगाए जा रही है। पहले जन आशीर्वाद यात्रा निकाल चुकी भारतीय जनता पार्टी अब प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से कई यात्राएं निकालने की तैयारी कर रही है। योगी सरकार की उपलब्धियां बताने और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी 15 दिसंबर के बाद अवध, काशी, ब्रज, गोरखपुर, कानपुर, बुंदेलखण्ड और पश्चिमी क्षेत्र से यात्राएं निकालेगी। यह यात्राएं सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगी।

इन यात्राओं के जरिए बीजेपी, धार्मिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को धार देगी। इन यात्राओं का समापन लखनऊ में प्रधानमंत्री मोदी की रैली के रूप में होगा। बीजेपी की यात्राओं के माध्यम से पार्टी के बड़े नेता केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के साढ़े सात वर्ष और योगी सरकार के पांच वर्ष की उपलब्धियां लेकर जनता के बीच जाएंगे।

बीजेपी को उम्मीद है कि यह यात्राएं क्षेत्रवाद, जातिवाद, तुष्टिकरण और वंशवाद की सीमाओं को तोड़ेगी। बात इससे आगे की, कि जाए तो बीजेपी तैयारी इस बात की भी कर रही है, कि विपक्ष उसे हिन्दुत्व के मोर्चे पर मात देने की कोशिश नहीं करे। जिस तरह से गैर बीजेपी दलों के नेता मंदिर-मंदिर जाकर अपने को हिन्दू साबित करने में लगे हैं। उससे चौकन्नी बीजेपी इस लड़ाई को और आगे ले जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि बीजेपी के लिए हिन्दुत्व की पिच पर बैटिंग करना अन्य दलों से काफी आसान है।

इसलिए अयोध्या में मंदिर निर्माण और वाराणसी में बाबा भोलेनाथ के मंदिर में आलीशान कॉरिडोर बनाकर भव्यता देने के बाद बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने मथुरा की भी बात शुरू कर दी है। यहां तक कि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या तक ट्विट करके कह रहे हैं।

‘अब मथुरा की तैयारी है। मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली का विवाद भी लगभग अयोध्या में राम लला के जैसा ही है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की सियासत को भी मथुरा मुद्दा उठाकर बीजेपी बैकफुट पर लाना चाहती है। क्योंकि अखिलेश कई बार भगवान श्रीकृष्ण को यदुवंशी बताकर उन्हें अपना वंशज बताते रहे हैं।

लेकिन प्रभु श्रीकृष्ण की जन्मस्थली को उनकी खोई हुई पहचान फिर से मिल सके इसके लिए समाजवादी पार्टी ने कभी कुछ नहीं किया।क्योंकि उसको लगता है कि ऐसे मुद्दे उठाने से उसका मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है। इसीलिए मौर्या के ‘मथुरा की तैयारी है’ वाले बयान के बाद विपक्ष आग बबूला हो गया है।

दरअसल, हिन्दुत्व के साथ-साथ यात्राओं के जरिए बीजेपी अपने कोर वोटरों से इतर पहली बार वोटिंग करने वाले और उन वोटरों को यह समझाने को कोशिश करेगी जिन्होंने अभी किसी भी पार्टी के पक्ष में मतदान करने का मन नहीं बनाया है। बीजेपी नेताओं द्वारा यात्राओं के द्वारा जनता को यह भी बताया जाएगा कि उत्तर प्रदेश की जनता को केन्द्र में मोदी और यूपी में योगी सरकार होने का कितना फायदा मिला है।

विपक्ष योगी सरकार की खामियां गिनाने में जुटा है, तो सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि 2017 के चुनाव में हमने पूर्ववर्ती सरकारों की खामियों को जनता के बीच उजागर किया था। जबकि इस बार हम अपनी उपलब्धियां बताने और जनता का आशीर्वाद लेने के लिए चुनाव मैदान में हैं। यूपी के चुनाव की अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है, कि यहां के चुनाव केन्द्र की राजनीति पर सीधा प्रभाव डालते हैं। यूपी में बीजेपी मजबूत है, इसीलिए केन्द्र में मोदी की सरकार है।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की महत्ता को जानते हुए दिल्ली से लेकर यूपी तक के बीजेपी नेता और आरएसएस वालों के साथ-साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्री भी पूरी शिद्दत के साथ जुटे हैं। एक तरफ यह चुनाव 2024 में भाजपा की केंद्र वापसी के लिहाज से अहम माना जा रहा है, तो वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य के लिए भी यह बेहद अहम है।

यह चुनाव भाजपा में वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करने के लिए भी बेहद अहम है। एक तरफ यूपी चुनाव देश में राजनीति की आने वाली दिशा तय करेगा तो वहीं भाजपा के भीतर भी उठ रहे कई सवालों के जवाब उत्तर प्रदेश के नतीजों से मिल सकते हैं।

बात योगी की कि जाए तो इससे उनका भी कद तय होगा। योगी जीते तो वह यूपी के बाहर भी एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरते दिख सकते हैं। इसके साथ ही भाजपा में मोदी के बाद कौन के सवाल का जवाब भी आंशिक तौर पर मिल सकता है। गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था। यह पहला मौका था। जब राष्ट्रीय स्तर पर सीएम योगी को इस तरह से सम्मान मिला था। अब यदि वह जीत हासिल करते हैं तो फिर उनका कद जनता के बीच भी बढ़ता दिखेगा।

वैसे भी भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच यूपी में अकसर ‘मोदी-योगी-जय श्री राम’ का नारा लगता रहता है। साफ है कि मोदी के बाद यूपी में भाजपा के कार्यकर्ता योगी को ही देखते हैं। लेकिन इस चुनाव के नतीजे बता देंगे कि यह नारा कितना सही और गलत साबित होता है।

ध्यान देने वाली बात यह भी है। कि बीजेपी कार्यकारिणी बैठक में योगी को प्रस्ताव पेश करने का मौका दिए जाने को लेकर भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था। ‘इसमें गलत क्या है। सीएम योगी देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री हैं। वह अपने कामों के चलते लोकप्रिय भी हैं। इसलिए उन्हें यह मौका दिया गया था। उनके इस बयान से साफ संकेत दिया गया कि योगी आदित्यनाथ का कद अब यूपी से बाहर भी बढ़ रहा है।

जानकार इसे योगी का ‘उदय’ मानकर चल रहे हैं। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि 90 के दशक में संगठन मंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था। उसके बाद वह गुजरात के सीएम बने और अब पीएम हैं। वहीं दूसरा, उत्तर प्रदेश में संगठन और बीजेपी नेताओं को साफ संदेश दिया गया है कि यूपी में योगी की अगुवाई में ही सबको एकजुट रहना है।

विकास के मामले में भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रिकार्ड ठीकठाक ही नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि केन्द्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी। नहीं तो सपा-बसपा की सरकारों के समय तो हमेशा यही सुनने को मिलता था कि केन्द्र की सरकारें यूपी के विकास कार्यों में रोड़ा अटकाती हैं।

पीएम मोदी की मदद से ही यूपी में योगी के नेतृत्व में सरकार ने आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश की नींव तैयार करने के लिए कई कदम उठाए है। योगी सरकार को करीब से जानने वालों का मानना है। कि पिछड़ा उत्तर प्रदेश की पहचान छोड़ राज्य सक्षम और समर्थ उत्तर प्रदेश के रूप में उभरा है।

विकास के पैमाने पर समग्रता से देखें तो इन साढ़े चार वर्षों से अधिक के समय में राष्ट्रीय पटल पर एक नया सक्षम और समर्थ उत्तर प्रदेश उभर कर आया है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि योगी सरकार से पहले तक देश की सबसे बड़ी आबादी होने के बाद भी बीमारू की छवि के साथ देश में पांचवें नम्बर की अर्थव्यवस्था होने का दंश झेलने वाला उत्तर प्रदेश लगातार प्रयासों से अब दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था बनकर सामने आया है।

योगी के अपने अब तक के कार्यकाल में लाख युवाओं को सरकारी नौकरी मिली तो एंटी रोमियो स्क्वाड से मिशन शक्ति तक की कोशिशों से महिलाएं सुरक्षित, सम्मानित है। और स्वावलम्बन की मिसाल बन रही हैं।

बात पांच साल पहले की कि जाए तो उत्तर प्रदेश में 2017 तक बेरोजगारी दर 17 फीसदी तक थी जबकि आज चार फीसदी है। उत्तर प्रदेश ने सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व 19 माह के कोविड काल का सामना जिस ढंग से किया, उसकी सराहना विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर हो रही है।

केन्द्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार होने का सीधा फायदा आमजन को मिला है। 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार के गठन के बाद केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकार की शानदार बॉन्डिंग देखने को मिली। अब पीएम किसान योजना हो या फिर स्वच्छ भारत मिशन, उज्ज्वला और उजाला योजना हो अथवा खाद्यान्न उत्पादन, उत्तर प्रदेश सभी में शीर्ष स्थान पर है।

गन्ना मूल्य भुगतान में उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों के हित में भी बेहद शानदार काम किया। प्रदेश में इस दौरान न केवल नई चीनी मिलें खुलीं, बल्कि पुरानी की क्षमता वृद्धि भी की गई। कुल मिलाकर मोदी-योगी की कैमिस्ट्री के चलते बीमारू राज्य की दर्जा हासिल उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों से काफी आगे निकल गया है। यूपी की चमक-खनक और धमक देश ही नहीं, विदेश तक में देखने को मिल रही है। आखिरकार देश बदल रहा है और डिजिटल इण्डिया बन रहा है।

नोटः

जिस तरह बाढ़ के सैलाब में बहुत कुछ ऐसा बहता हुआ मिलता है। जिसे रोकने, बचाने और किनारे लगाने के अलावा किसी-किसी चीज को बहते जाने देने का मन करता है। ठीक उसी प्रकार प्रदेश और देश में लेखों के बहते सैलाब में ये लेख भी बहता मिला है, जिसे किसने लिखा किस उद्देश्य से लिखा, पता नहीं, लेकिन मेरी छोटी सी समझ ने ये बताया कि बड़ी ही महीन कारीगरी से योगी जी और मोदी जी में मतभेद पैदा करने की बेहतरीन कोशिश की गई है। जहां तक इसमें दिये गये आंकड़ों की बात है तो इसकी पुष्टि का कोई ना तो प्रमाण दिया गया है और ना ही मेरे पास इन आंकड़ों की सत्यता प्रमाणित करने का कोई तरीका मौजूद है, इसलिए उससे सहमत होना मेरे लिए असंभव है। पाठक इसे स्वंय अपने दिमाग पर जोर लगाकर समझना चाहें।

मेरी नजर में एक दूसरे के पूरक हैं, मोदी और योगी

सम्पादक

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